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हज़रत पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की जीवन के परिणाम       

इस लेख को हम शंस के कवि "लामारतीन" के कथन पर सम्पन्न करते हैं जो मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की महानता का बखान करते हुए कहता हैं:
"इस से पहले कभी ऎसा नहीं हुआ है कि किसी मनुष्य ने चाहते या न चाहते हुए अपने सामने इतना उच्च और महान लक्ष्य रखा हो, आपका उद्देश्य मनुष्य की शक्ति से बढ़ कर था, आप का उद्देश्य उस गुमराही और पथ भ्रष्टता को समाप्त करना था जो मनुष्य और उसके खालिक़ (उत्पत्तिकर्ता) के बीच बाधा और रुकावट बन के खड़ी थी, अल्लाह को मनुष्य से और मनुष्य को अल्लाह से जोड़ना और संबंधित करना था, और अनेक बुतों के देवताओं -जिनकी उस समय लोग पूजा करते थे- के उपद्रव (अफरातफरी) के बीच उलूहियत के उचित और पवित्र कल्पना को दुहराना और बहाल करना था। इस से पहले कभी भी ऎसा नहीं हुआ है कि किसी मनुष्य ने इस प्रकार के कमज़ोर साधन के साथ ऎसे महान कार्य का बेड़ा उठाया हो जो मनुष्य के बस से बाहर की चीज़ है, इसलिए कि आप ने अपने महान लक्ष्य की कल्पना करने और उसको नाफिज़ लागू करने में सर्वथा अपने ऊपर भरोसा किया, उस दूर रेगिस्तान के एक अज्ञात कोने में आप पर ईमान रखने वाले लोगों की एक मुठ्ठी भर लोगों के अतिरिक्त कोई अन्य आप का सहायक और मदद करने वाला नहीं था।
अन्ततः इस से पहले ऎसा भी कभी नहीं हुआ है कि किसी मनुष्य ने पूरी दुनिया में इस प्रकार की महान और सदा रहने वाली क्रान्ति और परिवर्तन पैदा करने में सफलता प्राप्त की हो, इसलिए कि इस्लाम के आने के दो शताब्दियों के अंदर ही उसने ईमान , दयालुता और विश्वास के द्वारा पूरे अरब द्वीप पर प्रभुत्ता प्राप्त कर लिया, और फिर अल्लाह के नाम से फ़ारिस, खुरासान, मा बैनन-नहरैन के देशों, पच्छिमी हिन्दुस्तान, सीरिया, हब्शा, पूरा उत्तरी अफ्रीक़ा, मध्य सागर के अनेक द्वीप, हस्पानिया, और गाल (फ्रांस) के कुछ भाग पर विजय प्राप्त कर लिया।
जब हम किसी मानव के अबक़री (अपूर्व बुद्धि का मनुष्य) होने के तीन मेयार (कसौटियों) : उद्देश्यकी महानता और उच्चता, साधनों की हीनता और कमी, तथा आश्चर्यजनक सफलता और कामयाबी को सामने रखें, तो किस के अंदर यह साहस (दम) है कि वह वर्तमान इतिहास में महान पुरूषों में से किसी की तुलना मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से कर सके? इन महा पुरूषों ने केवल हथियारों, या खुद-साख्ता क़ानूनों, या राज्यों का  निर्माण किया, उन्होंने भौतिक ढाँचों को खड़ा करने के सिवा कुछ नहीं किया जिन्हें उन्हों ने बहुधा अपनी आँखों के सामने गिरते और टूटते देखा।
किन्तु इस आदमी ने केवल सेनाओं, क़वानीन, राज्यों, प्रजा और ग़ुलामों को आन्दोलित नहीं किया, बल्कि उसके साथ ही उस समय एक तिहाई से अधिक भाग पर बसने वाले लाखों लोगों को भी आन्दोलित किया, बल्कि इस से भी कहीं अधिक उसने परमेश्वरों, मुक़द्दसात (पवित्र स्थलों), धर्मों, विचारों, आस्थाओं और प्राणों में भी आन्दोलन पैदा कर दिया, यह सब उस किताब शिक्षाओं के आधार पर हुआ जिस की एक एक आयत लोक एक संगठित क़ानून है। आप ने एक ऎसे रूहानी समुदाय (उम्मत) को जन्म दिया जिस में प्रत्येक नस्ल, रंग