Under category | अल्लाह के पैग़म्बर मुहम्मद | |||
Creation date | 2011-01-09 14:25:42 | |||
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पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लमके कुछ सदव्यवहार,
स्वभाव औरगुण-विशेषण.(दूसरा भाग)
१६. कृपा और सहानुभूति (शफक़त और रहम दिली) : अबू-क़तादा रजि़यल्लाहु अन्हु बयान करते हैं: अल्लाह के पैग़म्बरसल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अबुल-आस की बेटी उमामा को अपने कंधे पर उठाए हुए हमारेपास आए और नमाज़ पढ़ाई, जब आप रुकूअ में जाते तो उन्हें नीचे उतार देते और जब रुकूअसे उठते तो उन्हें दोबारा उठा लेते। (सहीह बुख़ारी व सहीह मुस्लिम)
१७. सरलता औरआसानीःअनस रजि़यल्लाहु अन्हु कहते हैं कि: पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लमनेफरमायाः
"मैं नमाज़ शुरू करता हूँ और मेरा इरादा नमाज़ को लम्बी करने का होता है, लेकिन मैं बच्चे के रोने की आवाज़ सुन कर अपनी नमाज़ हल्की कर देता हूँ; क्योंकिमैं जानता हूँ कि उसके रोने से उसकी माँ को कितनी परेशानी होगी।"(सहीह बुख़ारी वमुस्लिम)
१८. अल्लाह का डर और परहेज़गारी (संयम): अबू हुरैरह रजि़यल्लाहु अन्हु बयानकरते हैं कि पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः "कभी-कभार मैं अपनेघर वापस लौटता हूँ तो अपने बिछौने पर खजूर पड़ा हुआ पाता हूँ, मैं उसे खाने के लिएउठा लेता हूँ, फिर मैं डरता हूँ कि कहीं यह सदक़ा (ख़ैरात) का न हो। यह सोचकर मैंउसे रख देता हूँ।"(सहीह बुख़ारी वसहीह मुस्लिम)
१९. उदारता के साथ खर्च करनाःअनसबिन मालिक रजि़यल्लाहु अन्हु बयान करते हैं किः इस्लाम लाने पर पैग़म्बरसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से जो कुछ भी मांगा गया, आप ने उसे प्रदान कर दिया। वहकहते हैं: चुनांचे एक आदमी आप के पास आया तो आप ने उसे दो पहाड़ों के बीच चरने वालीबकरियों का रेवड़ प्रदान कर दिया। वह अपनी क़ौम के पास वापस लौट कर गया तो कहाः ऎक़ौम के लोगो! इस्लाम ले आओ; क्योंकि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम इतनी बख्शिश(अनुदान) देते हैं कि फाक़ा का कोई डर नहीं होता है। (सहीह मुस्लिम)
२०. आपसी सहयोग एंवसहायताप्रियताः आइाशा रजि़यल्लाहु अन्हा से जब यह पूछा गया कि पैग़म्बरसल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने घर में क्या किया करते थे? तो उन्हों ने कहाःअपने परिवार की सेवा-सहयोग में लगे रहते थे, और जब नमाज़ का समय हो जाता तो नमाज़के लिए निकल पड़ते थे। (सहीहबुख़ारी)
बरा बिन आजि़ब रजि़यल्लाहु अन्हु कहते हैं: मैंने ख़न्दक़ के दिन पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को देखा कि आप मट्टी ढो रहेथे यहाँ तक कि मट्टी से आपके सीने के बाल ढँक गये, और आप के बाल बहुत अधिक थे, इसीहालत में आप अब्दुल्लाह बिन रवाहा के यह रज्ज़ (अथार्त लड़ाई में पढ़ी जाने वाली छंद) पढ़ रहे थेः
ऎ अल्लाह! अगर तू न होता तो हम हिदायत (मार्ग दशर्न) न पाते।
न सदक़ा(ख़ैरात) करते, न नमाज़ पढ़ते।
अतः हम पर सकीनत (शशंति )नाजि़ल कर।
और यदि हमारी मुठभेड़हो तो हमारे पाँव जमा दे।दुश्मनों ने हम पर अत्याचार किया है।
अगर वह हमें फितने मेंडालना चाहेंगे तो हम इसका विरोध करेंगे।
बरा रजि़यल्लाहु अन्हु कहते हैं कि आपइन्हें ज़ोर- ज़ोर से पढ़ते थे। (सहीह बुख़ारी व सहीह मुस्लिम)
