Under category | क़ुरआन करीम में भ्रूण के विकास के चरणों के बारे में वैज्ञानिक तथ्य | |||
Creation date | 2014-02-17 17:15:45 | |||
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भ्रूणीय अवस्थाएं
﴿وَلَقَدْ خَلَقْنَا الْإِنسَانَ مِن سُلَالَةٍ مِّن طِينٍ ثُمَّ جَعَلْنَاهُ نُطْفَةً فِي قَرَارٍ مَّكِينٍ ثُمَّ خَلَقْنَا النُّطْفَةَ عَلَقَةً فَخَلَقْنَا الْعَلَقَةَ مُضْغَةً فَخَلَقْنَا الْمُضْغَةَ عِظَامًا فَكَسَوْنَا الْعِظَامَ لَحْمًا ثُمَّ أَنْشَأْنَاهُ خَلْقًا آخَرَ ۚ فَتَبَارَكَ اللَّهُ أَحْسَنُ الْخَالِقِينَ ﴾ [سورة المؤمنون : 12-14]
‘‘हम ने मानव को मिट्टी के रस (सत) से बनाया फिर उसे एक सुरक्षित स्थल पर टपकी हुई बूंद में परिवर्तित किया, फिर उस बूंद को लोथड़े का स्वरूप दिया, तत्पश्चात लोथड़े को बोटी बना दिया फिर बोटी की हड्डियां बनाई, फिर हड्डियों पर मांस चढ़ाया फिर उसे एक दूसरा ही रचना बना कर खडा़ किया बस बड़ा ही बरकत वाला है अल्लाह ; सब कारीगरों से अच्छा कारीगर।‘‘ (अल-क़ुरआन, सूर:23 आयातः 12-14).
इन पवित्र आयतों में अल्लाह तआला फ़रमाते हैं कि मानव को द्रव की बहुत ही सूक्ष्म मात्रा से बनाया गया अथवा सृजित किया गया है, जिसे विश्राम (Rest) स्थल में रख दिया जाता है, यह द्रव उस स्थल पर मज़बूती से चिपटा रहता है। यानि स्थापित अवस्था में, और इसी अवस्था के लिये पवित्र क़ुरआन में ‘क़रार मकीन‘ का गद्यांश अवतरित हुआ है। माता के गर्भाशय के पिछले हिस्से को रीढ़ की हड्डी और कमर के पट्ठों की बदौलत काफ़ी सुरक्षा प्राप्त होती है। उस भ्रूण को अनन्य सुरक्षा ‘ प्रजनन थैली'' (Amniotic Sac) से प्राप्त होती है जिसमें प्रजनन द्रव (Amniotic Fluid) भरा होता है। अत: सिद्ध हुआ कि माता के गर्भ में एक ऐसा स्थल है जिसे सम्पूर्ण सुरक्षा दी गई है। द्रव की चर्चित न्यूनतम मात्रा ‘अलक़ह‘ के रूप में होती है यानि एक ऐसी वस्तु के स्वरूप में जो ‘‘चिमट जाने'' में सक्षम है। इसका तात्पर्य जोंक जैसी कोई वस्तु भी है। यह दोनों व्याख्याएं विज्ञान के आधार पर स्वीकृति के योग्य हैं क्योंकि बिल्कुल प्रारम्भिक अवस्था में भ्रूण वास्तव में माता के गर्भाशय की भीतरी दीवार से चिमट जाता है जब कि उसका बाहरी स्वरूप भी किसी जोंक के समान होता है।
इसकी कार्यप्रणाली जोंक की तरह ही होती है क्योंकि यह ‘आंवल नाल' के मार्ग से अपनी मां के शरीर से रक्त प्राप्त करता और उससे अपना आहार लेता है। ‘अलक़ह‘ का तीसरा अर्थ रक्त का थक्का है। इस अलक़ह वाले अवस्था से जो गर्भ ठहरने के तीसरे और चौथे सप्ताह पर आधारित होता है बंद धमनियों में रक्त जमने लगता है।
