पैगंबर हज़रत मुहम्मद के समर्थन की वेबसाइट - हज़रत पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के 



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हज़रत पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के ईशदूत और संदेशवाहक होने की सत्यता पर कुछ अकली तर्क (दूसरा भाग)

दूसराः  अल्लाह तआला का यह फर्मान हैः


"अल्लाह तुझे क्षमा कर दे, तू ने उन्हें क्यों अनुमति दे दी? बिना इसके कि तेरे सामने सच्चे लोग खुल जाएं और तू झूठे लोगों को भी जान ले। (सूरा तौबाः ४३)
इस आयत में अल्लाह तआला ने आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की इस बात पर निंदा और डाँट-डपट की है कि आप ने तबूक के युद्ध से पीछे रह जाने वाले मुनाफिक़ों के झूठे बहानों को स्वीकार करने में शीघ्रता क्यों की? चुनांचे मात्र उनके क्षमायाचना करने पर ही उन्हें क्षमा कर दिया उनकी छान-बीन और जाँच-पड़ताल नहीं की ताकि सच्चे और झूठे की पहचान कर सकें।
तीसराः अल्लाह तआला का यह फर्मान,


"नबी के हाथ में बन्दी नहीं चाहियें जब तक कि धरती में अच्छी रक्तपात की युद्ध न हो जाये। तुम तो दुनिया का धन-दौलत चाहते हो और अल्लाह की इच्छा आखि़रत की है, और अल्लाह सर्व शक्तिमान और सर्व तत्वदर्शी है। अगर पहले ही से अल्लाह की ओर से बात लिखी हुई न होती तो जो कुछ तुम ने लिया है उस बारे में तुम्हें कोई बड़ी सज़ा होती।" (सूरा अनफालः ६७,६८)
आइशा रजि़यल्लाहु अन्हा कहती हैं : यदि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अल्लाह की उतारी हुई आयतों में से कोई चीज़ छुपाये होते तो इस आयत को अवश्य छुपाते :

"और तू अपने दिल में वह बात छुपाये हुये था जिसे अल्लाह ज़ाहिर करने वाला था और तू लोगों से डरता था, हालाँकि अल्लाह तआला इस बात का अधिक योग्य था कि तू उस से डरे।" (सूरा अहज़ाबः ३७) (सहीह बुख़ारी व सहीह मुस्लिम)
तथा अल्लाह तआला का फरमान हैः

"ऎ पैग़म्बर आप के अधिकार में कुछ नहीं।"(सूराआल-इम्रानः १२८)
तथा अल्लाह तआला का फरमान हैः

