हज़रत आइशापुत्री हज़रत सिद्दीक़- अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे-
वास्तव में हज़रत आइशा-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे- तो मानवता के लिए उज्ज्वल सोंच, तीव्र बुद्धि और बेहद ज्ञान का नमूना थीं, हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-की हदीसों के कथन के माध्यम से और उनकी जीवनी के बहुत सारे पहलुओं को उजागर करके और अपने सोंच विचार द्वारा इस्लामी सोचा की बहुत ज़बरदस्त सेवा कींबल्कि उनमें उनका प्रभावी भूमिका रही l
वह केवल एक औरत की भूमिका की सीमाओं में ही न रहीं बल्कि उसको पार करके पूरे इस्लामी राष्ट्र का शिक्षक बन कर उभरीं l
वह क़ृरआन, हदीस और इस्लामी न्यायशास्त्र में सब से आगे आगे थीं, उनके बारे में उरवह बिन जुबैर का कहना है:''मैंने क़ृरआन और इल्मे फराएज़(मतलब मृतक के छोड़े हुए धन को उनके परिजनों के बीच बांटने के शास्त्र) और वैध अवैध काम या बात, अरबी कविताऔर साहित्यऔर अरबों के वंश की जानकारी में हज़रत आइशा-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे- से बढ़ कर किसी को नहीं पाया l''
इस विषय में हज़रत आइशा-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे- की विशेषताओं में से तीन क्षेत्र को उल्लेख करते हैं:
१-उनका सीखना और सिखाना
२- हज़रत आइशा क़ृरआन के अर्थकार और हदीस के कथावाचक के रूप में
३- इस्लामी धर्मशास्त्र की माहिर
मैंने इन तीनों क्षेत्रों को इसलिए चुना है क्योंकि इस्लामी समाज और सोच में उनका महत्व और प्रभाव स्पष्ट है, हज़रत आइशा-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे-का अपने सोंच और ज्ञान के द्वारा अवधारणाओं के संशोधन और हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-की सुन्नतों पर अमल कराने में बड़ा योगदान है, यही कारण है कि लोग दूर दूर से ज्ञान की प्राप्ति के लिए और उनके बेहद ज्ञान से लाभ लेने के लिए आया करते थे, जिससे वह एक रोशन दीपक के सामान थीं जिनका प्रकाश वैज्ञानिकों और छात्रों पर पड़ता था lजी हाँ वह हज़रत आइशा पुत्री अबू-बक्र अस-सिद्दीकऔर हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-की पत्नी थीं जो इस्लाम की महिलाओं में सबसे अधिक कुशल और समझ वाली थीं और क़ृरआन, हदीस और न्यायशास्त्र की सब से बड़ी जानकार थींl
वह पवित्र मक्का में हिजरत से आठ वर्ष पहले पैदा हुई थीं, और हिजरत के दूसरे वर्ष मेंहज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के साथ उनका विवाह हुआlऔर हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-की पवित्र पत्नियों के बीच सब से अधिक उनके द्वारा ही हदीसें कथित हुईं l
वह हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-की सबसे प्रिय पत्नियों में शामिल थीं, वह अपने बारे में हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-की पवित्र पत्नियों को संबोधित करते हुए बोलीं :''मुझे दस बातों में तुम सब पर बड़ाई दी गई है और यह बात मैं कोई गर्व दिखाने के लिए नहीं कह रही हूँ:मैं हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-की पत्नियों में उनको सब से प्रिय हूँlऔर मेरे पिता उनको सबसे प्रिय हैं, मैं उनकी शादी में आते