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हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-और बहुविवाह प्रथा - 2

 

 

 

५-पांचवीं पत्नी हज़रत ज़ैनब बिनते जहश
"मैं कभी किसी महिला को नहीं देखी जो ज़ैनब से अधिक धर्म का पालन करनेवाली हो और उनसे अधिक अल्लाह का डर रखनेवाली हो और उनसे अधिक सच सच बात करनेवाली हो और उनसे अधिक अपने रिश्तों को जोड़नेवाली हो और उनसे अधिक दान देनेवाली हो और सभी दानों और इबादतों में कोई उनसे अधिक अल्लाह सर्वशक्तिमान को पाने की इच्छा रखती हो l”

 

 

जी हाँ, यह था मोमिनों की मां हज़रत आइशा-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे-का विचार जो अपनी सौतन ज़ैनब बिनते जहश के विषय में दी l
 लेकिन इसके बावजूद इस्लाम के दुश्मनों का आरोप है कि हज़रत पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने अपने मुंहबोले बेटे ज़ैद बिन हारिसा की पत्नी से शादी की जबकि उन्होंने उनसे तलाक़ हो जाने के बाद शादी की थी lक्योंकि मुंहबोला बेटा तो अपना बेटा नहीं होता है और इस्लाम में मुंहबोले बेटे की पत्नी से तलाक़ हो जाने के बाद निकाह करना जाइज़ है और इस में कोई आरोप की बात नहीं है l
डॉक्टर हैकल अपनी पुस्तक "मुहम्मद के जीवन”में कहते हैं :वास्तव में  यह ईसाई धर्म प्रचार की खुली बकवास है या विज्ञान के नाम पर धोखाधड़ी का फल है जो ऐसे आरोप लगाए जा रहे हैं lबल्कि सच तो यही है कि यह आरोप ईसाई धर्म प्रचार में इस्लाम के खिलाफ पुराने विरोध से उत्पन्न हुआ रिज़ल्ट है जो मुस्लमानों और ईसाइयों के बीच लड़े गए युद्धों के बाद बहुत बढ़ गए थे l

 

 

 

हम यहाँ उन दुश्मनों के ध्यान में यह तथ्य लाना चाहते हैं कि हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-की उनके मुंहबोले बेटे ज़ैद बिन हारिसा की छोड़ी हुई पत्नी से शादी करने में एक बहुत बड़ा मक़सद था और वह यह था कि इस्लाम एक ग़लत प्रचलित रिवाज को मिटाना चाहता था lदरअसल इस्लाम मुंहबोले बेटे की आदत को जड़ से खत्म करना चाहता था क्योंकि इस आदत में एक तो झूट की मिलावट है और दूसरा इस में तथ्यों से खिलवाड़ किया जाता है क्योंकि बच्चा तो किसी और का होता है और फिर दूसरे की ओर जोड़ दिया जाता है lजिसके कारण लोगों के जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ता है l
यह आदत पूर्व इस्लामी समाज में जड़ पकड़ा हुआ था जिसको मिटाना आसान नहीं था इसलिए इस ग़लत रिवाज को मिटाने के लिए अल्लाह सर्वशक्तिमान ने उसके दूत के घर को ही चुना ताकि इस आदत को प्रेक्टिकल तौर समाप्त कर दिया जाए l
यहाँ हम पवित्र क़ुरआन की कुछ आयतों का उल्लेख करते हैं जिन में इस बात का विरोध क्या गया है और इस विषय में नए क़ानून का फैसला सुनाया गया है l

शुभ क़ुरआन में आया है :

 )ما كان محمد أبا أحد من رجالكم ولكن رسول الله وخاتم النبيين )الأحزاب: 40(

 

 

(मुहम्मद तुम्हारे पुरूषों में से किसी के बाप नहीं है, बल्कि वह अल्लाह के रसूल और नबियों के समापक हैं(अर्थात अंतिम ईशदूत हैं उनके बाद अब कोई ईशदूत नहीं आएगा l)(अल-अहज़ाब:४०)

)ادعوهم لآبائهم هو أقسط عند الله فإن لم تعلموا آباءهم فإخوانكم فى الدين ومواليكم ) )الأحزاب:(5

"उन्हें उनके बापों का बेटा कहकर पुकारो lअल्लाह के यहाँ यही अधिक न्यायसंगत बात है lऔर यदि तुम उनके बापों को न जानते हो तो धर्म में वे तुम्हारे भाई तो हैं ही और तुम्हारे सहचर भी l)(अल-अहज़ाब:५)