२१. सच्चाईः पैग़म्बरसल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पत्नी आइशा रजि़यल्लाहु अन्हा आप के बारें में कहतीहैं: पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के नज़दीक झूठ से सर्वाधिक नापसंदीदा( घृणास्पद) कोई और आदत नहीं थी। एक आदमी अल्लाह के पैग़म्बर के पास झूठ बोलता था तोआप उसकी वह बात अपने दिल में लिए रहते थे यहाँ तक कि आप को यह पता न चल जाए कि उसनेउस से तौबा कर ली है। (सुनन र्तिमिज़ी)
आप के दुश्मनों तक ने भी आप की सच्चाई की गवाहीदी है। यह अबू-जहल है जो पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सब से कट्टर दुश्मनोंमें से था, उस ने एक दिन आप से कहाः ऎ मुहम्मद! मैं आप को झूठा नहीं कहता, किन्तुआप जो कुछ लेकर आए हैं और जिस की दावत देते हैं, मैं उस का इन्कार करता हूँ। इस परअल्लाह तआला ने यह आयत उतारीः
"हमअच्छी तरह जानते हैं कि जो कुछ यह कहते हैं इससे आप दुखी होत हैं। सो यह लोग आप कोनहीं झुठलाते, लेकिन यह ज़ालिम लोग तो अल्लाह की आयतों का इन्कार करते हैं।"(सूरतुल-अनआमः ३३)
२२. अल्लाह की हुर्मतों (धर्म-निषिद्ध चीज़ों) का सम्मान :आइशारजि़यल्लाहु अन्हा बयान करती हैं: पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को जब भी दोकामों के बीच चयन करने का अवसर दिया जाता तो आप वही काम चयन करते जो आसान हो, जब तककि वह गुनाह का काम न होता। अगर वह गुनाह का काम होता तो आप उस से अति अधिक दूररहते। अल्लाह की क़सम आप ने कभी अपने नफस (स्वार्थ) के लिए बदला नहीं लिया, किन्तुअगर अल्लाह की हुर्मतों को पामाल किया जाता था तो आप अल्लाह के लिए अवश्य बदलालेते थे। (सहीह बुख़ारी वसहीह मुस्लिम)
२३. प्रफुल्लता (हंसमुख चेहरा):अब्दुल्लाह बिनहारिस रजि़यल्लाहु अन्हु कहते हैं: मैं ने पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सेअधिक तबस्सुम करने (मुसकुराने) वाला किसी को नहीं देखा। (सुनन र्तिमिज़ी)
२४. अमानत दारी और प्रतिज्ञा पालनःपैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की अमानत दारी अपनीमिसाल आप (अनुपम) थी। ये मक्का वाले जिन्हों ने उस समय जब आप ने अपनी दावत का एलानकिया, आप से दुश्मनी का बेड़ा उठा लिया और आप पर और आप के मानने वालों पर अत्याचारकिया। इनके और पैग़म्गर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के बीच इतनी दुश्मनी के बावजूद भीअपनी अमानतें आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास ही रखते थे। यह अमानत दारी उससमय अपनी चरम सीमा पर पहुँच गई जब इन्हीं मक्का वालों ने आप को हर प्रकार का कष्टसहने के बाद मदीना की ओर हिज्रत करने पर विवश (मजबूर) कर दिया तो आपने अपने चचेरेभाई अली बिन अबू-तालिब रजि़यल्लाहु अन्हु को यह आदेशश दिया कि वह तीन दिन के लिएअपनी हिज्रत स्थगित कर दें ताकि पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास (मक्कावालों की) जो अमानतें थीं, उन्हें उनके मालिकों को वापस लौटा दें। (सीरतइब्ने-हिशाम३/११)
इसी प्रकार पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के प्रतिज्ञा पालन का एक दर्शन(प्रतीति) यह है कि जब पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सुहैल बिन अम्र सेहुदैबिया के दिन संधि की अवधि (मुद्दत) पर समझौता कर लिया और सुहैल बिन अम्र ने जोशर्तें लगाई थीं उन में एक शर्त यह भी थी कि उसने कहाः हम में से जो भी आदमी - चाहेवह आप के दीन ही पर क्यों न हो - आपके पास जाता है तो आप उसे वापस कर देंगे और उसेहमारे हवाले कर देंगे।