Under category | पैगंबर मुहम्मद की नमाज़ का विवरण | |||
Creation date | 2010-12-12 06:00:05 | |||
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सूरतुल फातिह़ा पढ़ने का बयानः
50- फिर मुकम्मल सूरतुल फातिह़ा पढ़े, - और बिस्मिल्लाह भी उसी में शामिल है -, और यह नमाज़ का एक रुक्न है, जिस के बिना नमाज़ सही (शुद्ध) नहीं होती है, अतः गैर अरबी लोगों के लिये इसे याद करना अनिवार्य है।
51- जो आदमी इस को याद करने की ताक़त नहीं रखता है तो उस के लिए यह पढ़ना काफी हैः "सुब्हानल्लाह, अल्हम्दुलिल्लाह, ला इलाहा इल्लल्लाह, अल्लाहु अकबर, ला हौला वला क़ुव्वता इल्ला बिल्लाह"
52- और सुन्नत का तरीक़ा यह है कि सूरतुल फातिह़ा को एक एक आयत अलग अलग कर के पढ़े और हर आयत के अंत में ठहरे, चुनांचि "बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम" पढ़े, फिर ठहर जाये, फिर "अल्हम्दुलिल्लाहि रब्बिल आलमीन" पढ़े,फिर रुक जाये फिर "अर्रहमानिर्रहीम" पढ़े,फिर रुक जाये ... और इसी तरह सूरत के अन्त तक पढ़े।
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पूरी क़िराअत इसी तरह हुआ करती थी, आप हर आयत के आखिर में ठहरते थे और उसे बाद वाली आयत से नहीं मिलाते थे, भले ही उस का अर्थ उस से संबंधित होता था।
53- तथा "मालिक" और "मलिक" दोनों पढ़ना जायज़ है।