Under category | इस्लामी युद्ध-नियम व संधि की हैसियत | |||
Creation date | 2014-12-01 09:17:24 | |||
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यह हिदायत भी की गई कि दुश्मनों के मुल्क में दाख़िल हो तो आम तबाही न फैलाओ। बस्तियों को वीरान न करो, सिवाय उन लोगों के जो तुम से लड़ते हैं, और किसी आदमी के माल पर हाथ न डालो। हदीस में बयान किया गया है कि ‘‘मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने लूटमार से मना किया है।’’ और आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का फ़रमान था कि ‘‘लूट का माल मुरदार की ही तरह, हलाल नहीं है।’’ यानी वह भी मुरदार की तरह हराम है। हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ (रज़ियल्लाहु अन्हु) फ़ौजों को रवाना करते वक़्त हिदायत फ़रमाते थे कि ‘‘बस्तियों को वीरान न करना, खेतों और बाग़ों को बरबाद न करना, जानवरों को हलाक न करना।’’ (ग़नीमत के माल का मामला इससे अलग है। इससे मुराद वह माल है, जो दुश्मन के लश्करों, उसके फ़ौजी कैम्पों और उसकी छावनियों में मिले। उसको ज़रूर इस्लामी फ़ौजें अपने क़ब्ज़े में ले लेंगी। लेकिन आम लूटमार वह नहीं कर सकतीं।)