पैगंबर हज़रत मुहम्मद के समर्थन की वेबसाइट - उसे रमज़ान में क़ुरआन पढ़ने के लिए समय नहीं मिलता



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Knowing Allah
  
  

   

मैं आपको रमज़ान के महीने के आगमन की बधाई देता हूँ। रमज़ान के महीने के शुरू में, मैं ने अपने आप से यह प्रतिज्ञा किया था कि क़ुरआन करीम को खत्म करूँगा, लेकिन अफसोस की बात है कि मैं सुबह छः बजे जागता हूँ और शाम को साढ़े पाँच बजे घर वापस आता हूँ। और रोज़ा इफतार करने के बाद थकावट मुझे घेर लेती है। तो मैं सो जाता हूँ और लगभग दस बजे तक सोता हूँ। फिर सेहरी तक जगा रहता हूँ लेकिन सोने वाले के समान होता हूँ और लगभग 12 बजे सेा जाता हूँ ताकि सुबह जाग सकूँ तो मैं इस स्थिति में क्या करूँ ॽ


हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

हम इस सम्मानित महीने की आपको बधाई देते हैं, और अल्लाह तआला से प्रार्थना करते हैं कि वह अपने ज़िक्र, अपने शुक्र और अपनी अच्छी इबादत करने पर हमारी मदद करे।

मुसलमान से अपेक्षित यह है कि वह दुनिया व आखिरत (लोक परलोक) के हितों को एक साथ रखे, अतः वह न तो ऐसा हो जाए जो, आखिरत पर ध्यान देने के तर्क से, दुनिया को त्याग कर देता और उसे बर्बाद कर देता है। और न ही उस आदमी की तरह हो जाए जो दुनिया ही पर ध्यान देता है और परलोक से उपेक्षा करता है।

बल्कि दुनिया का मक़सद यह है कि उस से आखिरत के लिए तोशा तैयार किया जाए, क्योंकि दुनिया स्थायी स्थान नहीं है, बल्कि यह एक गुज़रगाह है जिस से इंसान - ज़रूरी तौर पर - परलोक की तरफ स्थानांतरित हो जायेगा।

अतः बुद्धिमान मुसलमान वह है जो उस स्थानांतरण के लिए तैयारी करता है, इसीलिए नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से प्रश्न किया गया कि “सबसे होशयार और सबसे दूरदर्शी कौन है ॽ” तो आप ने फरमाया : “उनमें सबसे अधिक मौत को याद करने वाला, और सबसे अधिक उसकी तैयारी करने वाला।” इसे तब्रानी ने रिवायत किया है और मुनज़िरी ने “अत-तरगीब वत तहज़ीब” (4/197) में इसे हसन कहा है और हैसमी ने “मजमउज़्ज़वाइद” (10/312), तथा ईराक़ी ने “तखरीज अहादीसिल एहया” (5/194) में कहा है कि उसकी इसनाद अच्छी है और अल्बानी ने उसे “ज़ईफुत् तरगीब” (1964) में उल्लेख किया है।

अतः दुनिया से प्रस्थान करने के दिन के लिए तैयारी करना ज़रूरी है, क्योंकि वहीं स्थायी ठिकाना है, हम अल्लाह तआला से प्रश्न करते हैं कि वह हमें अपनी दया व करूणा के ठिकाने में एकत्रित करे।

मुसलमान को चाहिए कि वह दुनिया के काम और आखिरत के काम दोनों करे, क्योंकि इनसान को आवास, धन, कपड़े, खानी और पानी की आवश्यकता होती है ताकि उसका शरीर जीवित रहे, तथा उसे शुद्ध ईमान, नमाज़, रोज़ा, अल्लाह का ज़िक्र, क़ुरआन की तिलावत और लोगों के साथ भलाई करने ..... की भी आवश्यकता होती है ताकि उसका दिल जावित रहे।

अल्लाह तआला ने फरमाया :

﴿يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اسْتَجِيبُوا لِلَّهِ وَلِلرَّسُولِ إِذَا دَعَاكُمْ لِمَا يُحْيِيكُمْ﴾ [الأنفال : 24]

“ऐ ईमान वालो! तुम अल्लाह और उसके रसूल का कहना मानो जब वह तुम्हें बुलाए उस चीज़ की तरफ जो तुम्हें जीवन प्रदान करती है।” (सूरतुल अनफाल : 24)

अतः मुसलमान को रमज़ान और रमज़ान के अलावा में क़ुरआन पढ़ने की आवश्यकता है।

इसलिए उसका क़ुरआन करीम का एक हिस्सा निर्धारित होना चाहिए जिसे वह प्रति दिन पाबंदी के साथ पढ़े, ताकि वह क़ुरआन को - अधिकतम रूप से - चालीस दिन में एक बार खत्म कर सके। जहाँ तक रमज़ान का मामला है तो उससे इससे अधिक मात्रा में पढ़ना अपेक्षित है, क्योंकि वह क़ुरआन पढ़ने और नेकियों के सर्वश्रेष्ठ मौसमों में से है, (अल्लाह तआला का फरमान है):

﴿شَهْرُ رَمَضَانَ الَّذِي أُنزِلَ فِيهِ الْقُرْآنُ﴾ [البقرة : 185]

“रमज़ान का महीना वह है जिसमें क़ुरआन उतारा गया।” (सूरतुल बक़रा : 185)

आप अपने दिन से एक घण्टा निकाल सकते हैं जिसमें आप क़ुरआन करीम के दो से अधिक पारे पढ़ सकते हैं, इस तरह आप महीने में दो या तीन बार क़ुरआन खत्म कर सकते हैं, तथा आप आने जान में जो समय गुज़ारते हैं उससे भी लाभ उठा सकते हैं, इसलिए क़ुरआन हमेशा आपके साथ रहे आपके हाथ से अलग न हो, और आप इस बात का अनुभव करेंगे कि, यदि आप ने इसकी पाबंदी की तो इस संछिप्त समय में, आप ने कई बार क़ुरआन खत्म कर लिया है। तथा आप जिसके यहाँ काम करते हैं उससे काम के घंटों को कम करने पर समझौता कर सकते हैं, भले ही इसके मुक़ाबले में वेतन कम कर दी जाए, अल्लाह तआला आपको इसके बदले भलाई प्रदान करेगा, तथा आप अंतिम दस दिनों या उसके कुछ हिस्सों में छुट्टी ले सकते है, सारांश यह कि आप इस महीने से लाभ उठाने की अपनी ताक़त भर कोशिश करें। अभी अवसर मौजूद है, और दिन बाक़ी हैं। हम अल्लाह तआला से दुआ करते हैं कि वह हमें अपने आज्ञापालन में लगाए।

और अगर आप काम के घंटों को कम नहीं करा सकते या कुछ दिनों के लिए छुट्टी नहीं ले सकते, तो आपको चाहिए कि यथाशक्ति अपने समय से लाभ उठाएं, और अगर अल्लाह तआला आपकी तरफ से इस बात को जान लेगा कि अगर काम न होता तो आप क़ुरआन की तिलावत करने के अभिलाषा और उत्सुक थे, तो आपको आपकी नीयत के अनुसार पुण्य प्रदान करेगा।

अल्लाह तआला आपको उस चीज़ की तौफीक़ दे जिसे वह पसंद करता और खुश होता है।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।




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