और इस शर्त के बिना सुहैल ने पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सुलह करने से इन्कार कर दिया तो मोमिनों ने इसे नापसंद किया और क्रोधप्रकट किया। चुनांचे उन्हों ने इसके बारे में बात चीत की। फिर जब सुहैल ने इस शर्तके बिना पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से सुलह करने से इन्कार कर दिया तो आप ने इस पर सुलह कर ली। अभी सुलह नामा लिखा ही जा रहा था कि सुहैल बिन अम्र के बेटेअबू-जन्दल बेडि़यों में जकड़े हुए आ गए। वह मक्का के निचले हिस्से से निकल कर आएथे। उन्हों ने अपने आप को मुसलमानों के बीच डाल दिया। यह देख कर अबू-जन्दल के बापसुहैल ने कहाः ऎ मुहम्मद! यह पहला व्यक्ति है जिस के बारे में मैं आप से मामला करताहूँ कि आप इसे वापस कर दें। पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहाः "इसकोमेरे लिए छोड़दो।" उसने कहाः मैं इसे आप के लिए नहीं छोड़ सकता। पैग़म्बरसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहाः "नहीं, इतना तोकर ही दो"। उसने कहाः मैं ऎसानहीं कर सकता। अबु-जन्दल को इसका एहसास हो गया, तो उन्हों ने मुसलमानों को उकसाते(जोश दिलाते) हुए कहाः "मुसलमानो! क्या मैं मुशरिकों की ओर वापस कर दिया जाऊँगाहालांकि मैं मुसलमान होकर आया हूँ? क्या तुम मेरी परेाशनी नहीं देख रहे हो?"उन्हें अल्लाह के रास्ते में बहुत अधिक कष्ट दिया गया था।
चुनाँचे पैग़म्बरसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने प्रतिज्ञा का पालन करते हुए उन्हें सुहैल बिन अम्रकी ओर वापस कर दिया। (सहीह बुख़ारी)
पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम नेअबू-जन्दल से फरमायाः "अबू-जन्दल! धीरज से काम लो और इस पर अल्लाह से पुण्य (अज्र वसवाब) की आशा रखो। अल्लाह तुम्हारे लिए और तुम्हारे साथ जो अन्य कमज़ोर मुसलमान हैंउन सब के लिए कुाशदगी (आसानी) और कोई रास्ता अवश्य पैदा करेगा। हम ने इन लोगों से सुलहकर ली है और हमारे और इनके बीच अह्ह्द व पैमान (प्रतिज्ञा) लागू हो चुका है और हमप्रतिज्ञा भंग (अहद शिकनी) नहीं कर सकते।" (मुसनद अहमद)
फिर पैग़म्बर सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लम मदीना वापस तश् रीफ़ ले आए, तो क़ुरैश का अबू-बसीर नामी एक आदमी मुसलमानहो कर आ गया, तो क़ुरैश ने उसको वापस लेने के लिए दो आदमियों को भेजा, उन्हों नेकहाः आप ने हम से जो वादा कियाथा उसको पूरा कीजिये। पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अबू-बसीर को उन दोनों आदमियों के हवाले कर दिया।
२५. वीरता और बहादुरीःअलीरजि़यल्लाहु अन्हु कहते हैं: मैं ने बद्र के दिन देखा है कि हम पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का आड़ लेते थे, और हमारे बीच आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से बढ़ कर दुश्मन के क़रीब कोई नहीं था। उस दिन आप सब से अधिक बलवान औरशक्तिाशली थे। (मुसनदअहमद) लड़ाई के मैदान से बाहर आप की बहादुरी और दिलेरी के बारेमें अनस बिन मालिक रजि़यल्लाहु अन्हु बयान करते हैं: पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम लोगों में सब से अच्छे और सब से बड़े वीर-बहादुर थे। एक रात मदीना वालेघबराहट और दहशत के शिकार हो गए और आवाज़ (शोर) की ओर निकले, तो पैग़म्बरसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उन्हें रास्ते में वापस आते हुए मिले। आप सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लम लोगों से पहले ही आवाज़ की ओर पहुंच कर यह निरीक्षण कर चुके थे किकोई खतरा नहीं है। उस समय आप अबू-तलहा के बिना ज़ीन के घोड़े पर सवार थे औरगदर्न में तलवार लटकाए हुए थे, और कह रहे थेः "डरो नहीं, डरो नहीं।"
