Under category | अल्लाह के पैग़म्बर मुहम्मद | |||
Creation date | 2011-01-09 13:55:28 | |||
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पैग़म्बर मुहम्मद सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लम कौन हैं?
आप का नसब नामा (वंशावली) :
आप की कुन्नियत 'अबुल-क़ासिम' तथानाम 'मुहम्मद' है। आप के पिता का नाम 'अब्दुल्लाह' और दादा का नाम 'अब्दुलमुत्तलिब' है। आपका नसब 'अदूनान' तक पहुँचता है (जो अल्लाह के खलील) –दोस्त- इब्राहीम अलैहिस्सलाम के बेटे इस्माईल अलैहिस्सलाम जो अल्लाह के पैग़म्बर थे की औलाद में सेहैं। आप की माँ 'आमिनह' पुत्री 'वहब' हैं जिनका नसब भी 'अदनान' तक पहुँचता है जोइब्राहीम खलीलुल्लाह के बेटे पैग़म्बर इस्माईल अलैहिस्सलाम की औलाद में से हैं।पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम फरमाते हैं:"अल्लाह तआला ने किनानह को इस्माईल अलैहिस्सलाम की औलाद में से चुना, और क़ुरैश को किनानह में से चुना और क़ुरैश में से बनू-हाशिम को चुना है और बनू-हाशिम में से मुझे चुना है।" (सहीहमुस्लिम)
इस तरह आप का यह नसब पूरी धरती पर सबसे श्रेष्ट नसब है। इसकी गवाही आपके दुमनों ने भी दी है। अबु-सुफूयान जो इस्लाम लाने से पहले पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का कटूटर दुश्मन था, उसने रूम के शशसक हिरक़्ल के पास इसकी गवाहीदी।
अब्दुल्लाह बिन अब्बास राज़ीयल्लाहु अन्हुमा बयान करते हैं: अल्लाह के पैग़म्बरसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने क़ैसर रूम के बादाशह के पास उसे इस्लाम की दावत देनेके लिए पत्र लिखा और वह पत्र देहूया अल-कलबी- को देकर भेजा। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लम ने उन्हें आदेश दिया कि वह पत्र बुस्रा के गवर्नर को सौंप दें ताकि वहउसे क़ैसर तक पहुँचा दे। क़ैसर उस समय अल्लाह का शुक्रिया अदा करने के लिए हिमूस से ईलिया (वर्तमान बैतुल-मक़दिस ) आया था क्योंकि अल्लाह तआला ने ईरान की सेना पर उसेविजय प्रदान किया था। जब क़ैसर को अल्लाह के पैग़म्बर का पत्र मिला तो उसे पढ़ने के बाद उसने कहाः यहाँ से उनकी क़ौम का कोई आदमी ढूँढ कर मेरे पास लाओ ताकि मैं उस से मुहम्मद के बारे में पूछ-ताछ करूँ। इब्ने अब्बास कहते हैं कि अबू-सुफूयान ने मुझसे बताया कि वह उस समय क़ुरैशश के कुछ लोगों के साथ शाम में थे जो तिजारत के लिए आयेथे, यह उस समय काल की बात है जब अल्लाह के पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और कुफ्फारे क़ुरैशश के बीच संधि हुई थी। अबू-सुफूयान का कहना है कि क़ैसर के हरकारे नेशाम के किसी नगर मे हमें पा लिया और मुझे और मेरे साथियों को लेकर ईलिया(बैतुल-मक़्दिस) आया और हमें क़ैसर के शाही महल में ले गया, जो ताज पहने हुए अपने सिंहासन पर बिराजमान था और उसके चारों तरफ रूम के बड़े बड़े लोग थे।
उसने अपने तर्जुमान अनुवादक से कहाः इन से पूछो कि यह आदमी जो अपने आपको पैग़म्बर समझता है इससे इन में से कौन आदमी सब से निकट खानदानी संबंध रखता है?अबू-सुफूयान का कहना हैकि मैं ने कहाः मैं उस से सबसे निकट खानदानी संबंध रखता हूँ।
उसने कहाः तुम्हारे औरउनके बीच क्या रिश्तेदारी है?
मैं ने कहाः वह मेरे चचेरे भाई हैं। और इस कारवाँ मेंउस समय मेरे सिवा बनू-अब्दे मनाफ़ का कोई अन्य आदमी नहीं था। क़ैसर ने कहाः इसे मेरे क़रीब कर दो, और मेरे साथियों को भी मेरे पीछे मेरे कन्धे के पास बैठाने काआदेश दिया। फिर अपने तर्जुमान से कहाः इसके साथियों से बता दो कि मैं इस आदमी से उसव्यक्ति के बारे में प्रश्न करूँगा जो अपने आप को पैग़म्बर समझता है, अगर यह झूठ बोलेतो तुम लोग इसे झुठला देना।
अबू-सुफूयान कहते हैं: अल्लाह की क़सम अगर मुझे यह शर्म नआती कि मेरे साथी मेरे बारे में झूठ की चर्चा करेंगे तो जब उसने मुझसे आप के बारे में पूछा था मैं अवश्य उससे झूठ बोलता, लेकिन मुझे शर्म आई कि वह मेरे बारे में झूठकी चर्चा करें। इसलिए मैं ने उसे सच सच जवाब दिया।
फिर उसने अपने तर्जुमान से कहाःतुम लोगों में उसका नसब कैसा है?