"उसने विमुखता प्रकट की और मुँह मोड़ लिया (केवल इस लिए) कि उस के पास एक अंधा आया। तुझे क्या पता शायद वह संवर जाता या उपदेश सुनता और उपदेश उसे लाभ पहुँचाता।"(सूरत अबसः १-४)
यदि आप मिथ्यावादी होते -और  आप सल्लल्लाहु   अलैहि  व सल्लम कदापि ऎसा नहीं थे- तो यह आयतें जिन में पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की डाँट-डपट और निंदा की गई है क़ुरआन में न होतीं।
लाईटनर (lightner) अपनी पुस्तक 'इसलाम धर्म' में कहता हैः
"एक बार अल्लाह तआला ने अपने नबी की ओर एक ऎसी वह्य अवतरित की जिस में आप की सख्त पकड़ की गई थी, इस लिए कि आप ने अपने चेहरे को एक ग़रीब अंधे आदमी से फेर लिया था ताकि एक धनवान प्रभावशाली आदमी से बात करें। और आप ने उस वह्य का प्रसार किया और उसे फैलाया। यदि आप वैसे ही होते जैसाकि मूर्ख ईसाई आप के संबंध में कहते हैं, तो इस वह्य का वजूद न होता।"
८.पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सच्चे नबी और पैग़म्बर होने तथा  आप जो  कुछ लेकर आये हैं उसकी सच्चाई का निश्चित प्रमाण सूरतुल-मसद्द है जिसमें इस बात का निश्चित फैसला है कि आप का चाचा अबू-लहब जहन्नम में प्रवेश करेगा, और यह सूरत आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की दावत के शुरू शुरू में उतरी है, अतः यदि आप मिथ्यावादी होते -और आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम  कदापि ऐसा नहीं थे- तो इस प्रकार निश्चित फैसला न घोषित करते इसलिए कि हो सकता है कि आप का चाचा मुसलमान हो जाये???
डा॰ गेरी मिलर (gary miller) कहता हैः यह व्यक्ति अबू-लहब इस्लाम से इस हद तक घृणा करता था कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जहाँ भी जाते वह आप के पीछे-पीछे चलता ताकि जो कुछ पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम कहते उसके महत्त्व को कम कर सके। यदि पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को अपरिचित और अनजाने लोगों से बात करते हुए देखता तो प्रतीक्षा करता रहता यहाँ तक कि आप अपनी बात खत्म करें ताकि वह उनके पास जाए, फिर उन से पूछता कि मुहम्मद ने तुम से क्या कहा है? अगर वह तुम्हें कोई चीज़ सफेद बताए तो समझो कि वह काली है और वह तुम से रात कहे तो वास्तव में वह दिन है। कहने का मक़सद यह है कि पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जो चीज़ भी कहते वह उसका विरोध करता था और लोगों को उसके बारे में शक में डालता था। अबू लहब की मृत्यु से दस साल पहले क़ुरआन की एक सूरत उतरी जिसका नाम 'सूरतुल मसद'  है, यह सूरत बतलाती है कि अबू लहब आग (नरक) में जाएगा, यानी दूसरे शब्दों में उसका अर्थ यह हुआ कि अबू लहब कभी भी इस्लाम में प्रवेश नहीं करेगा।
(मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को झूठा साबित करने के लिए पूरे दस सालों के दौरान अबू लहब को केवल यह करना चाहिए था कि वह लोगों के सामने आ कर कहताः मुहम्मद मेरे बारे में यह कहता है कि मैं शीघ्र ही आग (नरक) में जाऊँगा, किन्तु मैं अब यह घोषणा  करता हूँ कि मैं इस्लाम स्वीकार करना चाहता हूँ और मुसलमान बनना चाहता हूँ !!अब तुम्हारा क्या विचार है क्या मुहम्मद अपनी बात में सच्चा है या नहीं? क्या उसके पास जो वह्य आती है वह ईश्वरीय वह्य  है? किन्तु अबू लहब ने ऎसा बिल्कुल नहीं  किया जबकि उसका सारा काम पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का विरोध करना था लेकिन उसने इस मामले में आप का विरोध नहीं किया। यह कहानी गोया यह कह रही है कि  पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अबू लहब से कहते हैं कि तू मुझ से घृणा करता है और मुझे खत्म कर देना चाहता है। ठीक है मेरी बात का तोड़ करने का तेरे पास अच्छा अवसर है! किन्तु पूरे दस साल के बीच उसने कुछ नहीं किया!! न तो वह इस्लाम लाया और न ही कम से कम दिखाने के लिए इस्लाम क़बूल किया!
दस साल तक उसके लिए यह अवसर था कि एक मिनट में इस्लाम को ध्वस्त कर दे ! किन्तु यह बात मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की बात नहीं थी बल्कि उस हस्ती की ओर से वह्य थी जो ग़ैब (परोक्ष) को जानती है और उसे पता था कि अबू लहब कभी भी इस्लाम नहीं लायेगा।
अगर यह अल्लाह की ओर से वह्य न होती तो मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम इस बात को कैसे जान सकते थे कि जो कुछ सूरत में बताया गया है अबू लहब उस को साबित कर दिखायेगा?? अगर उन्हें यह पता नहीं होता कि यह अल्लाह की ओर से वह्य है तो वह पूरे दस साल तक इस बात पर दृढ़ता और विश्वास के साथ क़ाइम न रहते कि उनके पास जो चीज़ है वह सत्य है। जो आदमी इस तरह का खतरनाक चैलेंज रखता है उसके पास केवल यही एक अर्थ होता है कि यह अल्लाह की ओर से वह्य है!.

"अबू लहब के दोनों हाथ टूट गये और वह स्वयं नष्ट हो गया। न तो उसका माल उसके काम आया और न उसकी कमाई। वह शीघ्र  ही भड़कने वाली आग में जायेगा। और उसकी बीवी भी (जायेगी) जो लकडि़याँ ढोने वाली है, उस की गदर्न में मूंज की बटी हुई रस्सी होगी।" (सूरतुल-मसदः १-५)

९.क़ुरआन की एक आयत में 'मुहम्मद' के बदले 'अहमद' का नाम आया है, अल्लाह तआला ने फरमायाः

