Under category | पैगंबर मुहम्मद एक पति के रूप में - अहमद क़ासि | |||
Creation date | 2011-09-15 17:09:22 | |||
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संकट के दौरान भी उन्हें अनादर नहीं करते थे
हज़रत आइशा-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे- कहती हैं :जब भी हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- कोई यात्रा करना चाहते थे तो अपनी पवित्र पत्नियों के बीच चिठ्ठी उठाते थे(या चुनाव करते थे) और जिनका नाम निकलता था उनहीं को साथ ले जाते थे l
जब हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- ने "बनू-मुस्तलिक़" अभियान पर निकल रहे थे तो अपनी पवित्र पत्नियों के बीच चिठ्ठी उठाए, इसमें हज़रत आइशा का नाम आया, इसलिए वह हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- के साथ निकलीं l
उस समय महिलाएं थोड़ा मोड़ा खाना खाती थीं ताकि ज़ियादा गोश्त न चढ़ जाए और भद्दी न हो जाएं, वह एक कजावा में बैठती थीं और उस कजावे को उठा कर ऊंट पर रखा जाता था और जब उतरना होता था तो उस कजावे को ऊंट पर से उतार दिया जाता था और फिर वह उससे बाहर निकलती थी और अपनी ज़रूरत पूरी करने के बाद फिर उसमे बैठ जाती थीं और फिर ऊंट पर रख दिया जाता था lजब हज़रत पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- अपने अभियान से फुर्सत पाए तो पवित्र मदीना को वापस होने लगे, और जब मदीना के निकट हुए तो एक स्थान पर अपनी अपनी सवारी से उतर गए और रात का कुछ भाग वहीं बिताए lफिर वहाँ से निकलने का आदेश दिया lतो वहाँ से रवानगी केलिए लोग अपने अपने सामान इकट्ठा करने लगे, इस बीच हज़रत आइशा-अल्लाह उनसे ख़ुश रहे-शौचालय केलिए निकलीं l उनके गले में एक हार था जो "ज़ोफार"( यह एक प्रकार का दाना होता था जिस में काले और सुफेद रंग मिले होते थेl)के मोतियों का बना हुआ था जब वह ज़रूरत पूरी करलीं तो वह हार उनके गले से सरक कर गिर गया और उनको पता भी नहीं चला l
जब वह वापस क़ाफिला के पास आईं और अपने कजावे में प्रवेश होना चाहीं तो देखी कि गले का हार नहीं है, और लोग रवाना होने लगे,
वह अपना हार खोजने केलिए जल्दी से शौचालय की जगह की ओर निकलीं , वहाँ जाकर अपने हार को खोजने लगीं, इसमें ज़रा देर होगई l
लोग आए और उनके कजावे को उठाकर ऊंट पर रख दिए, उनको यह लगा कि वह उसके अंदर बैठी हैं, और कजावे को ऊंट पर बांध दिए, और ऊंट को लेकर रवाना हो गए l
इस तरह क़ाफिला निकल पड़ा किन्तु हज़रत आइशा-अल्लाह उनसे ख़ुश रहे-अपने हार के खोज में लगी रहीं और बहुत खोज-तलाश के बाद उनका हार तो मिल गया किन्तु जब वह क़ाफिला की जगह पर आईं तो क़ाफिला जा चुका था l
हज़रत आइशा-अल्लाह उनसे ख़ुश रहे-कहती हैं: जब मैं वापस लोगों के उतरने की जगह पर आई तो वहाँ कोई नहीं था न कोई बोलनेवाला और न कोई सुनने वाला, लोग तो निकल चुके थे तो मैं वहीँ आ गई जहाँ उतरी थी, शायद लोग मुझे खोजेंगे और मेरे पास वापस आएंगे l
और मैं अपने आप को अपनी चादर में लिपट ली lजब मैं अपनी जगह पर बैठी थी तो बैठे बैठे ही मेरी आँख लग गई और वहीं सो गई, अल्लाह की क़सम मैं लैटि ही थी कि सफ्वान बिन मुअत्तल मेरे पास से गुज़रा, और वह भी अपनी किसी ज़रूरत के कारण क़ाफिला से पीछे छूट गया था, इसलिए वह लोगों के साथ नहीं हो सका था l
उसे एक सोए हुए मानव का रूप देखाई दिया तो वह मेरे पास आया और देख कर मुझे पहचान लिया क्योंकि परदा का आदेश उतरने से पहले मुझे देखा था lजब उसने मुझे देखा तो "इन्ना लिल्लाहि व इन्ना एलैहि राजिऊन"(हम अल्लाह ही केलिए हैं और हम उसी की ओर लौटने वाले हैं) अरे यह तो अल्लाह के पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- की पवित्र पत्नी हैं l
उसके इन शब्दों को सुनकर मैं जाग उठी, तो मैंने अपनी चादर से
