Under category | क़ुरआन करीम में भ्रूण के विकास के चरणों के बारे में वैज्ञानिक तथ्य | |||
Creation date | 2014-02-16 15:58:28 | |||
Hits | 2072 | |||
Share Compaign |
लिंग का निर्धारण
परिपक्व ´भ्रूण' (Foetus) के लिगं का निर्धारण यानि उससे लड़का होगा या लड़की? स्खलित वीर्य शुक्राणुओं से होता है न कि अण्डाणुओं से। अर्थात मां के गर्भाशय में ठहरने वाले गर्भ से लड़का उत्पन्न होगा, यह क्रोमोजो़म के 23वें जोड़े में क्रमशः xx/xy वर्णसूत्र (Chromosome) अवस्था पर होता है। प्रारिम्भक तौर पर लिगं का निर्धारण समागम के अवसर पर हो जाता है और वह स्खलित वीर्य शुक्राणुओं (Sperm) के काम वर्णसूत्र (Sex Chromosome) पर होता है जो अण्डाणुओं की उत्पत्ति करता है। अगर अण्डे को उत्पन्न करने वाले शुक्राणुओं में X वर्णसूत्र है; तो ठहरने वाले गर्भ से लड़की पैदा होगी। इसके उलट अगर शुक्राणुओं में Y वर्णसूत्र है तो ठहरने वाले गर्भ से लड़का पैदा होगा।
‘‘और यह कि उसी ने नर और मादा का जोड़ा पैदा किया, एक बूंद से जब वह टपकाई जाती है।'' (अल-क़ुरआन, सूरः 53 आयातः 45-46)
यहाँ अरबी शब्द 'नुत्फ़ा' का अर्थ तो द्रव की बहुत कम मात्रा है जबकि ´तुम्ना' का अर्थ तीव्र स्खलन या पौधे का बीजारोपण है। इस लिये नुतफ़ (वीर्य) मुख्यता शुक्राणुओं की ओर संकेत कर रहा है क्योंकि यह तीव्रता से स्खलित होता है, पवित्र क़ुरआन में अल्लाह तआला फ़रमाता हैः
﴿أَلَمْ يَكُ نُطْفَةً مِنْ مَنِيٍّ يُمْنَى * ثُمَّ كَانَ عَلَقَةً فَخَلَقَ فَسَوَّى * فَجَعَلَ مِنْهُ الزَّوْجَيْنِ الذَّكَرَ وَالْأُنْثَى﴾ [سورة الإنسان : 37-39]
‘‘क्या वह एक तुच्छ पानी का जल वीर्य नहीं था जो माता के गर्भाशय में टपकाया जाता है? फिर वह एक थक्का (लोथड़ा) बना फिर अल्लाह ने उसका शरीर बनाया और उसके अंगों को ठीक किया, फिर उससे दो प्रकार के (मानव) पुरूष और महिला बनाए।'' (अल-कुरआन, सूर: 75 आयतः 37-39).
ध्यान पूर्वक देखिए कि यहाँ एक बार फिर यह बताया गया है कि बहुत ही न्यूनतम मात्रा (बूंदों) पर आधारित प्रजनन द्रव जिसके लिये अरबी शब्द ‘‘नुत्फतिम-मिम-मनी‘‘ अवतरित हुआ है, जो कि पुरूष की ओर से आता है और माता के गर्भाशय में बच्चे के लिंग निर्धारण का मूल आधार है।
उपमहाद्वीप में यह अफ़सोस नाक रिवाज है कि आम तौर पर जो महिलाएं सास बन जाती हैं उन्हें पोतियों से अघिक पोतों का अरमान होता है अगर बहु के यहां बेटों के बजाए बेटियां पैदा हो रहीं हैं तो वह उन्हें ''पुरूष संतान'' पैदा न कर पाने के ताने देती हैं। अगर उन्हें केवल यही पता चल जाता है कि संतान के लिंग निर्धारण में महिलाओं के अण्डाणुओं की कोई भूमिका नहीं और उसका तमाम उत्तरदायित्व पुरूष वीर्य (शुक्राणुओं) पर निर्भर होता है और इसके बावजूद वह ताने दें तो उन्हें चाहिए कि वह ''पुरूष संतान'' न पैदा होने पर, अपनी बहुओं के बजाए बपने बेटों को ताने दें या कोसें और उन्हें बुरा भला कहें। पवित्र क़ुरआन और आधुनिक विज्ञान दोनों ही इस विचार पर सहमत हैं कि बच्चे के लिंग निर्धारण में पुरूष शुक्राणुओं की ही ज़िम्मेदारी है तथा महिलाओं का इसमें कोई दोष नहीं।