Under category | क्यू एंड ए | |||
Creation date | 2013-09-15 15:21:12 | |||
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मैं अति मेहरबान और दयालु अल्लाह के नाम से आरम्भ करता हूँ।
إن الحمد لله نحمده ونستعينه ونستغفره، ونعوذ بالله من شرور أنفسنا، وسيئات أعمالنا، من يهده الله فلا مضل له، ومن يضلل فلا هادي له، وبعد:
हर प्रकार की हम्द व सना (प्रशंसा और गुणगान) केवल अल्लाह के लिए योग्य है, हम उसी की प्रशंसा करते हैं, उसी से मदद मांगते और उसी से क्षमा याचना करते हैं, तथा हम अपने नफ्स की बुराई और अपने बुरे कामों से अल्लाह की पनाह में आते हैं, जिसे अल्लाह तआला हिदायत प्रदान कर दे उसे कोई पथभ्रष्ट (गुमराह) करने वाला नहीं, और जिसे गुमराह कर दे उसे कोई हिदायत देने वाला नहीं। हम्द व सना के बाद :
एकेश्वरवाद का मानव-जीवन पर प्रभाव
अल्लाह को एक और अकेला मानना
एकेश्वरवाद के मानने का मतलब निम्नलिखित बातों का मानाना है—
व्यक्ति और समाज की सभी बुराइयों की जड़ एक और सिर्फ़ एक है और वह है एकेश्वरवाद को न मानना अर्थात् यह नहीं मानना कि अल्लाह का अस्तित्व है, वह देख रहा है और सबको उसका सामना करना है। एकेश्वरवाद के सिलसिले में समाज में चार तरह के लोग पाए जाते हैं—
एकेश्वरवाद को मानने का लाभ तब होता है, जब एक और सिर्फ़ एक अल्लाह को माना जाए। इस बात को हम एक उदाहरण से समझ सकते हैं। मान लीजिए, हमारे पास ज़मीन का एक टुकड़ा है जो झाड़-झंकार, कंकर-पत्थर से भरा हुआ है और हम वहाँ गेहूं उगाना चाहते हैं। अगर हम ज़मीन तैयार किए बिना उसमें बहुत उत्तम क़िस्म का बीज डाल दें, तो हमें अच्छी फ़सल की उम्मीद नहीं करनी चाहिए।
हमें सबसे पहले झाड़-झंकार और कंकर-पत्थर से ज़मीन को साफ़-सुथरा करना चाहिए और अच्छी तरह ज़मीन तैयार करनी चाहिए। फिर उसमें बीज बोना चाहिए, तब हम अच्छी फ़सल की उम्मीद कर सकते हैं।
यही मामला इन्सान के मन-मस्तिष्क का भी है। अगर उसमें एक अल्लाह के अलावा दूसरे ख़ुदा भी मौजूद हों, तो फिर एकेश्वरवाद का पूरा लाभ नहीं मिलता और उसके पूरे प्रभाव इन्सान की ज़िन्दगी पर नहीं पड़ते। एकेश्वरवादका मानना इन्सान की ज़िन्दगी में केन्द्रीयता लाना है, न कि संकट और बिखराव।