समय कुंवारी थी और उनकी कोई भी पत्नी उनके विवाह में आते समय कुंवारी नहीं थींlजब मेरा उनसे मिलन हुआ तो मैं नौ साल की थीlऔर मेरी बेगुनाही का सबूत अल्लाह ने आसमान से उतारा, हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने अपनी अंतिम बीमारी में अपनी सारी पत्नियों से अनुमति लेकर मेरे ही पास रहने लगे थे, उन सब को बोल दिए थे कि मैं अब तुम सब की बारी में नहीं आ सकूंगा यह मेरे लिए ज़रा मुश्किल है इसलिए तुम लोग किसी एक के पास रहने की मुझे अनुमति दे दो, इस पर उम्मे सलमा बोलीं कि मैं जानती हूँ आप किसके पास रहना चाहते हैं, हम सब ने आपको अनुमति दे दी lइस दुनिया से आखिरी चीज़ जो उनके पवित्र मुंह पड़ी वह मेरे मुंह का पानी था, एक मिस्वाक लाया गया था तो उन्होंने कहा : ऐ आइशा! इसे अपने दांतों से कुचल कर मुझे दो तो मैं उसे कुचल कर और नरम करके उनको दियाl और वह मेरी गोद में थे और मेरी छाती के बीच में उनका निधन हुआ lऔर मेरे घर में दफन हुए l
यह हदीस अब्दुल मलिक बिन उमैर से कथित हुई, इसके कथावाचक तो सब ठीक हैं लेकिन इसके कथावाचक के चैन में दरार है, इसे इमाम ज़हबी ने उल्लेख किया है, देखिए “सियर अअलाम अन-नुबला”पेज नंबर:२/१४७ l
याद रहे कि उनका निधन ५८ हिजरी में हुआl
उनका ज्ञान और उपदेश
हज़रत आइशा-अल्लाह उनसे खुश रहे- पूरी दुनिया की महिलाओं में सब अधिक ज्ञान और धर्मशास्त्र की माहिर थीं, वह धर्म से जुड़े सारे क्षेत्रों में: क़ृरआन, हदीस और उन दोनों से संबंधित ज्ञान तफसीर और न्यायशास्त्र में ज़बरदस्त जानकारी और सोंच रखती थींlहज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के साथियों को जब भी किसी धर्मिक समस्या का सामना होता था तो वे उनसे उनका समाधान पूछते थे और उनकी समस्या का समाधान मिल जाता थाlअबू मूसा अशअरी इस विषय में कहते हैं :''जब कभी भी हम को (यानी हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के साथियों) को किसी हदीस के समझ में कोई कठिनाई पेश आती और फिर हम हज़रत आइशा से पूछते थे तो उनके पास ज़रूर हमें ज्ञान मिलता था l''
मुसलमानों के बीच हज़रत आइशा की स्थिति वैसी ही थी जैसे कि छात्रों के बीच शिक्षक कीlयदि वह हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के साथियों से कोई भी गलत कथन सुनती थीं तोवह उन्हें सही करती थीं, और स्पष्ट रूप से उनको सही बताया करती थीं, इस के लिए तो वह प्रसिद्ध थीं, और जिसको भी धर्मशास्त्र की किसी बात के विषय कोई संदेह होता था तो उनसे पूछ लिया करते थे l
वास्तव में हज़रत आइशा –अल्लाह उनसे खुश रहे- के पास बहुतविस्तृत ज्ञान था, इस स्थिति तक पहुँचने में बहुत सारे महत्वपूर्ण कारकों का योगदान था उन में से कुछ यह हैं:
-हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के साथ उनकी शादी कमउम्री में होने के कारण उनको हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के घर में अधिक से अधिक रहने का अवसर मिला और वह ज्ञान में हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-की छात्रा थी इसलिए उनको हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-की हदीसों को सुनने का ज़ियादा समय मिलाl
