पैगंबर हज़रत मुहम्मद के समर्थन की वेबसाइट - मानवता-प्रेमी धर्म-शास्त्र



عربي English עברית Deutsch Italiano 中文 Español Français Русский Indonesia Português Nederlands हिन्दी 日本の
Knowing Allah
  
  

   

पस यह मानव के गौरव और प्रतिष्ठा और उसके अधिकारों का सम्मान करता है, अल्लाह तआला ने फरमाया:

وَلَقَدْ كَرَّمْنَا بَنِي آدَمَ وَحَمَلْنَاهُمْ فِي الْبَرِّ وَالْبَحْرِ وَرَزَقْنَاهُمْ مِنَ الطَّيِّبَاتِ وَفَضَّلْنَاهُمْ عَلَى كَثِيرٍ مِمَّنْ خَلَقْنَا تَفْضِيلاً (الإسراء: 70).

''नि:सन्देह हम ने आदम की संतान को बड़ा सम्मान दिया और उन को थल तथा जल की सवारियाँ प्रदान की और उन को पवित्र वस्तुओं से जीविका प्रदान की और अपनी बहुत सी सृषिट पर उन को श्रेष्ठता प्रदान की। (सूरतुल-इस्रा:70)

इस्लाम ने मानवता को इस प्रकार सम्मान दिया कि नाजार्इज़ तरीके़ से उसे दु:ख पहुँचाने को अवैध क़रार दिया, पस इस ने लोगों की जानों, मालों, उन की इज़्ज़तों, उनके धर्मों, तथा उनके नसब की हिफाज़त की और लेन देन तथा व्यवहार (मामलादारी) को प्रसन्नता और आसानी पर आधारित क़रार दिया। उन मामलों का इस्लाम में कोर्इ एतबार नहीं जो जबरन किये जायें तथा इस से बड़ी बात तो यह है कि इस्लाम ने लोगों को इस के ऊपर र्इमान लाने पर मजबूर नहीं किया, अल्लाह तआला ने फरमाया:

لاَ إِكْرَاهَ فِي الدِّينِ (البقرة: 256).

''धर्म के बारे में कोर्इ ज़बरदस्ती नहीं। (सूरतुल बक्रा:256)

तथा नसरानियों और यहूदियों ने मुसलमानों के बीच एक लम्बे समय तक जीवन बिताए हैं और इस दौरान उस इस्लामी शासन के साये में रह कर अपने अधिकार से लाभानिवत होते रहे जिस इस्लामी शासन का रक़बा इतना बड़ा था कि उस में सूरज ग़ायब नहीं होता था। तथा इस बात का इतिहास ने वर्णन नहीं किया है कि मुसलमानों ने इन लोगों पर इस्लाम में दाखिल होने के लिए दबाव डाला हो। और पशिचमी विचारकों ने इस (वास्तविकता) को स्वीकार किया है तथा उन्हों ने इस्लामी सरलता के इस अत्मा की प्रशंसा की है।




                      Previous article                       Next article




Bookmark and Share


أضف تعليق