मैं ने कहाः वह हमारे बीच ऊँचे नसब वाला है।
उसनेकहाः तो क्या यह बात इस से पहले भी तुम में से किसी ने कही थी?
मैं ने कहाःनहीं।
उसने कहाः क्या इसने जो बात कही है इसे कहने से पहले तुम उसे झूठ से आरोपितकरते थे?
मैं ने कहाः नहीं।
उसने कहाः क्या उसके बाप दादा में कोई बादाशह हुआहै?
मैं ने कहाः नहीं
उसने कहाः अच्छा तो बड़े लोगों ने उसकी बात मानी है या कमज़ोर लोगों ने?
मैं ने कहाः बल्कि कमज़ोरों ने।
उसने कहाः क्या यह लोग बढ़ रहे हैं या ?शटरहे हैं?
मैं ने कहाः बल्कि बढ़ रहे हैं।
उसने कहाः क्या उसके दीन में प्रवेश करनेके बाद कोई आदमी उसके दीन से नाराज़ होकर पलट (मूर्तद हो) जाता है?
मैं ने कहाःनहीं।
उसने कहाः क्या वह वादा खिलाफ़ी विश्वास घात करता है?मैं ने कहाः नहीं, किन्तु इस समय हम उसके साथ एक संधि की अवधि में हैं और हमें डर है कि वह गद्दारी री करेगा।अबू"-सुफयान कहते हैं कि इसके सिवा मैं कोई अन्य ऎसी बात घुसेड़ नहीं सका जिस सेआपकी निंदा कर सकूँ और मुझे उसके चर्चा का भय न हो।
उसने कहाः क्या तुम लोगों ने उससे या उसने तुम लोगों से लड़ाई की है?
मैं ने कहाः हाँ।
उसने कहाः तो उसकी और तुम्हारी लड़ाई कैसे रही?
मैं ने कहाः हमारी लड़ाई बराबर की रही, कभी वह जीता कभीहम।
उसने कहाः वह तुम्हें क्या आदेश देता है?
मैं ने कहाः वह हमें यह आदेशश देता हैकि हम केवल अल्लाह की इबादत (उपासना) करें उसके साथ किसी को भी साझी न ठहरायें, औरहमारे बाप दादा जो कुछ पूजते थे उससे हमें रोकता है, और वह हमें नमाज़, सच्चाई, पाकदामनी, वादा निभाने और अमानत अदा करने का आदेशश देता है।
जब मैं ने उस से यहकहा तो उसने अपने तर्जुमान से कहाः "इस आदमी (अबू-सुफयान) से कहोः मैं ने तुम से तुम्हारेबीच उस आदमी पैग़म्बर के नसब के बारे में पूछा तो तुम ने बताया कि वह ऊँचे नसब वालाहै। और दरअसल पैग़म्बर अपनी क़ौम के ऊँचे नसब में से भेजे जाते हैं।
मैं ने तुम सेपूछाकि क्या यह बात इस से पहले भी तुम में से किसी ने कही थी? तो तुम ने बतलायाकि नहीं। मैं कहता हूँ कि अगर यह बात इससे पहले तुम में से किसी और ने कही होती तोमैं सोचता कि यह आदमी एक ऎसे बात की पैरवी कर रहा है जो इससे पहले कही जा चुकीहै।
मैं ने तुम से पूछाकि क्या इसने जो बात कही है इसे कहने से पहले तुम उसे झूठ से आरोपित करते थे? तो तुम ने कहा कि नहीं। तो मैं समझ गया कि ऎसा नहीं हो सकता कि वहलोगों पर तो झूठ न बोले और अल्लाह पर झूठ बोले।
और मैं ने तुम से पूछाकि क्या उसके बाप दादा में कोई बादाशह हुआ है? तो तुम ने जवाब दिया कि नहीं। मैं कहता हूँ किअगर उसके बाप दादा में कोई बादाशह गुज़रा होता तो मैं कहता कि यह अपने बाप कीबादाशहत चाहता है।
मैं ने तुम से पूछाकि बड़े लोग इसकी बात की पैरवी कर रहे हैं याकमज़ोर लोग? तो तुम ने कहा कि कमज़ोर लोगों ने उसकी पैरवी की है। वास्तव में पैग़म्बरों के मानने वाले ऎसे ही लोग होते हैं।
मैं ने तुम से पूछाकि क्या वह लोगबढ़ रहे हैं या घट रहे हैं? तो तुम ने कहा कि वह बढ़ रहे हैं। दरअसल ईमान इसी तरहबढ़ता रहता है यहाँ तक कि मुकम्मल हो जाता है।