-उनके घर में और उनके कमरे में ईश्वानी उतरा करती और इसके कारण वह हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-की दूसरी पत्नियों पर बड़ाई रखती थीं l
- ज्ञान और पढ़ने पढ़ाने से उनको गहरा लगाव था, और यदि उनको किसी बात का ज्ञान नहीं होता था या कोई बात उनको समझ में नहीं आती थी तो वह पूछ लिया करती थी lअबू मुलैका उनके विषय में कहते हैं:यदि वह किसी बात को नहीं जानती तो उसके बारे में पूछती रहती थी और जान कर ही चैन की सांस लेती थीं l
उनके ज्ञान और न्यायशास्त्र में उनकी विशेषता के कारण उनका शुभ कमरा विद्वानों और छात्रों के लिए विश्वविद्यालय बन गया था बल्कि इस्लाम का पहला पाठशाला जिसका इस्लाम के इतिहास में सबसे बड़ा प्रभाव पड़ा lवह अपने और अपने छात्रों के बीच एक परदा डाल रखती थीं, जैसा की मसरूक़ ने कहा है:मैं परदा के पीछे से उनके ताली बजाने की आवाज़ को सुना करता था l''
वास्तव में हज़रत आइशा –अल्लाह उनसे खुश रहे- हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के सिखाने के तरीके पर चलती थीं और वह सिखाने का बड़ा ऊँचा तरीका था जब हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-अपने साथियों को सिखाया करते थे lउन्हीं तरीकों में से एक यह भी था कि सिखाने में जल्दी जल्दी नहीं करते थे बल्कि ठहर ठहर कर समझाते थे ताकि सीखने वालों को समझने का अवसर मिल सके lउरवा ने कहा कि हज़रत आइशा –अल्लाह उनसे खुश रहे- ने हज़रत अबू- हुरैरा की निंदा करते हुए कहा: क्या यह ठीक बात है कि अबू- हुरैरा आए और मेरे कमरे के पास बैठे और हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-से हदीस कथित करने लगे और मुझे सुनाने लगे जबकि मैं प्रार्थना और तस्बीह (अल्लाह की याद) में लगी थी और फिर मेरी तस्बीह पूरी होने से पहले उठ कर चले गए, यदि मैं उनको पकड़ती तो जवाब देती, निस्संदेह हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-तुम लोगों की तरह जल्दी जल्दी हदीस नहीं बयान करते थे l
शिक्षण का उनका एक तरीका यह भी था धर्म की बातों को खूब अच्छी तरह से बयान करती थी और व्यावहारिक तरीके से वुज़ू नमाज़ के हुक्म को स्पष्ट करती थीं, और धर्म से संबंधित किसी भी प्रश्न से उनको कोई परेशानी या तंगी नहीं होती थी और लोग उनसे अपनी बहुत निजी मुद्दों के विषय में भी प्रश्न कर लिया करते थे, फिर वह अपने जवाब में क़ृरआन और हदीस के प्रमाण का उल्लेख किया करती थीं, जैसा कि मसरूक़ के एक कथन में है, वह कहते हैं कि एक बार वह हज़रत आइशा के पास टेका लेकर बैठे थे , इतने में हज़रत आइशा बोलीं : ऐ अबू-आइशा! जो भी तीन बातों में से कोई एक बात बोले तो उसने अल्लाह पर बहुत बड़ा आरोप लगाया, तो मैंने पुचा वह क्या हैं? तो वह बोलीं : जो भी यह समझता है कि हज़रत मुहम्मद-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने अल्लाह को देखा तो उसने अल्लाह पर बहुत बड़ा आरोप लगाया, मसरूक़ ने कहा:मैं टेका लेकर बैठा था तो संभल कर बैठ गया और कहा: ऐ सभी मोमिनों की माता! ज़रा रुकिए, मुझे जल्दबाजी में मत डालिए, अल्लाह सर्वशक्तिमान ने यह नहीं कहा है?:
[التكوير / الآية - 23](ولقد رآه بالأفق المبين)
(और निस्संदेह उन्होंने उनको प्रत्यक्ष क्षितिज पर देखा है l)(सूरह तकवीर:२३)
[النجم / الآية - 13] {ولقد رآه نزلة أخرى}
