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क़िराअत को बुलन्द और धीमी आवाज़ में करने का बयानः

64- सुबह (फज्र) की नमाज़, तथा जुमुआ, ईदैन (ईदुल फित्र और ईदुल अज़्हा) और सलातुल इस्तिस्क़ा (बारिश मांगने की नमाज़), कुसूफ (सूर्य या चाँद ग्रहण) की नमाज़ और इसी प्रकार मग़रिब और इशा की पहली दो रकअतों में किराअत बुलन्द आवाज़ से करेंगे।

तथा जुहर और अस्र की नमाज़ में, और इसी प्रकार मग़रिब की तीसरी रकअत में तथा इशा की अंतिम दोनों रकअतों में क़िराअत धीमी आवाज़ से करेंगे।

65- इमाम के लिए कभी कभार सिर्री नमाज़ में मुक़तदियों को आयत सुनाना जाइज़ है।

66- जहाँ तक वित्र और रात की नमाज़ (तहज्जुद) का संबंध है, तो उन में कभी धीमी आवाज़ से क़िराअत करेंगे और कभी तेज़ आवाज़ से और आवाज़ को ऊँची करने में बीच का रास्ता अपनायें गे।




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