Under category | एकेश्वरवाद का मानव-जीवन पर प्रभाव | |||
Creation date | 2013-09-17 14:31:04 | |||
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यह मानना कि अल्लाह हर इन्सान के क़रीब है, उसे देखता और सुनता है, इन्सान को इन्सान की दासता से आज़ाद करता है और बिचौलिए (Middle Man) की अवधारणा या कल्पना से आज़ादी देता है। इन्सान हर तरह के अंधविश्वास से आज़ाद हो जाता है।
अल्लाह का डर
डर दो तरह के होते हैं—
1. अल्लाह का डर (Fear of God),
2. ग़ैरुल्लाह का डर (Fear of non-God)
अर्थात् अन्धेरा, भूत, जानवर, हानि, दुर्घटना और मौत इत्यादि का डर।
ग़ैरुल्लाह का डर (Fear of non-God) इन्सान पर नकारात्मक प्रभाव डालता है और उसे डरपोक और कमज़ोर बनाता है और अल्लाह का डर इन्सान पर सकारात्मक प्रभाव डालता है और उसे बहादुर तथा ताक़तवर बनाता है। जब इन्सान यह मानता है कि सफलता और असफलता, दुख और सुख, अमीरी और ग़रीबी, ज़िन्दगी और मौत, सम्मान और अपमान, हानि और लाभ, स्वास्थ्य और रोग, बल और निर्बलता सबका देने या न देने या देकर वापस लेनेवाला एक अल्लाह है, तो इन्सान एक बहादुर सिपाही, हिम्मतवाला व्यापारी, ईमानदार टीचर, सही डॉक्टर, भला इंजीनियर बनता है।