और भाषा के लोग घुल मिल गए। आप ने हमारे बीच इस्लामी उम्मत की एक अनमिट विशेषता छोड़ी है और वह है अल्लाह के साथ शिर्क करने से घृणा और नापसंदीदगी और केवल एक अकेले अल्लाह की इबादत करना जिसे निगाहें नहीं पा सकतीं। इस प्रकार मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर ईमान रखने वाले, झूठे और जाली माबूदों (पूजकों) और आसमान को अपवित्र कर देने वाले शिर्क के विरूद्ध अपने सख्त मौकि़फ से विशिष्ट हैं, पूरी दुनिया की एक तिहाई आबादी का आपके धर्म में प्रवेश कर लेना आप की चमत्कार (मोजिज़ा) है, और अधिक उचित होगा कि हम यह न कहें कि यह आदमी की चमत्कार है, बल्कि यह बुद्धि और अक़्ल की चमत्कार है।
एक माबूद की उपासना का तसाव्वुर, जिस की आप ने बुतों के सेवकों और पुजारियों के द्वारा लोगों के दिलों में बैठाये हुये खुराफातों और मिथ्याओं के बीच दावत दी, वह अपने आप में एक चमत्कार था कि आप के मुँह से निकलते ही उस ने बुतपरस्ती के सारे स्थलों को ध्वस्त कर दिया और एक तिहाई जगत को अपने प्रकाश से प्रकाशित कर दिया। आप का जीवन, संसार में आप के चिंतन और विचार, अपने देश  में पथ भ्रष्टाओं और खुराफात के विरूद्ध आपका बहादुराना आंदोलन, बुतों के पुजारियों की नाराज़गी और क्रोध के चैलेंज को स्वीकारने का साहस, पन्द्रह साल (सहीह बात यह है कि आप ने मक्का में तेरह साल तक दावत दी) तक मक्का में तक्लीफों और यातनाओं को सहने की क्षमता, क़ौम के अत्याचार और अपमान पर आप का सब्र करना यहाँ तक कि आप उनका शिकार बनने के क़रीब थे, इन सारी चीज़ों के होते हुए भी आपका अपनी दावत को निरंतर फैलाते रहना, जाहिलियत की आदतों और बुरे अख्लाक़ के विरूद्ध जंग करना, कामयाबी पर आपका गहरा विश्वास, कठिनाईयों के समय स्थिरता और शान्ति, जीत के समय आप की खाकसारी, आप का उत्साह जो केवल एक ही बिंदू पर केन्दि्रत था राज-काज और पद के संघर्ष में नहीं था, आप की नमाज़ें और प्राथर्नाएं जिनका सिलसिला बन्द नहीं होता था, अल्लाह से आप की मुनाजात और सर्गोशियाँ, और आपका मरना और मरने के बाद आप की शानदार कामयाबी - यह सब इस बात की गवाही देती हैं कि हम किसी झूठे दावेदार के सामने नहीं हैं, बल्कि सुदृढ़ और पक्का ईमान और टस से मस न होने वाले आश्वासन के सामने हैं जिसने आपके दीन को स्थापित करने की शक्ति प्रदान की, आप ने अपने अक़ीदा और आस्था की नीव दो बुनियादी सिद्धांतों पर रखीः वो यह कि अल्लाह एक है, और भौतिक रूप में उसको महसूस नहीं किया जा सकता, पहले सिद्धांत से हमें यह पता चलता है कि अल्लाह कौन है, और दूसरा सिद्धान्त उसकी जानकारी को ग़ैब से जोड़ता है, आप एक फिलास्फर (दार्शनिक) खतीब (वक्ता) धर्म-शास्त्री, विजेता, विचारक, संदेशवाहक, एक बुद्धिमान-धर्म और बिना बुतों और प्रतिमाओं वाली उपासना के संस्थापक, बीस राज्यों (के नेता), इसके अतिरिक्त एक आत्मिक राज्य (के नेता) जिसकी कोई सीमा नहीं, यह हैं मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम। जब हम किसी मनुष्य की महानता को मापने की सभी कसौटियों को देखें तो फिर हमें अपने आप से यह प्रश्न करना चाहिए कि क्या मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से महान कोई व्यक्ति  है?"




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