पैगंबर हज़रत मुहम्मद के समर्थन की वेबसाइट - रोज़ा सूरज के डूबने तक है, न कि जैसा कि कुछ शीया का कहना है



عربي English עברית Deutsch Italiano 中文 Español Français Русский Indonesia Português Nederlands हिन्दी 日本の
Knowing Allah
  
  

   

मैं रोज़े और इफतार के विषय में प्रश्न करती हूँ, मैं ने शिया मत की अनुयायी अपनी पड़ोसिनों के साथ बात किया तो उन्हों ने एक आयत पढ़ी जिसमें यह वर्णित है कि रोज़ा सफेद धागे से रात तक है, मात्र सूरज के डूबने तक नहीं है। उन्हों ने मुझसे यह बात कही है, आशा है कि मुझे इस बारे में सूचित करेंगे, अल्लाह तआला आपको अच्छा बदला दे।

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

रोज़े का समय जिस पर मुसलमानों की सर्वसहमति है और जो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और आपके सहाबा के समय से हमारे इस दिन तक निरंतर चला आ रहा है : फज्र सादिक़ के निकलने से शुरू होता है और क्षितिज के पीछे पूरी तरह से सूरज के गोले के गायब हो जाने पर समाप्त होता है, इस पर क़ुरआन व हदीस और मुसलमानों का निश्चित सर्व सम्मत तर्क स्थापित करता है। अल्लाह तआला ने फरमाया :

﴿ثُمَّ أَتِمُّوا الصِّيَامَ إِلَى اللَّيْلِ ﴾ [البقرة :187]

‘‘फिर रात तक रोज़े को पूरे करो।’’ (सूरतुल बकरा : 187) और अरबी भाषा में रात सूरज के डूबने से शुरू होती है।

‘‘अल-क़ामूसुल मुहीत’’ (1364) नामी शब्दकोष में आया है कि : “अल्लैल” (यानी रात) : सूरज के डूबने से फज्र सादिक़ (प्रभात) या सूरज के निकलने तक है।” अंत हुआ।

तथा “लिसानुल अरब” (11/607) नामक शब्दकोष में आया है कि : “अल्लैल” (यानी रात) : दिन के पीछे है, और उसकी शुरूआत सूरज डूबने से होती है।” अंत हुआ।

तथा हाफिज़ इब्ने कसीर रहिमहुल्लाह ने इस आयत की व्याख्या में फरमाया है कि :

“और अल्लाह तआला का फरमानः ﴿ثُمَّ أَتِمُّوا الصِّيَامَ إِلَى اللَّيْلِ ﴾ [البقرة : 187] “फिर तुम रात तक रोज़े को पूरे करो।” (सूरतुल बकरा : 187) एक शरई आदेश के तौर पर सूरज डूबने के समय रोज़ा इफतार करने की अपेक्षा करता है।” अंत हुआ।

‘‘तफ्सीरुल क़ुरआनिल अज़ीम’’ (1/517).

बल्कि कुछ भाष्यकारों ने इस बात पर चेतावनी दी है कि आयत में हर्फुल जर "إِلَى" (इला) का प्रयोग शीघ्रता करने का अर्थ देता है, क्योंकि यह हर्फ उद्देश्य के समाप्त होने का अर्थ रखता है।

अल्लामा ताहिर बिन आशूर रहिमहुल्लाह ने फरमाते हैं :

“ ("إِلَى اللَّيْلِ" - इला अल्लैल) अर्थात रात तक उद्देश्य है जिसके लिए (इला) का शब्द चुना गया है ताकि सूरज डूबने के समय रोज़ा इफतार करने में जल्दी करने का अर्थ दर्शाए ; क्योंकि (इला) के साथ उद्देश्य जुड़ा नहीं रहता है, शब्द (حتى - हत्ता) के विपरीत, अतः यहाँ पर रोज़े के पूरा करने को रात के साथ मिलाना है।” अंत हुआ।

‘‘अत-तहरीर वत-तन्वीर’’ (2/181).

इन सभी बातों की ताकीद (पुष्टीकरण) उस हदीस से होती है जो सहीह बुखारी व सहीह मुस्लिम में अमीरूलम मोमिनीन उमर बिन खत्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्हों ने कहा कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “जब रात यहाँ से आ जाए और दिन यहाँ से चला जाए और सूरज डूब जाए तो रोज़ेदार के इफतार का समय हो गया।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 1954) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1100) ने रिवायत किया है।

तो इस हदीस में पूरब की दिशा से रात के आने और क्षितिज के पीछे सूरज के गोले के गायब हो जाने के बीच मिलाया गया है, और यह एक ऐसी चीज़ है जिसका अवलोकन (मुशाहदा) किया जाता है, क्योंकि क्षितिज के पीछे सूरज की रोशनी के मात्र गायब होने से पूरब की दिशा में अंधेरा शुरू हो जाता है।

हाफिज़ इब्ने हजर रहिमहुल्लाह ने फरमाया :

“आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान “जब यहाँ से रात आ जाए” अर्थात् : पूरब की दिशा से, और इससे अभिप्राय इन्द्रिज्ञान में अंधेरे का पाया जाना है, और इस हदीस में तीन बातें उल्लेख की गई हैं ; इसलिए कि यद्यपि वे मौलिक रूप से एक दूसरे को लाज़िम (आवश्यक) हैं, किंतु प्रत्यक्ष रूप में वे एक दूसरे को लाज़िम नहीं हैं, हो सकता है कि पूरब की ओर से रात के आने का गुमान किया जाए और वास्तव में उसका आगमन न हो, बल्कि कोई ऐसी चीज़ हो जो सूरज की रौशनी को ढाँप ले, यही मामला दिन के जाने का भी है, इसी वजह से उसे अपने इस फरमान के साथ सबंधित किया है कि : “और सूरज डूब जाए”, यह इस बात का संकेत है कि रात के आने और दिन के प्रस्थान का निश्चित होना शर्त है और वे दोनों सूरज के डूबने के माध्यम से ही हो सकते है, न कि किसी अन्य कारण से।” अंत हुआ।

“फत्हुल बारी” (4/196).