 )وإذ تقول للذى أنعم الله عليه وأنعمت عليه أمسك عليك زوجك واتق الله وتخفى فى نفسك ما الله مبديه وتخشى الناس والله أحق أن تخشاه فلما قضى زيد منها وطرًا زوجناكها لكيلا يكون على المؤمنين حرج فى أزواج أدعيائهم إذا قضوا منهن وطرًا وكان أمر الله مفعولاً) (الأحزاب:37)

(याद करो (ऐ नबी), जबकि आप उस व्यक्ति से कह रहे थे जिसपर अल्लाह ने अनुकम्मा की, और आपने भी जिसपर अनुकम्मा की कि “अपनी पली को अपने पास रोके रखे और अल्लाह का डर रखो, और तुम अपने जी में उस बात को छिपा रहे हो जिसको अल्लाह प्रकट करनेवाला है lतुम लोगों से डरते हो, जबकि अल्लाह इसका ज़ियादा हक़ रखता है कि तुम उससे डरो l”अत: जब ज़ैद उससे अपनी ज़रूरत पूरी कर चुका तो हमनें उसका तुमसे विवाह कर दिया, ताकि ईमानवालों पर अपने मुंहबोले बेटों की पलियों के विषय में कोई तंगी न रहे जबकि वे उनसे अपनी ज़रूरत पूरी कर लें lअल्लाह का फैसला तो पूरा हो कर ही रहता है l) (अल-अहज़ाब:३७)

 

 

यहाँ हम एक बार फिर याद दिलाना चाहते हैं कि यह शादी अल्लाह सर्वशक्तिमान के इरादे से हुई थी और मुंहबोले बेटे बनाने के ग़लत  रिवाज को समाप्त करने के लिए थी जो पूरे समाज में जड़ पकड़ चुका था और सही सिद्धांत को स्थापित करने के लिए हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-को ही बुनियाद बनाया गया ताकि खुद उनके माध्यम से और उनके अपने घर से ही उसके जड़ को उखाड़ दिया जाएl
हज़रत ज़ैनब बिनते जहश भी इस बात को अच्छी तरह समझती थी ओर उनको इस बात का एहसास था इसी लिए वह अपनी सौतनों को यह कह कर जताती थी: “तुम लोगों की शादियाँ तो तुम लोगों के परिजनों ने करवाई लेकिन मेरी शादी तो मेरे पालनहार ने सात आसमानों के ऊपर से कराई l” 

 

 

वास्तव में हज़रत ज़ैद बिन हरिसा हज़रत पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के पास आते थे और यह इच्छा प्रकट करते थे कि अपनी पत्नी ज़ैनब बिनते जहश को छोड़ देंगे क्योंकि उनके साथ उनके जीवन में मेलमिलाप नहीं था और दोनों में कुछ न कुछ विवाद चलता ही रहता था lहज़रत ज़ैनब बिनते जहश को सदा यह एहसास सताया करता था कि वह तो एक महान परिवार से संबंध रखती हैं और सुंदरता में भी अपना जवाब नहीं रखती हैं और बड़े घर की बेटी हैं जबकि ज़ैद एक  गुलाम थे और उनके ही किसी रिश्तेदार के पास गुलामी करते थे lशादी के समय भी वह हज़रत पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के गुलाम थे लेकिन उन्होंने उन्हें कुरैश से ख़रीद कर मक्का में आज़ाद कर दिया था l
वह अपनी पत्नी की आँखें में तो एक गुलाम ही थे और वह खुद एक सुंदर और महान घरानेवाली थी और वह किसी भी तरह उनके सपना और इच्छा पर नहीं उतरते थे भले ही वह उस समाज में मुहम्मद के बेटे ज़ैद के नाम से जाने जाते थे लेकिन यह बात हज़रत ज़ैनब के लिए काफी नहीं थी l
इन्ही कारणों से वह अपनी शादी से खुश नहीं थी और सदा दुखी रहा करती थी इसका असर हज़रत ज़ैद पर भी पड़ता था lउनकी जिंदगी से भी खुशी के चिराग बुझ गए थे lवास्तव में दोनों इस बात केलिए किसी भी समय तैयार थे कि दोनों में जुदाई हो जाए lइसी कारण हज़रत ज़ैद हज़रत पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के पास हज़रत ज़ैनब की शिकायत किए लेकिन हज़रत पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने उनको साथ रहने की सलाह दी जैसा कि बुखारी की हदीस में है :“अपनी पत्नी को रोके रखो और अल्लाह से डरो l” हज़रत अनस कहते हैं यदि हज़रत पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-कोई बात छिपाते तो यह बात छिपाए जाने के योग्य थी(लेकिन वह एक नबी थे जिनको अल्लाह का आदेश था कि कोई बात न छिपाएँ और सब लोगों को अल्लाह का संदेश पहुंचा दें l)

