पैगंबर हज़रत मुहम्मद के समर्थन की वेबसाइट - पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और महिला का सम्मान -1



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Knowing Allah
  
  

   

अल्लाह के नाम से आरम्भ करता हूँ जो अति मेहरबान और दयालु है।

 

पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और महिला

                  : الحمد لله وكفى وسلام على عباده الذين اصطفى، أما بعد    

हर प्रकार की प्रशंसा सर्व जगत के पालन हार अल्लाह तआला के लिए योग्य है, तथा अल्लाह की कृपा एंव शांति अवतरित हो अनितम संदेष्टा मुहम्मद पर, तथा आप के साथियों,  आप की संतान और आप के मानने वालों पर।

इस्लाम के शत्रु निरंतर यह राग अलापते रहें हैं कि इस्लाम ने नारी पर अत्याचार किया है, उसे दबा कर रखा है, उसे उसके अधिकारों से वंचित कर दिया है और उसका स्थान मात्र पुरूष के लिए नौकरानी और उसके आनन्द के साधन से बढ़ कुछ नहीं है।

किन्तु इस मिथ्या और झूठ आरोप का महल शीघ्र ही धराशार्इ हो जाता है जब हम इस बात से अवगत होते हैं कि पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने किस प्रकार नारी को सम्मान प्रदान किया, उस के वैभव को उंचा किया, उस के सलाह व मश्वरे को स्वीकार किया, उस के साथ नर्मी का रवैया अपनाया, और समस्त परिसिथतियों में उस के साथ न्याय किया तथा उसे उसके सम्पूर्ण अधिकार प्रदान किए जिसकी वह इस से पूर्व कल्पना भी नहीं कर सकती थी।

इस्लाम से पूर्व अरबवासी -स्वभाविक रूप से- लड़कियों को नापसंद करते थे और उन्हें लज्जा का कारण समझते थे, यहां तक कि जाहिलियत[1]  -अज्ञानता- के समय काल के कुछ अरब लड़कियों को जीवित ही गाड़ देने में प्रसिद्ध थे। क़ुरआन करीम ने इस का चित्र इस प्रकार खींचा है:

''उन में से जब किसी को लड़की होने की सूचना दी जाए तो उसका चेहरा काला हो जाता है और दिल ही दिल में घुटने लगता है। इस बुरी खबर के कारण लोगों से छुपा छुपा फिरता है। सोचता है कि क्या इस को अपमानता के साथ लिए हुए ही रहे या इसे मटटी में दबा दे। आह! क्या ही बुरे फैसले करते हैं। (सूरतुन-नहल 16 : 58-59 ) 

जाहिलियत के युग में जब किसी महिला का पति मर जाता था, तो उस आदमी के बेटे और रिश्तेदार उस औरत के वारिस बन जाते थे। फिर वह चाहते तो उसे अपने में से किसी को बियाह देते,  और अगर चाहते तो उसे विवाह से वंचित कर देते और जीवन भर उसे वैसे ही रोके रखते। इस्लाम ने इस -अत्याचार और कुप्रथा- को समाप्त कर के ऐसे न्याय पूर्ण नियम और दस्तूर बनाए जो बराबरी के साथ स्त्री एंव पूरूष दोनों के अधिकारों की ज़मानत हैं।

पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सूचना दी है कि मानवता के अन्दर स्त्री, पूरूष के बराबर है। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने  फरमाया:

''महिलाएं, पूरूषों के समान हैं। (इसे अहमद, अबू दाउद और त्रिमिज़ी ने रिवायत किया है।)

अत: इस्लाम में पुरूष लिंग और स्त्री लिंग के बीच कोर्इ मतभेद नहीं है जैसाकि इस्लाम के शत्रु कल्पना करते हैं, बल्कि दोनों लिंगों के बीच भार्इचारा और पुराव है।

क़ुरआन करीम ने र्इमान -विश्वास-, कार्य और उसके प्रतिफल -बदले- में पुरूष एंव स्त्री के बीच बराबरी को प्रमाणित किया है। अल्लाह तआला का फर्मान है:

''नि:सन्देह मुसलमान मर्द और मुसलमान महिलाएं,  मोमिन मर्द और मोमिन औरतें,  आज्ञाकारी मर्द और आज्ञाकारी औरतें,  सत्यवादी मर्द और सत्यवादी औरतें,  धैर्य करने वाले मर्द और धैर्य करने वाली औरतें,  विनम्र मर्द और विनम्र औरतें,  दान करने वाले मर्द और दान करने वाली औरतें,  रोज़े रखने वाले मर्द और रोज़े रखने वाली औरतें, अपनी शरमगाह (सतीत्व) की सुरक्षा करने वाले मर्द और सुरक्षा करने वाली औरतें,  अधिक सें अधिक अल्लाह का जि़क्र करने वाले मर्द और जि़क्र करने वाली औरतें -इन सब- के लिए अल्लाह तआला ने क्षमा -बखिशश- और बड़ा पुण्य तैयार कर रखा है।“ (सूरतुल अहज़ाब 33:35)



[1] जाहिलियत का शाबिदक अर्थ होता है अज्ञानता य ज्ञान को स्वीकार न करना। इस से अभिप्राय पैग़म्बर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के र्इश्दूतत्व से पूर्व का समय काल है, जिस में अरब के लोग धर्म से अनभिगता और हसब-नसब पर गर्व आदि पर स्थापित थे। इसे सामान्य अज्ञानता का काल कहा जाता है जो पैग़म्बर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के र्इश्दूतत्व से समाप्त हो चुका है। 




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