अतः भ्रूण का स्वरूप केवल जोंक जैसा ही नहीं रहता बल्कि वह रक्त के थक्के जैसा भी दिखाई देने लगता है। अब हम पवित्र क़ुरआन द्वारा प्रदत्त ज्ञान और सदियों के संघर्ष के बाद विज्ञान द्वारा प्राप्त आधुनिक जानकारियों की तुलना करेंगे।
1677 ई॰ हेम और ल्यूनहॉक ऐसे दो प्रथम वैज्ञानिक थे जिन्होंने खुर्दबीन (Microscope) से वीर्य शुक्राणुओं का अध्ययन किया था। उनका विचार था कि शुक्राणुओं की प्रत्येक कोशिका में एक छोटा सा मानव मौजूद होता है जो गर्भाशय में विकसित होता है और एक नवजात शिशु के रूप में पैदा होता है। इस दृष्टिकोण को 'छिद्रण सिद्धान्त' (Perforation Theory) भी कहा जाता है। कुछ दिनों के बाद जब वैज्ञानिकों ने यह खोज निकाला कि महिलाओं के अण्डाणु, शुक्राणु कोशिकाओं से कहीं अधिक बड़े होते हैं तो प्रसिद्ध विशेषज्ञ डी॰ ग्राफ़ सहित कई वैज्ञानिकों ने यह समझना शुरू कर दिया कि अण्डे के अंदर ही मानवीय अस्तित्व सूक्ष्म अवस्था में पाया जाता है। इसके कुछ और दिनों बाद, 18 वीं सदी ईसवी में मोपेशस (Maupeitius) नामक वैज्ञानिक ने उपरोक्त दोनों विचारों के प्रतिकूल इस दृष्टिकोण का प्रचार शुरू किया कि, कोई बच्चा अपनी माता और पिता दोनों की ‘संयुक्त विरासत' (Joint inheritance) का प्रतिनिधि होता है। अलक़ह परिवर्तित होता है और ´´मज़ग़ह'' के स्वरूप में आता है, जिसका अर्थ है कोई वस्तु जिसे चबाया गया हो यानि जिस पर दांतों के निशान हों और कोई ऐसी वस्तु हो जो चिपचिपी (लेसदार) और सूक्ष्म हो, जैसे च्युंगम की तरह मुंह में रखा जा सकता हो। वैज्ञानिक आधार पर यह दोनों व्याख्याएं सटीक हैं। प्रोफ़ेसर कीथ मूर ने प्लास्टो सेन (रबर और च्युंगम जैसे द्रव) का एक टुकड़ा लेकर उसे प्रारम्भिक अवधि वाले भ्रूण का स्वरूप दिया और दांतों से चबाकर ‘मज़गह‘ में परिवर्तित कर दिया। फिर उन्होंने इस प्रायोगिक ‘मज़ग़ह‘ की संरचना की तुलना प्रारम्भिक भ्रूण (Foetus) के चित्रों से की इस पर मौजूद दांतों के निशान मानवीय ‘मज़ग़ह' पर पड़े कायखण्ड (Somites) के समान थे जो गर्भ में ‘मेरूदण्ड' (Spinal Cord) के प्रारिम्भक स्वरूप को दर्शाते हैं।
अगले चरण में यह मज़ग़ह परिवर्तित होकर हड्डियों का रूप धारण कर लेता है। उन हड्डियों के गिर्द नरम और बारीक मांस या पट्ठों का ग़िलाफ़ (खोल) होता है। फ़िर अल्लाह तआला उसे एक बिल्कुल ही अलग जीव का रूप दे देता है।
