पैगंबर हज़रत मुहम्मद के समर्थन की वेबसाइट - निषिद्ध वक़्तों में नमाज़ पढ़ने का हुक्म



عربي English עברית Deutsch Italiano 中文 Español Français Русский Indonesia Português Nederlands हिन्दी 日本の
Knowing Allah
  
  

   

मेरा एक दोस्त है जो नमाज़ की अदायगी में बहुत सूक्ष्मता से काम लेने वाला है और वह कभी कभी सूरज डूबने के दौरान नमाज़ पढ़ता है, उस का विचार यह है कि ऐसा करना हो सकता है कि मक्रूह (अनेच्छिक) हो, किन्तु यह गुनाह का काम नहीं है। तो मैं ने उस से कहा कि काफिरों का विरोध करने के लिए सूरज डूबने के वक़्त नमाज़ पढ़ना हराम है। प्रश्न यह है कि क्या सूर्यास्त या सूर्य उदय के समय नमाज़ पढ़ना मक्रूह है ? या गुनाह का काम है ? और क्यों ?

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान अल्लाह के लिए योग्य है।

निषि़द्ध वक़्तों को छोड़ कर सभी वक़्तों में नफ्ल नमाज़ पढ़ना मुसतहब (ऐच्छिक) है, और वह निषिद्ध वक़्त फज्र की नमाज़ के बाद से लेकर सूरज के एक भाला की ऊँचाई के बराबर चढ़ने तक है, तथा जिस समय दूपहर खड़ी होती है यहाँ तक कि सूरज ढल जाये, और यह वक़्त ठीक आधे दिन में सूरज ढलने के लगभग पाँच मिनट पहले या उस के निकट का समय है, और अस्र की नमाज़ के बाद से सूरज के डूबने तक का समय है। और हर मनुष्य के स्वयं अपनी नमाज़ का ऐतिबार है, चुनाँचि जब वह अस्र की नमाज़ पढ़ ले तो उस पर (कोई अन्य नफ्ल) नमाज़ हराम हो जाती है यहाँ तक कि सूरज डूब जाये। परन्तु कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में हराम नहीं होती है। जिस के बारे में जानकारी के लिए प्रश्न संख्या (306) देखिये।

इन वक़्तों में नमाज़ के निषिद्ध किये जाने की तत्वदर्शिता काफिरों की छवि अपनाने से बचाव करना है, जो कि सूर्य उगने के समय उस का स्वागत करते हुये और उस पर हर्ष और उल्लास प्रकट करते हुये उसे सज्दा करते हैं, और उस के डूबने के समय उसे बिदा करते हुये सज्दा करते हैं, और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हर उस द्वार को बंद करने के बड़े ही लालायित थे जो शिर्क तक पहुँचाने वाला होता या उस में अनेकेश्वरवादियों के साथ समानता और मुशाबहत होती थी। जहाँ तक सूरज के आकाश के बीच में सीधा खड़ा होने के समय नमाज़ से रोके जाने की हिक्मत का प्रश्न है, तो यह इसलिए है कि उस समय नरक (जहन्नम) को भड़काया जाता है जैसाकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से यह बात प्रमाणित है। अत: इन वक़्तों में नमाज़ से रूके रहना उचित है।

यह शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह के फतावा 1/354 से सारांशित है।

इस्लाम प्रश्न और उत्तर




                      Previous article                       Next article




Bookmark and Share


أضف تعليق