 

 

जी हाँ, हज़रत पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-हज़रत ज़ैद को कहते थे :“ अपनी पत्नी को मत छोड़ो, तलाक़ देने में जल्दी मत करो, और जैसा कि अभी अभी हम यह बता चुके हैं कि हज़रत ज़ैनब हज़रत पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-की फुफेरी बहन थींlऔर उन्होंने ही अपने गुलाम ज़ैद से उनकी शादी कराई थीlयदि उनको उनसे शादी करने का कुछ ख्याल होता तो पहले ही करलेते और दुसरों के साथ उनकी शादी न होने देतेlऔर यह बात भी नहीं कही जा सकती है कि हज़रत पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने  हज़रत ज़ैनब को नहीं देखा था क्योंकि इस्लाम से पहले अरब की महीलाएं पर्दा नहीं पहनती थीं इसलिए हम यह कह सकते हैं कि यदि हज़रत पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-को उनके साथ शादी का इरादा रहता तो पहले से ही कर लेते शादी और तलाक़ का इन्तेज़ार न करते l
सच बात यही है कि यहाँ मनुष्य के इरादे की बात नहीं है बल्कि यहाँ  अल्लाह सर्वशक्तिमान के इरादे और उसकी इच्छा की बात हैlन यहाँ हज़रत ज़ैद की कुछ चल सकती थी और न हज़रत ज़ैनब की lऔर न हज़रत पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के इरादे का इस में कुछ दखल था lअल्लाह सर्वशक्तिमान का इरादा यह था कि मुंहबोले बेटे का रिवाज सदा के लिए समाज से समाप्त हो जाए जो न जाने कब से वहाँ प्रचलित था lऔर इस विषय में सही क़ानून स्थापित हों l
अब हम फिर उस आयत को यहाँ उल्लेख करते हैं ताकि पूरी बात साफ़ हो जाए:“  

)وتخفى فى نفسك ما الله مبديه وتخشى الناس والله أحق أن تخشاه((الأحزاب:37)

(और तुम अपने जी में उस बात को छिपा रहे हो जिसको अल्लाह प्रकट करनेवाला हैतुम लोगों से डरते हो, जबकि अल्लाह इसका ज़ियादा हक़ रखता है कि तुम उससे डरो l)(अल-अहज़ाब:३७)

 

 

हज़रत पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने जो अपने मन में छिपाया था वह यही बात थी कि अल्लाह सर्वशक्तिमान ने उनको बता दिया था कि ज़ैनब से उनकी शादी होनेवाली है लेकिन हज़रत पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-इस बात को इस डर से कहना नहीं चाहते थे कि कहीं लोग यह न कह बैठें कि उन्होंने अपने ही मुंहबोले बेटे की पत्नी से शादी कर ली lऔर फिर उस समय तक अल्लाह की ओर से इसे स्पष्ट करने का आदेश हज़रत पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-नेको नहीं मिला था इसलिए इस विषय में वह अल्लाह के आदेश के इन्तेज़ार में थे lऔर जब उनको इस बात के ज़ाहिर करने का आदेश मिल गया तो उन्होंने उसे ज़ाहिर कर दिया l

 

 