"और उस समय को याद करो जब मर्यम के बेटे ईसा ने कहा ऎ (मेरी क़ौम) बनी इस्राईल! मैं तुम सब की ओर अल्लाह का रसूल हूँ, मुझ से पहले की किताब तौरात की मैं पुष्टि (तसदीक़) करने वाला हूँ और अपने बाद आने वाले एक रसूल की मैं तुम्हें शुभ सूचना सुनाने वाला हूँ जिनका नाम अहमद है। फिर जब वह उनके पास स्पष्ट और खुले हुए प्रमाण लेकर आए तो ये कहने लगे यह तो खुला हुआ जादू है।" (सूरतुस्सफः ६)
अगर आप झूठे दावेदार होते -और आप हरगिज़ ऎसा नहीं थे- तो क़ुरआन में इस नाम का वर्णन न होता।

१० .आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का दीन आज तक क़ाइम है, और बराबर लोग बड़ी संख्या में इस में दाखिल हो रहे हैं और इसे अन्य धर्मों पर तरजीह (प्रधानता) दे रहें हैं, जबकि इस्लाम का दावती संघर्ष चाहे वह आर्थिक हो या मानवी जो इस्लाम के प्रसार एंव प्रचार के मैदान में किया जा रहा है वह कमज़ोर है, जबकि दूसरी ओर इस्लामी दावत के विरूद्ध किये जाने वाले संघर्ष बहुत शक्तिशाली और निरंतर हैं जो इस दीन को आड़े  हाथों लेने, इस को बदनाम करने और इसकी ओर से लोगों का ध्यान फेरने में कोई कमी नहीं करते हैं। यह केवल इस लिए है कि अल्लाह तआला ने इस दीन की हिफाज़त की जि़म्मे दारी ली है, अल्लाह तआला ने फरमायाः


