पैगंबर हज़रत मुहम्मद के समर्थन की वेबसाइट - उसने दसवीं तारीख को इफाज़ा और विदाई का तवाफ किया



عربي English עברית Deutsch Italiano 中文 Español Français Русский Indonesia Português Nederlands हिन्दी 日本の
Knowing Allah
  
  

   

मैं जद्दा का निवासी हूँ, अल्लाह तआला ने इस साल मुझे बैतुल्लाह का हज्ज करने की तौफीक़ दी और मैं ने और मेरी पत्नी ने हज्ज किए (ज्ञात रहे कि हमने बिना हमला के हज्ज किया था और वहाँ हमारे रहने के लिए कोई स्थान नहीं था), हम ने अरफा के दिन के और मुज़दलिफा के मनासिक अदा किए, और दस तारीख को उसके सभी काम - कंकरी मारना, सई, और तवाफे इफाज़ा विदाई तवाफ समेत किए। फिर हम जद्दा चले गए और वहाँ शाम नौ बजे तक रहे, फिर मिना के लिए रवाना हुए ताकि वहाँ रात बिताएं, फिर हम ग्यारह तारीख को फज्र की नमाज़ पढ़ने के बाद जद्दा आ गए, और वहाँ ठहरे, फिर मगरिब के समय दुबारा मिना के लिए रवाना हुए और उस दिन की कंकरी मारे, और दो बजे रात तक मिना में ठहरे रहे, फिर जद्दा वापस आ गए, फिर बारह तारीख की ज़ुह्र की नमाज़ के बाद मिना के लिए रवाना हुए, और जमरात को कंकरी मारे, फिर मिना से अस्र के समय चार बजे बाहर निकल गए और जद्दा लौट आए। तो क्या हमारे ऊपर हज्ज के महीने मे विदाई तवाफ करना अनिवार्य है ॽ और क्या हमारे ऊपर इस बारे में कोई दम (क़ुर्बानी) अनिवार्य है ॽ



हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए है।

सव्र प्रथम :

हाजी के लिए सुन्नत यह है कि वह दिन के समय मिना में रहे, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने ऐसा ही किया है, और उसके लिए उससे मक्का या जद्दा के लिए निकलना जायज़ है, विशेषकर यदि उसने ऐसा मिना में जगह न होने की वजह से किया है।

शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह से प्रश्न किया गया कि : क्या तश्रीक़ के दिनों में मक्का से क़रीब उदाहरण के तौर पर जद्दा के लिए निकलना हज्ज में खराबी पैदा करता है ॽ

तो उन्हों ने उत्तर दिया : “वह हज्ज में खराबी नहीं पैदा करता है, किंतु बेहतर यह है कि इंसान रात और दिन मिना में रहे, जिस तरह कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम रात और दिन उसी में रहे।’’

“मजमूओ फतावा शैख इब्ने उसैमीन” (23/241, 242).

तथा प्रश्न सख्या : 36244 का उत्तर देखें।

दूसरा :

विदाई तवाफ इंसान के अपने हज्ज के आमाल से फारिग होने के बाद होता है, अर्थात मिना के दिनों और जमरात को कंकरी मारने के बाद होता है, और उसको इससे पहले करना न जायज़ है और न सही है, अतः जिसने दसवीं तारीख को या ग्यारहवीं तारीख को बिदाई तवाफ किया तो यह उसके लिए काफी न होगा।

तथा तवाफ इफाज़ा को विदाई तवाफ तक विलंब करना जायज़ है, जैसा कि प्रश्न संख्या (36870) के उत्तर में इसका उल्लेख हो चुका है।

शैख मुहम्मद बिन इब्राहीम रहिमहुल्लाह ने फरमाया : ‘‘किंतु जिसका निवास जद्दा में है और उसने जमरात को कंकरी मारने से फारिग होने से पूर्व तवाफे इफाज़ा किया और उसने अपने तवाफ में यह नीयत की कि वह इफाज़ा और विदाई का तवाफ है, तो यह उस के लिए विदाई तवाफ से काफी न होगा, क्योंकि उसने अभी हज्ज के काम पूरे नहीं किए हैं। और यदि उसका उपर्युक्त इफाज़ा का तवाफ कंकरी मारने से फारिग होने के बाद था और उसने उसकी नीयत इफाज़ा के लिए की थी, और उसी पर उसने विदाई तवाफ की तरफ से भी बस किया, और उसके बाद (मक्का में) नहीं ठहरा, बल्कि तुरंत यात्रा कर गया, तो वह उसके लिए विदाई तवाफ की तरफ से काफी होगा।”

“फतावा शैख इब्ने इब्राहीम” (6/108).