छठी पत्नी हज़रत जुवैरिय्ह बिनते हारिस खुज़ाईयह 
हज़रत जुवैरिय्ह बिनते हारिस-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे- एक सुंदर राजकुमारी थीं जो अपने परिवार और अपनी जाति के लिए बरकत ही बरकत थीं क्योंकि हज़रत पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने उनसे शादी के बाद बनी-मुस्तलक़ क़बीले के सौ लोगों को आज़ाद कियाlअसल में उनकी जनजाति बनी-मुस्तलक़ से हज़रत पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-की लड़ाई हुई थी और उन्होंने उनको हरा दिया वे सब यहूदी थेlहारने के बाद उनके बहुत सारे लोग बंधक बने थे और पैसे देकर छुटने पर समझौता हुआ तो हज़रत जुवैरिय्ह बिनते हारिस-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे-हज़रत पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के पास गईं और इस विषय में बात की तो हज़रत पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने उनसे कहा: “इस से भी अच्छा कुछ हो सकता है ? तो वह बोलीं: “वह क्या ? तो हज़रत पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने कहा मैं तुम्हारी आज़ादी के पैसे का भुगतान करदूं और तुमसे शादी कर लूँ lइतना कहना था कि वह दुख और दर्द से मुक्त हो गई और बोलीं, हाँ ऐ अल्लाह के रसूल! मैं स्वीकार करती हूँ l 
थोड़ी ही देर में यह बात मुसलमानों के बीच फैल गई और लोगों को पता चल गया कि हज़रत पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने बनी-मुस्तलक़ के नेता और जंग के सिपहसालार की बेटी से शादी कर लीlहज़रत पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- की शादी के नतीजे में बानी मुस्तलक़ के सारे लोग ससुराली रिश्तेदारों में शामिल हो गएl
यह देख कर मुसलमानों को यह ख्याल हुआ कि उन सारे बंधकों को इस भावना में आज़ाद कर दिया जाए कि वे सब हज़रत पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के ससुराली रिश्तेदार हो गए l
यहाँ यह बात उल्लेखनीय है कि हज़रत पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने इस क़ैदी महिला से शादी करके उनपर और उनकी जनजाति पर बहुत दया किया ख़ास तौर पर जब वे सब डरे और सहमे हुए थे और हज़रत जुवैरिय्ह भी बहुत दुखी थीं और उस समय उनके आंसू पोछने की ज़रूरत थी lफिर वह मुसलमान हो गईं और मोमिनों की मांओं में शामिल हो गईं lउनका निधन ७० वर्ष की आयु में हुआ जब अब्दुल मलिक बिन मरवान का राज्य था l
सातवीं पत्नी बनू नज़ीर की सम्मानित महिला सफिय्या बिनते हुय्येय  
जब बनी-नज़ीर की लड़ाई में यहूदियों की हार हुई तो सफिय्या बिनते हुयेय्य जंग का बंधक बन गईं और हज़रत पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के हिस्से में आईं तो हज़रत पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-नेउन्हें आज़ाद कर दिया और उनसे शादी कर ली  lऔर सच तो यही है कि हज़रत पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-केद्वारा उनकी आज़ादी और उनसे शादी दया और मेहरबानी की शानदार निशानी हैlइस में बुराई की कोई बात नहीं है lयह तो उनकी उच्च नैतिकता और महान दया का ईशारा देता है कि वह उनके साथ बुरा करने की शक्ति रखते थे लेकिन फिर भी उन्होंने उनका दिल नहीं तोड़ा बल्कि उनपर दया किया lवे लोग जंग हार चुके थे और अपनी ही नज़रों में गिर चुके थे ऐसे समय में मेहरबानी करना कितनी बड़ी बात है यह तो सभी सोंच सकते हैं l
आठवीं पत्नी उम्मे हबीबा बिनते अबू-सुफ़यान

 

 

 

यह शादी भी दरअसल संकट में पड़ी एक मुस्लिम महिला के साथ मेहरबानी के लिए थीl
उम्मे हबीबा मक्का के सबसे बड़े इस्लाम के दुश्मन अबू-सुफ़यान की बेटी थीं lवह पहले उबैदुल्लाह बिन जहश की पत्नी थींlवे दोनों इस्लाम स्वीकार किए और मुसलमानों के साथ हबशा की ओर स्थलांतर किए थेl    यह बात उल्लेखनीय है कि इस्लाम के शुरू में हबशा ही मुसलमानों का ठिकाना रहा था जहाँ मुसलमान मक्कावालों के हमले और ज़ुल्म और अत्यचार से भाग कर पनाह लेते थे lहब्शा का राजा मुसलमानों पर बहुत मेहरबान था lवास्तव में हबशा का राजा एक दयालु आदमी था जो था तो ईसाई लेकिन हज़रत पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के माननेवालों को अच्छी नज़र से देखता था और उनके अपने देश में पनाह देने के साथ साथ उनका स्वागत करता था क्योंकि उन्हें यह पता था कि बाइबल में हज़रत पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के आने के विषय में खुशखबरी मौजूद है जैसा कि शुभ क़ुरआन में आया है :

)وإذ قال عيسى بن مريم يا بنى إسرائيل إنى رسول الله إليكم مصدقًا لما بين يدى من التوراة ومبشرًا برسول يأتى من بعدى اسمه أحمد((الصف: 6)

 

 

(और याद




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