अमरीका में थॉमस जिफ़र्सन विश्वविद्यालय, फ़िलाडॅल्फ़िया के उदर विभाग में अध्यक्ष, दन्त संस्थान के निदेशक और अधिकृत वैज्ञानिक प्रोफ़ेसर मारशल जौंस से कहा गया कि वह भ्रूण विज्ञान के संदर्भ से पवित्र क़ुरआन की आयतों की समीक्षा करें। पहले तो उन्होंने यह कहा कि कोई असंख्य प्रजनन चरणों की व्याख्या करने वाली क़ुरआनी आयतें किसी भी प्रकार से सहमति का आधार नहीं हो सकतीं और हो सकता है कि पैगम्बर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास बहुत ही शक्तिशाली खुर्दबीन Microscope रहा हो। जब उन्हें यह याद दिलाया गया कि पवित्र क़ुरआन का नुज़ूल (अवतरण) 1400 वर्ष पहले हुआ था और विश्व की पहली खु़र्दबीन Microscope भी हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सैंकड़ों वर्ष बाद अविष्कृत हुई थी तो प्रोफ़ेसर जौंस हंसे और यह स्वीकार किया कि पहली अविष्कृत ख़ुर्दबीन भी दस गुणा ज़्यादा बड़ा स्वरूप दिखाने में समक्ष नहीं थी और उसकी सहायता से सूक्ष्म दृश्य को स्पष्ट रूप में नहीं देखा जा सकता था। तत्पश्चात उन्होंने कहा : फ़िलहाल मुझे इस संकल्पना में कोई विवाद दिखाई नहीं देता कि जब पैग़म्बर मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने पवित्र क़ुरआन की अयतें पढ़ीं तो उस समय विश्वस्नीय तौर पर कोई आसमानी (इल्हामी) शक्ति भी साथ में काम कर रही थी।
डा॰ कीथ मूर का कहना है कि प्रजनन विकास के चरणों का जो वर्गीकरण सारी दुनिया में प्रचलित है, आसानी से समझ में आने वाला नहीं है, क्योंकि उसमें प्रत्येक चरण को एक संख्या द्वारा पहचाना जाता है जैसे चरण संख्या1, चरण संख्या-2 आदि। दूसरी ओर पवित्र क़ुरआन ने प्रजनन के चरणों का जो विभाजन किया है उसका आधार पृथक और आसानी से चिन्हित करने योग्य अवस्था या संरचना पर है। यही वह चरण हैं, जिनसे कोई प्रजनन एक के बाद एक ग़ुजरता है, इसके अलावा यह अवस्थाएं (संरचनाएं) जन्म से पूर्व, विकास के विभिन्न चरणों का नेतृत्व करतीं हैं और ऐसी वैज्ञानिक व्याख्याए उप्लब्ध करातीं हैं जो बहुत ही ऊंचे स्तर की तथा समझने योग्य होने के साथ-साथ व्यवहारिक महत्व भी रखतीं हैं। मातृ गर्भाशय में मानवीय प्रजनन विकास के विभिन्न चरणों की चर्चा निम्नलिखित पवित्र आयतों में भी समझी जा सकती हैं :
﴿أَلَمْ يَكُ نُطْفَةً مِنْ مَنِيٍّ يُمْنَى * ثُمَّ كَانَ عَلَقَةً فَخَلَقَ فَسَوَّى * فَجَعَلَ مِنْهُ الزَّوْجَيْنِ الذَّكَرَ وَالْأُنْثَى﴾ [الإنسان : 37-39]
‘‘क्या वह एक तुच्छ पानी का वीर्य न था जो (मातृ गर्भाशय में) टपकाया जाता है? फ़िर वह एक थक्का बना फिर अल्लाह ने उसका शरीर बनाया और उसके अंग ठीक किये फिर उससे मर्द और औरत की दो क़िसमें बनाई।''
(अल-कुरआन, सूर: 75, आयतः 37-39).
﴿ الَّذِي خَلَقَكَ فَسَوَّاكَ فَعَدَلَكَ * فِي أَيِّ صُورَةٍ مَا شَاءَ رَكَّبَكَ﴾ [سورة الانفطار : 7-8]
‘‘जिसने तुझे पैदा किया, तुझे आकार प्रकार (नक-सक) से ठीक किया, तुझे उचित अनुपात में बनाया और जिस स्वरूप में चाहा तुझे जोड़ कर तैयार किया।'' (अल-क़ुरआन, सूरः 82, आयतः 7-8 )