(और निश्चय ही वह उसे एक बार और देखा) (अन-नज्म:१३)
इस पर वह बोलीं मैं पूरे मुसलमानों में सब से पहली हूँ जिसने हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-से इस विषय में प्रश्न किया तो उन्होंने फ़रमाया:वह जिबरील फरिश्ता थे, मैं ने उनको उनकी असली छवि पर जिस पर वह पैदा हुए केवल यही दो बार देखा हूँ, मैंने उनको आकाश से उतरते देखा, वह इतने बड़े थे कि उनसे आकाश और पृथ्वी भर गए थे
यह हदीस हज़रत आइशा से कथित है, और यह हदीस सही है, इसे इमाम मुस्लिम ने उल्लेख किया है, देखिए मुस्लिम शरीफ पेज नंबर:१७७l
और यह हदीस हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद और हज़रत आइशा से कथित है , और यह हदीस सही है, इसे इब्ने क़य्यिम ने उल्लेख किया है, देखिए “ज़ाद अल मआद”:३/३३l
और फिर हज़रत आइशा मसरूक़ को बोलीं :क्या तुम ने नहीं सुना? अल्लाह सर्वशक्तिमान फरमाता है:
(سورة الأنعام:102)(لا تدركه الأبصار وهو يدرك الأبصار وهو اللطيف الخبير)
“निगाहें उसे नहीं पा सकतीं, बल्कि वही निगाहों को पा लेता है , वह अत्यंत सूक्ष्म (एवं सूक्ष्मदर्शी) खबर रखनेवाला हैl”(सूरह अल-अनआम:१०२)
और क्या तुमने नहीं सुना? अल्लाह सर्वशक्तिमान ने फरमाया:
(وما كان لبشر أن يكلمه الله إلا وحيا أو من وراء حجاب أو يرسل رسولاً فيوحي بإذنه ما يشاء إنه عليٌ حكيم)(سورة الشورى :51)
“किसी मनुष्य की यह शान नहीं कि अल्लाह उससे बात करे, सिवाय इसके कि प्रकाशना के द्वारा या परदे के पीछे से (बात करे)lया यह कि वह एक रसूल (फ़रिश्ता) भेज देlनिश्चय ही वह सवोंच्च अत्यंत तत्त्वदर्शी हैl”(सूरह अश-शूरा:५१)
आगे हज़रत आइशा कहती हैं: और जो भी यह दावा करे कि अल्लाह के पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने अल्लाह की किताब में से कुछ छुपाया तो निसंदेह उसने अल्लाह पर बहुत बड़ा इल्ज़ाम लगाया, अल्लाह सर्वशक्तिमान फरमाता है:
(يا أيها الرسول بلغ ما أنزل إليك من ربك وإن لم تفعل فما بلغت رسالته) (سورة المائدة:67)
(ऐ रसूल! तुम्हारे पालनहार की ओर से तुमपर जो कुछ उतरा गया है, उसे पहुँचा दोlयदि ऐसा न किया तो तुमने उसका संदेश नहीं पहुँचायाl)(सूरह अल-माइदह:६७)
और इसके बाद बोलीं:और जो यह समझता है कि वह (हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-) कल क्या होने वाला है उसकी खबर देते हैं तो निसंदेह उसने अल्लाह पर बहुत बड़ा इलज़ाम लगाया, अल्लाह सर्वशक्तिमान फरमाता है:कहते हैं: (कहो:"आकाशों और धरती में जो भी हैं, अल्लाह के सिवाय किसी को भी परोक्ष का ज्ञान नहीं हैl)(अन-नम्ल:६५)
इस से हमारे लिए यह स्पष्ट हो गया कि हज़रत आइशा-अल्लाह उनसे खुश रहे- इस्लामी सोचा का एक मज़बूत गढ़ थी और ज्ञान प्राप्त करने वालों के लिए एक जलता दीया थी l
और हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-उनको उनकी चतुराई और ज्ञान के लिए उनके तड़प के कारण बहुत चाहते थे और उनसे प्यार रखते थे lहज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-उनके विषय में कहा: आइशा की बुलंदी सारी महिलाओं पर ऐसी ही जैसी “सरीद”(एक प्रकार का अरबी स्वादिष्ट खाना) की बुलंदी सारे भोजनों पर है l
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