सारांश यह कि : आप लोगों का विदाई तवाफ करना सही नहीं है, और आप लोगों के हज्ज के मनासिक की अदायगी के बाद बिना (बिदाई) तवाफ किए जद्दा लौटने में आप लोगों के ऊपर एक दम अनिवार्य है, और वह एक बकरी है जिसे हरम में ज़ब्ह किया जायेगा और उसके गरीबों में वितरित कर दिया जायेगा।

इसी प्रकार बीवी पर भी एक बकरी अनिवार्य है, यदि वह विदाई तवाफ करने के समय मासिक धर्म की अवस्था में नहीं थी, क्योंकि मासिक धर्म वाली औरत से विदाई तवाफ समाप्त हो जाता है, इसलिए कि बुखारी (हदीस संख्या : 1755) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1328) ने इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा : (लोगों को आदेश दिया गया है कि उनका अंतिम काम बैतुल्लाह का तवाफ हो परंतु मासिक धर्म वाली औरत के लिए इसमें छूट दी गई है।”

और आप लोगों का इस समय बिदाई तवाफ करना सही नहीं है, और उसके करने से आप के ऊपर से दम समाप्त नहीं होगा, क्योंकि आप लोग बिना विदाई तवाफ के मक्का से प्रस्थान कर गए थे।

शैख इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाह से प्रश्न किया गया : हम लोग जद्दा के रहने वाले हैं, हम पिछले साल हज्ज के लिए आए थे, हमने विदाई तवाफ के अलावा सभी मनासिक पूरे कर लिए, हमने उसे ज़ुलहिज्जा के महीने के अंत तक विलंब कर दिया, और जब भीड़ भाड़ कम हो गई तो हम वापस आए, तो क्या हमारा हज्ज सही है ॽ

तो उन्हों ने उत्तर दिया : “यदि मनुष्य हज्ज करे और विदाई तवाफ को दूसरे समय के लिए विलंब कर दे तो उसका हज्ज सही है, और उसके ऊपर अनिवार्य है कि वह मक्का से बाहर निकलते समय विदाई तवाफ करे, यदि वह मक्का के बाहर के लोगों में से है जैसे कि जद्दा, या तायफ या मदीना वाले और उनके समान लोग तो उसके लिए प्रस्थान करना जायज़ नहीं है यहाँ तक कि वह काबा के गिर्द सात चक्कर लगाकर बैतुल्लाह को विदा करे, उसमें सई नहीं है, इसलिए कि तवाफे विदा में सई नहीं है बल्कि केवल तवाफ है, यदि वह बाहर निकल गया और विदाई तवाफ नहीं किया तो जमहूर विद्वानों के निकट उस पर दम अनिवार्य है, जिसे वह मक्का में कुर्बान करेगा और गरीबों व मिस्कीनों में वितरित कर देगा, और उसका हज्ज सही है, जैसाकि यह बात गुज़र चुकी है। और यही मत जमहूर विद्वानों का है। सारांश यह कि बिदाई तवाफ विद्वानों के सबसे सही कथन के अनुसार एक अनिवार्य काम है, और इब्ने अब्बास से प्रमाणित है कि उन्हों ने फरमाया : “जिसने हज्ज का कोई काम छोड़ दिया या उसे भूला गया, तो वह एक खून बहाए।” और यह एक नुसुक (हज्ज का काम) है जिसे इंसान ने जानबूझकर छोड़ दिया है, अतः उसके ऊपर एक खून बहाना अनिवार्य है जिसे वह मक्का में फक़ीरों और मिसकीनों के लिए ज़ब्ह करेगा, और उस व्यक्ति के इसके बाद (बिदाई तवाफ़ के लिए) वापस आने से वह उस से समाप्त नहीं होगा, यही पसंदीदा मत है और मेरे निकट यही सबसे राजेह (उचित) है, और अल्लाह तआला ही सबसे बेहतर ज्ञान रखता है।”




                      Previous article                       Next article




Bookmark and Share


أضف تعليق