मैं ने तुम से यह पूछाकि क्या उस केदीन में प्रवेश करने के बाद कोई आदमी उस के दीन से नाराज़ (अप्रसन्न) होकर मूर्तदहोता है? तो तुम ने कहा कि नहीं। वास्तविकता यह है कि जब ईमान का आनन्द दिलों मेंघुल-मिल जाता है तो कोई उस से अप्रसन्न नहीं होता।
मैं ने तुम से यह पूछाकि क्यावह बेवफाई (प्रतिज्ञा भंग) करता है? तो तुम ने उत्तर दिया कि नहीं। और पैग़म्बर ऎसेही होते हैं, वह गद्दारी (अहद शिकनी) नहीं करते।
मैं ने पूछा कि क्यातुम लोगों नेउस से और उसने तुम लोगों से जंग की है? तो तुम ने कहा कि हाँ, और तुम्हारी और उसकीलड़ाई बराबर की रही है, कभी तुम हारे कभी वह हारे। पैग़म्बर ऎसे ही होत हैं कि उन की परीक्षा की जाती है और अंतिम परिणाम उन्हीं का होता है।
मैं ने तुम से यह भी पूछा कि वह तुम्हें किन बातों का हुक्म देता है? तो तुम ने बतलाया कि वह तुम्हें अल्लाहकी इबादत करने और उसके साथ किसी चीज़ को साझी न ठहराने का हुक्म देता है, तुम्हारेबाप दादा जिनकी पूजा करते थे उस से मना करता है, और नमाज़, सच्चाई, पाक-दामनी, प्रतिज्ञा-पालन और अमानत लौटाने का हुक्म देता है।
क़ैसर ने कहाःयह सब निःसंदेह उसपैग़म्बर की विशेषताएं हैं जिसके बारे में मुझे पता था कि वह आने वाला है, किन्तुमेरा गुमान यह नहीं था कि वह तुम में से होगा। जो कुछ तुम ने बताया है अगर वह सच है तो बहुत शीघ्र ही वह मेरे इन दोनों पैरों की जगह का मालिक हो जाएगा। अगर मुझे आशा होती कि मैं उसके पास पहुँच सकूंगा तो मैं उस से मिलने का कष्ट करता, और अगर मैंउसके पास होता तो उसके दोनों पाँव धुलता।
अबू-सुफयान ने कहाः फिर क़ैसर ने अल्लाह केपैग़म्बर का पत्र मंगाया और उसे पढ़ा गया, उस पत्र में इस तरह लिखाथाः
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
अल्लाह के दास (बन्दे) और पैग़म्बर मुहम्मद की ओर सेरूम के बादाशह हिरक़्ल के नाम
उस आदमी पर सलाम हो जो हिदायत की पैरवी करे।(अम्माबाद)
मैं तुम्हे इस्लाम का आमंत्रण देता हूँ। इस्लाम लाओ, सालिम (सुरक्षित) रहोगे। इस्लाम लाओ अल्लाह तुम्हें तुम्हारा अज्र दो बार देगा। अगर तुम ने मुँह फेरातो तुम पर अरीसियों (तुम्हारी प्रजा) का भी गुनाह होगा। "ऎ अहले-किताब! एक ऎसी बातकी ओर आओ जो हमारे और तुम्हारे बीच बराबर है;कि हम अल्लाह के सिवा किसी और को नपूजें, और उसके साथ किसी चीज़ को साझी न ठहराएं, और अल्लाह को छोड़ कर हम में से एकदूसरे को रब्ब (पालनहार) न बनाएं। अगर लोग मुँह फेरें तो कह दो कि तुम लोग गवाह रहोकि हम मुसलमान हैं।"
अबू-सुफयान ने कहाः जब वह अपनी बात पूरी कर चुका तो उसके पासबैठे हुए रूम के बड़े-बड़े लोगों की आवाज़ें ऊँची हुईं और बड़ा शोर व गुल मचा, परमुझे नहीं मालूम कि उन्हों ने क्या कहा। हिरक़्ल ने हमारे बारे में आदेशश दिया और हमबाहर निकाल दिये गये। जब मैं अपने साथियों के साथ बाहर आ गया और उनके साथ अकेले मेंहुआ तो मैं ने उन से कहाः "अबु-कब्शा के बेटे (यानी मुहम्मद) का मामला बहुत ज़ोर पकड़गया, उस से तो बनू-असफ़र (रूमियों) का बादाशह डरता है।अबु-सुफ`यान कहते हैं: अल्लाहकी क़सम इसके बाद मुझे लगातार यह विवास रहा कि उस का दीन ग़ालिब होकर रहेगा, यहाँतक कि अल्लाह तआला ने मेरे दिल में इस्लाम को बैठा दिया, जबकि मैं उसे नापसंद करताथा।