फिर आप नेकहाः "हम ने इस (घोड़े) को समुद्र पाया", या आप ने यह कहा कि : "यह (घोड़ा) समुद्रहै।"(सहीह बुख़ारी व सहीहमुस्लिम)
मदीना वाले आवाज़ का शोर सुनकर घबराहट के आलममें हक़ीक़त का पता लगाने के लिए बाहर निकलते हैं, तो रास्ते में पैग़म्बरसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अकेले आवाज़ की ओर से वापस लौटते हुए मिलते हैं। आपउन्हें इतमिनान दिलाते हैं। आप एक ऎसे घोड़े पर सवार हैं जिसकी ज़ीन नहीं कसी गईथी; क्योंकि स्थिति का तक़ाज़ा था कि जल्दी की जाए। आप अपनी तलवार लटकाए हुए थे; क्योंकि उसके इस्तेमाल की आवश्यकता पड़ सकती थी। और आप ने उन्हें बताया कि आपके पासजो घोड़ा था वह समुद्र अर्थात बहुत तेज़ था, इसलिए आप ने मामले का पता लगाने के लिएअपने साथ लोगों के निकलने की प्रतीक्षा नहीं की।
उहुद की लड़ाई में पैग़म्बरसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सहाबा किराम से परामशर्र (सलाह-माशवरा) किया तोउन्हों ने लड़ाई करने की सलाह दी, और स्वयं पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लमकी राय दूसरी थी, किन्तु आप ने उनके मशवरा को स्वीकार कर लिया। लेकिन बाद मेंसहाबा को इस पर पछतावा हुआ क्योंकि आप की चाहत दूसरी थी। अन्सार ने (आपस में) कहा हमने पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की राय को ठुकरा दिया। चुनाँचे वह लोग आपके पास आए और कहाः ऎ अल्लाह के पैग़म्बर! आप को जो पसंद हो वही कीजिए, उस समय आप नेफरमायाः "कोई नबी जब अपना हथियार पहन ले तो मुनासिब नहीं कि उसे उतारे यहाँ तक किवह लड़ाई न कर ले।"(मुसनद अहमद)
२६. दानाशीलता और सखावतःइब्ने अब्बास रजि़यल्लाहुअन्हुमा कहते हैं: अल्लाह के पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम लोगों में सब सेबढ़ कर सखावत का दरिया -अति दानी-थे, और आपकी सखावत का दरिया रमज़ान में उस समय सबसे अधिक उफान पर होता था जब जिब्रील आप से मुलाक़ात करते थे, और जिब्रील आप सेरमज़ान की हर रात में मुलाक़ात करते थे और क़ुरआन का दौर कराते थे, उस समयपैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम खैर की सखावत में तेज़ हवा से भी आगे होत थे।(सहीह बुख़ारी व सहीह मुस्लिम)
अबू-ज़र रजि़यल्लाहु अन्हु फरमाते हैं: मैं मदीना केहर्रा (काले रंग की पथरेली ज़मीन) में चल रहा था कि हम उहुद पहाड़ के सामने आगए, तो आपसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहाः "ऎ अबू-ज़र"! मैं ने कहाः मैं हाजि़र हूँ ऎअल्लाह के पैग़म्बर! आप ने फरमायाः "मुझे यह पसंद नहीं है कि उहुद पहाड़ मेरे लिएसोना बन जाए और एक या तीन रात बीत जाए और उस में से मेरे पास एक दीनार भी बाक़ी रहजाए, सिवाए इसके कि मैं उसे क़र्ज के लिए रख लूँ, सिवाए इसके कि मैं उसे अपनेदायें, बायें और पीछे अल्लाह के बन्दों में बांट दूँ।" (सहीह बुख़ारी)
जाबिर बिनअब्दुल्लाह रजि़यल्लाहु अन्हु कहते हैं कि : ऎसा कभी न हुआ कि आप सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लम से कोई चीज़ मांगी गई हो और आप ने नहीं कह दिया हो।
(सहीहबुख़ारी व सहीह मुस्लिम)
२७. हया शर्मःअबू सईद ख़ुदरी रजि़यल्लाहु अन्हु कहते हैं: पैग़म्बरसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर्दे में रहने वाली कुंवारी औरत से भी अधिक हयादार( शर्मीले )थे, अगर आप कोई अप्रिय (नापसंदीदा) चीज़ देखते तो हमें आपके चेहरे से उसकापता चल जाता। (सहीह बुख़ारी व सहीह मुस्लिम)
२८. आजिज़ी व ख़ाकसारी (नम्रता व विनीति): पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम लोगों में सब से बढ़ कर ख़ाकसार (वì