तथा नववी रहिमहुल्लाह ने फरमाया :

“विद्वानों का कहना है : इन तीनों में से हर एक अन्य दोनों चीज़ों पर आधारित और उन दोनों को लाज़िम हैं, और उन दोनों को एक साथ इसलिए उल्लेख किया गया है कि हो सकता है कि वह घाटी इत्यादि में हो जहाँ से सूरज के डूबन को न देखा जा सकता हो, तो वह अंधेरे के आने और उजाले के चले जाने पर निर्भर (भरोसा) करेगा।” अंत हुआ।

“शरह मुस्लिम” (7/209).

तथा बुखारी (हदीस संख्या : 1955) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1101) ने अब्दुल्लाह बिन अबू औफा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा : “हम अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ एक यात्रा में थे और आप रोज़े से थे, तो जब सूरज डूब गया तो आप ने क़ौम के किसी आदमी से कहा : ऐ फलाँ ! उठो और सत्तू को पानी में मिलाओ - ताकि हम उसे पिएं -, तो उसने कहा : ऐ अल्लाह के पैगंबर ! शाम हो जाने दें। आप ने कहा : उतरो और हमारे लिए सत्तू घोलो। उसने कहा : ऐ अल्लाह के पैगंबर ! शाम हो जाने दें। आप ने कहा : उतरो और हमारे लिए सत्तू घोलो। उसने कहा : अभी दिन बाक़ी है। आप ने फरमाया : उतरो और हमारे लिए सत्तू का घोल बनाओ। तो वह उतरा और उनके लिए सत्तू घोला, तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उसे पिया, फिर फरमाया : जब तुम रात देख लो कि यहाँ से आ गई है तो रोज़ेदार के इफ्तार का वक़्त हो गया।”

हाफिज़ इब्ने हजर रहिमहुल्लाह ने फरमायाः

“इस हदीस में इफतारी में जल्दी करने का मुसतहब होना पाया जाता है, और यह कि रात के एक हिस्से में खाने पीने से रूका रहना सिरे से अनिवार्य नहीं है, बल्कि ज्यों ही सूरज का डूबना निश्चित हो जाए इफतार करना जायज हो गया।” अंत हुआ।

“फतहुलबारी” (4/197).

फिर यह बात भी है कि सूरज डूबने के समय मगरिब की नमाज़ के लिए मुवजि़्ज़न की अज़ान सुनते ही इफतार करने और खाना खाने पर मुसलमानों की सर्वसहमति इस बात का प्रमाण है कि यही सत्य है, और जिसने इसका विरोध किया उसने मोमिनों के रास्ता के अलावा का अनुसरण किया, और उसने ऐसी चीज़ गढ़ी और अविष्कार की जिसकी उसके पास कोई दलील और पूर्वजों से उद्धृत कोई शुद्ध ज्ञान (प्रमाण) नहीं है।

नववी रहिमहुल्लाह ने फरमाया :

“मगरिब की नमाज़ में सूरज के डूबने के बाद जल्दी की जायेगी, और यह सर्व सम्मत है, और इसके बारे में शीया से ऐसी चीज़ वर्णित है जिसकी ओर ध्यान नहीं दिया जायेगा, और उसका कोई आधार भी नहीं है।” अंत हुआ।

“शरह मुस्लिम” (5/136).

बल्कि शीया की बहुत सी किताबों में ऐसी बात आई है जो इस मसअले में मुसलमानों की सर्वसहमति के अनुरूप है।

कुछ लोगों ने जाफर सादिक़ रहिमहुल्लाह से उनका यह कथन रिवायत किया है कि : “जब सूरज डूब जाए तो इफतार जायज हो गया और नमाज़ अनिवार्य हो गई।” अंत हुआ।

किताब “मन ला यहज़ोरूहुल फक़ीह” (1/142), “वसाइलुश शीया” (7/90).

तथा अल-बरोजरदी ने “साहिबुद दआइम” से उनका कथन उल्लेख किया है : “हमें रिवायत किया गया है अहले बैत से - उन सब पर अल्लाह की दया हो - सर्वसहमति के साथ जो कि हमें पता चला है उनसे रिवाय करने वालों से, कि रात का प्रवेश करना जो कि रोज़ेदार के लिए इफतार करना जायज़ कर देता है वह सूरज के गोले का गायब होना है क्षितिज में बिना किसी पहाड़ या दीवार इत्यादि के आड़ के जो उसे छुपाने वाला हो, अगर क्षितिज में सूरज का गोला गायब हो गया तो रात दाखिल हो गई और इफतार जायज़ हो गया।” अंत हुआ।

“जामिओ अहादीसिश शीया” (9/165).

सारांश यह कि आज कुछ शीया का मगरिब की नमाज़ को विलंब करने और सूरज के डूबने की एक अवधि के बाद रोज़े में इफतार करने का जो मत है वह क़ुरआन करीम और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत के प्रमाणों और मुसलमानों की सर्वसहमति के विपरीत और विरूद्ध है।

तथा वह उस चीज़ के भी विपरीत है जिसे स्वयं उन्हों ने ही अपने इमामों से उल्लेख किया है !

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखने वाला है।




                      Previous article                       Next article




Bookmark and Share


أضف تعليق