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Under category संदेह और उनके उत्तर
Creation date 2007-11-04 10:19:52
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क्या मुसलमान "हजरे अस्वद"(शुभ कअबा में जड़े काले पत्थर) को पूजते हैं?

 

कुछ लोग यह प्रश्न उठा कर मुसलमानों पर यह आरोप लगाना चाहते हैं कि वे भी"हजरे अस्वद"(शुभ कअबा में जड़े काले पत्थर) को पूजते हैंऔर यह कहना चाहते हैं कि मुसलमान भी शुभ कअबा का फेरा लगाते हैं और वह भी तो उन्हीं पत्थरों में से एक पत्थर है जिनसे जाहिलीयत (इस्लाम से पहले) के समय में मूर्तियां तराशे जाते थे, इसलिए दोनों पत्थरों में कोई अंतर नहीं है l 

 


याद रहे कि यह आरोप बिल्कुल नासमझी पर आधारित हैlवास्तव में  इस्लाम एक ऐसा धर्म है जो उच्च शिष्टाचार और नैतिकता और अच्छे बर्ताव का आदेश देता हैl  इसलिए इस्लाम से पहले की वह बातें और आदतें जिनसे आपस में भाईचारा और एकदूसरे की सहायता की भावनाएं पनपती हैं रहने दिया l 
इसपर एक उदाहरणले लिजिए, इस्लाम पूर्व बुतपरस्ती के समय में "अल-फुदूल संधि" की मान्यता थीlकहा जाता है कि यह लोगों का आपस में एक प्रकार का समझौता था जिसके आधार पर पीड़ित का समर्थन होगा, अत्याचारमें दबे हुए और क़ैदी के छुटकारे का प्रयास होगा , उधार और ग़रीबी में फंसे हुए की सहायता होगी,मक्का के लोगों के उत्पीड़न से विदेशियों की रक्षा होगी ,और इस प्रकार के दूसरे मानवीय कार्य अंजाम दिए जाएँगेlतो पैगंबर हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो-ने इस संधिको सराहा और कहा, "यदि मैं इस जैसे के लिए आमंत्रित कियाजाता तो  मैं ज़रूर स्वीकार करता l" (देखिए :"सीरत इब्ने हिशाम, १, १३३-१३५)   

 


अल्लाह के पैगंबर हज़रत इबराहीम –सलाम हो उनपर- की विरासत में मिली चीजों में यह बात भी शामिल है कि वह शुभ कअबा का फेरा लागाते थे और उसका सम्मान करते थे और"हजरे अस्वद" को चूमते थे l   

इसके इलावा कई शुभ हदीसों में है कि यह पत्थर स्वर्ग के पत्थरों में से एक पत्थर है l  लेकिन यहाँ यह बात याद रखना ज़रूरी है कि वही बात मानी जाएगी जो शुद्ध और सही कथन के द्वारा पैगंबर हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो-से साबित है और यह बात तो पक्की है कि वह शुभ कअबा के फेरे के समय "हजरे अस्वद" को चूमते थे l    
और यही बात हज़रत उमर बिन अल-ख़त्ताब-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे- से कथित सही हदीस में है कि उन्होंने शुभ कअबा के फेरे के समय कहा:" अल्लाह की क़सम मुझे पता है कि तुम सिर्फ एक पत्थर हो न कुछ लाभ दे सकते हो और न कुछ नुक़सान पहुँचा सकते हो, और यदि मैं हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो-को तुझे चूमते न देखा होता तो मैं कभी तुझे न चूमता l"(देखिए, बुखारी और मुस्लिम) 

 


यह बात किसी भी रूप में मानी नहीं जा सकती है कि हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो-के इस चूमने को मूर्तिपूजा से कोई संबंध है (क्योंकि मूर्तिपूजक तो अपनी मूर्तियों को देवता समझते हैं और उनकी पूजा करते हैं और मुसलमान"हजरे अस्वद" कोखुदा नहीं समझते हैं बल्कि उसे पत्थर ही समझते हैं l) और फिर यह चूमना तो अल्लाह के द्वारा दिए गए आदेश में शामिल है l  इसलिए इस चूमने को मूर्तिपूजा से कोई संबंध नहीं है l 

 

 

हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो-ने एक हदीस में फरमाया :"

(خذوا عنى مناسككم)

(अपने हज के तरीके मुझ से ले लोl)(इसे अबू-नुएम ने "मुस्तख़रज" में उल्लेख किया है, देखिए, हदीस नंबर:२९९७और बैहकी ने भी इसे उल्लेख किया है , देखिए ५,१२५l)

याद रहे कि हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो-के के चूमने से यह काम हज और उमरा के कामों में शामिल हो गयाl  वास्तव में, इस पत्थर को सम्मान देना अल्लाह सर्वशक्तिमान की आज्ञाकारीता का आइना है क्योंकि उसीने इस बात का आदेश दिया, फिर यहाँ यह बात भी याद रहे कि अल्लाह सर्वशक्तिमान ने एक अन्य पत्थर को पत्थर से मार कर उसके उल्लंघन करने का आदेश भी दिया है, और वह भी हज के काम में शामिल है (शुभ मक्का में एक पत्थर का लंबा सा खम्बा है जिसपर हाजी कंकर फेंकते हैं और उसे रुसवा करते हैं क्योंकि उसी जगह पर शैतान ने हज़रत इबराहीम –सलाम हो उनपर- को बहकाने की कोशिश की थी तो उन्होंने उसे धुतकार दिया था और उसपर पत्थर फेंके थे l) इस से पता चला कि असल में पत्थर तो पत्थर ही है उसमें अपने आप से कोई विशेषता नहीं है lयह विषय असल में अल्लाह सर्वशक्तिमान की आज्ञाकारीता और उसके आदेश पर आधारित हैlयदि वह किसी पत्थर के सम्मान का आदेश देता है तो उसका सम्मान करना होगा और यदि किसी पत्थर के उल्लंघन का आदेश देता है तो उसका उल्लंघन करना होगा l        




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