"बेशक हम ने ही क़ुरआन को उतारा है और हम ही उसकी हिफाज़त करने वाले हैं।" (सूरतुल हिज्रः९)
अंग्रेज़ लेखक थामस कार्लायल (th.carlyle)
मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम  के बारे में कहता हैः
"क्या तुम ने कभी किसी झूठे आदमी को देखा है कि वह एक अनोखा दीन ईजाद अविष्कार  कर सकता है? वह ईंट का एक घर भी नहीं बना सकता! अगर वह चूना, गच्च और मटटी और इस प्रकार की अन्य चीज़ों की विशेषताओं को नहीं जानता है तो जो कुछ वह बनायेगा वह घर  नहीं है बल्कि वह मल्बे का ढेर और विभिन्न सामगि्रयों से मिला जुला एक टीला है। और वह इस बात के योग्य नहीं है की अपने स्तंभों पर बारह शताब्दी तक स्थापित रहे जिसमें बीस करोड़ मनुष्य बसते हों, बल्कि वह इस बात के योग्य है कि उसके स्तंभ ढह जायें और वह इस प्रकार ध्वस्त हो जाए कि उसका निशान भी न रह जाए। मुझे पता है कि मनुष्य पर अनिवार्य है कि वह अपने तमाम मामले में प्रकृति के क़ानून के अनुसार चले अन्यथा वह उसका काम करना बन्द कर देगी... वो काफिर लोग जो बात फैलाते हैं वह झूठ है चाहे वह उसको कितना ही बना सवाँर कर पेश करें यहाँ तक कि उसे वह सच्चा ख्याल करने लगें।.. यह एक सानिहा दुर्घटना है कि लोग राष्ट्र के राष्ट्र और समुदाय के समुदाय इन भ्रष्टाचारों के धोखे में आ जायें।"
चुनाँचे अल्लाह तआला की ओर से क़ुरआन की हिफाज़त और सुरक्षा के बाद क़ुरआन करीम एक पीढ़ी के बाद दूसरी पीढ़ी में किताबों और लोगों के सीनों में सुरक्षित कर दिया गया। क्योंकि उसको याद करना, उसकी तिलावत –पाठ- करना, उसको सीखना और सिखाना उन कामों में से है जिन्हें करने के मुसलमान बड़े इच्छुक होते हैं और उसके लिए दौड़ पड़ते हैं ताकि वह भलाई और कल्याण प्राप्त करें जिसका उल्लेख करते हुए पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः॑
"तुम में से सब से अच्छा –सर्वश्रेष्ट- वह आदमी है जो क़ुरआन सीखे और सिखाए।" (सहीह बुख़ारी)
क़ुरआन करीम में कुछ बढ़ाने या घटाने या उसके कुछ अक्षरों को बदलने के कई प्रयास किए गए किन्तु वह सारे प्रयास असफल हो गए, इसलिए कि उन्हें शीघ्र ही भाँप लिया गया और उनके और क़ुरआन की आयतों के बीच अन्तर को जानना सरल है।
जहाँ तक पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पवित्र सुन्नतों -अहादीसे पाक- की बात है जो इस्लाम धर्म -इस्लामी धर्म-शास्त्र- का दूसरा साधन है, उनकी हिफाज़त विश्वसनीय और भरोसे मन्द लोगों के द्वारा हुई है जिन्हों ने पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की हदीसों को ढूँढने और ढूँढ-ढूँढ कर जमा करने के लिए अपने आप को समर्पित कर दिया। चुनाँचे सहीह (विशुद्ध) हदीसों को बाक़ी रखा और ज़ईफ –कमज़ोर- हदीसों को स्पष्ट किया और घढ़ी हुई हदीसों पर टिप्पणी की। जो आदमी हदीस की उन किताबों को देखे जो पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की हदीसों से संबंधित हैं तो उसे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से सादिर होने वाली तमाम चीज़ों की हिफाज़त के लिए की जाने वाली कोशिशों और प्रयासों की हक़ीक़त का पता चल जायेगा और पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से जो हदीसें सहीह प्रमाणित हैं उनकी शुद्धता के बारे में उसके संदेहों का निवारण होजायेगा।
माईकल हार्ट –michael hart- अपनी "सौ प्रथम लोगों का अध्ययन" नामक किताब में कहता हैः
"मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने संसार के एक महान धर्म की स्थापना और प्रसार की और एक महान (हम यह कहते हैं कि पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पद का कोई और आदमी नहीं है बल्कि वह सबसे महान हैं) राजनीतिक विश्व व्यापी लीडर हो गये, चुनाँचे आज उनकी मृत्यु पर लगभग तेरह सदी बीत जाने के बाद भी उनका प्रभाव निरंतर शक्तिशाली और गहरा है।"
११. पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के द्वारा लाये हुए सिद्धांतों (उसूलों) की यथार्थता और उनका हर समय हर स्थान के लिए उचित और योग्य होना, तथा उन्हें लागू करने के जो अच्छे और शुभ परिणाम (नताईज) सामने आ रहे हैं - यह सब इस बात की गवाही देते हैं कि जो कुछ आप लेकर आए हैं, वह अल्लाह की ओर से वह्य है। तथा यहाँ पर यह प्रश्न है कि क्या पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के अल्लाह की ओर से भेजे हुए संदेशवाहक होने में कोई बाधा और रुकावट है जबकि आप से पहले बहुत से नबी और रसूल भेजे जा चुके हैं? अगर इसका उतर यह है कि इस में कोई अक़ली और शरई रुकावट नहीं है तो फिर (प्रश्न यह है कि) आप पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सारे लोगों के लिए पैग़म्बरी (ईश्दूतत्व) को क्यों नकारते हैं जबकि आप से पहले पैग़म्बरों की पैग़म्बरी को मानते हैं?!
१२.कारोबार, जंग, शादी-विवाह, आर्थिक मामलों, राजनीति और इबादतों...आदि के मैदान में मुहमम्द सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ज़ुबानी द्वारा इस्लाम ने जो संविधान और क़वानीन प्रस्तुत किये हैं, पूरी दुनिया के लोग एक साथ मिल कर भी उस तरह के संविधान और क़वानीन पेश नहीं कर सकते। फिर क्या यह बात समझ में आने वाली है कि एक अनपढ़ आदमी जो लिखना पढ़ना तक नहीं जानता था इस तरह का परिपूर्ण संविधान पेश कर सकता है जिसने पूरी दुनिया के मामले को संगठित कर दिया? क्या यह आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पैग़म्बरी और ईश्दूतत्व की सच्चाई को प्रमाणित नहीं करती और यह कि आप अपनी खाहिश इच्छा से कोई बात नहीं कहते थे?
१३.पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपनी दावत का आरंभ और उसका खुल्लम खुल्ला प्रसार उस समय किया जब आप चालीस साल की उमर को पहुँच गये और जवानी और शक्ति की अवस्था को पार कर गये और बुढ़ापा और आराम पसंदी की उमर आ गई।
थामस कार्लायल  अपनी किताब 'हीरोज़' में कहता हैः
"....जो लोग यह कहते हैं कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपनी पैग़म्बरी में सच्चे नहीं थे, उनके दावे का खण्डन करने वाली चीज़ों में से एक यह भी है कि उन्हों ने अपनी जवानी और उसके खूब सूरत दिनों को (खदीजा रजि़यल्लाहु अन्हा के साथ )चैन और आराम में बिताया और उस दौरì




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