अपने चेहरे को छिपा ली, अल्लाह की क़सम मैंने उसके मुँह से "इन्ना लिल्लाहि व इन्ना एलैहि राजिऊन"(हम अल्लाह ही केलिए हैं और हम उसी की ओर लौटने वाले हैं) के अलावा कुछ नहीं सुनी और न उसने मुझ से कोई शब्द कहा lउसने अपने ऊंट को बैठाया जब ऊंट अपने सामने के दोनों पैरों को मोड़ कर बैठ गया तो मैं ऊंट पर सवार हो गई और वह ऊंट के सिर को पकड़ कर चलने लगा वह क़ाफ़िला से मिलने केलिए तेज़ तेज़ चला, तो अल्लाह की क़सम न लोगों ने मुझे खोजा और न हम क़ाफिला से मिल सके यहाँ तक कि सुबह हो गई इसके बाद हम ने देखा कि वे अपनी सवारियों से उतर रहे हैं, वे अभी उतर ही रहे थे कि यह आदमी ऊंट को हांकते हुए उनको दिखाई देने लगे lइसी पर तुहमत लगाने वाले तुहमत लगाने लगे और ग़लत-सलत बोलने लगे lऔर पूरा क़ाफिला कांप गया lऔर अल्लाह की क़सम मुझे तो इसका कोई पता ही नहीं था l
हम मदीना को पहुँच गए और फिर मैं बुरी तरह बीमार हो गई lऔर लोगों की कोई बात मुझे पहुंचती ही नहीं थी, किन्तु बात हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- और मेरे माता पिता को पहुँच गई थी और वे मुझ से इस विषय में तिनका भर भी कोई बात उल्लेख नहीं करते थे, हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- से वह दया और प्यार मुझे दिखाई नहीं दे रही थी जो पहले देखा करती थी l
जबकि आमतौर पर, जब भी मैं बीमार पड़ती थी तो वह मुझ पर बहुत दया करते थे और मेरा ख्याल रखते थे l
लेकिन इस बार उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया बल्कि, यदि वह मेरे यहाँ आते भी थे और मेरी माँ मेरे पास बीमारी में साथ देने केलिए रहती थीं तो वह केवल इतना कहते थे: कैसी हैं यह? इस से अधिक कुछ नहीं कहते थे lयहाँ तक कि मेरे दिल में क्रोध भी हुआ, जब मैंने उनकी बेरुख़ी देखि तो मैंने कहा: हे अल्लाह के पैगंबर! क्या आप मुझे अपनी माँ के यहाँ जाने की अनुमति देंगे ताकि मेरी माँ मेरी देखरेख कर सकें? तो उन्होंने कहा: कोई रोक नहीं है l
इस तरह मैं अपनी माँ के यहाँ चली गई, और फिर जो भी हो रहा था उसके विषय में मुझे कुछ पता नहीं था, यहाँ तक कि २० (बीस) से भी अधिक रातें गुज़र गईं , और हम लोग अरब जाति से थे हमारे पास शौचालय घरों में नहीं होता था जैसा कि गैर-अरब जातियों के घरों में होते हैं , हमारे पास इस से घृणा करते थे और हम लोग शौचालय के लिए गांव से बहार जाते थे और महिलाएं रात में निकला करती थीं फिर मैं अपनी बीमारी से कुछ ठीक हुई, तो एक रात मैं शौचालय केलिए बाहर निकली और मेरे पिता की मौसी की बेटी "उम्मे-मिस्तह" मेरे साथ थी l
अल्लाह की क़सम वह मेरे साथ जब चल रही थी इतने में अपनी चादर में उलझ कर गिर पड़ी या बिल्कुल गिरने को ही थी, इतने में उसने कहा कि मिस्तह बर्बाद हो!
मैंने कहा:यह क्या बुरा श्राप तुम दे रही हो! एक ऐसे आदमी को बुराभला कह रही हो जो बद्र की लड़ाई में भाग लिया था lउसने कहा: हाए ! उसकी कमबख्ती! क्या आप नहीं सुनी हो कि उसने क्या कहा है? हे अबू-बक्र की बेटी! क्या आपको ख़बर नहीं पहुंची है?मैं पूछी क्या बात है?
इसपर उसने मुझे तुहमत लगनेवाले लोगों की ओर से उड़ाई हुई बात के विषय में बताई lतो मैंने कहा:अच्छा! क्या ऐसा हुआ है? तो वह बोली:अल्लाह की क़सम ऐसा हुआ है lइतना सुनना था कि मैं शौचालय को भी न जा सकी और वापस हो गई, इसके बाद मैं और अधिक बीमार हो गई lअल्लाह की क़सम मैं लगातार रोती-धोती रही यहाँ तक कि मुझे लगा कि रोते-रोते मेरा सीना फट जाए गा, मैंने अपनी माँ से कहा:अल्लाह आपको माफ करे! लोग मेरे विषय में इतना सब कुछ बोल रहे हैं और आपने मुझे भनक तक भी लगने नहीं दिया!तो उन्होंने उत्तर दिया: मेरी बेटी! इसकी चिंता मत करो lअल्लाह की क़सम यदि एक बहुत ही सुंदर महिला किसी पति के पास हो और वह उसे बहुत चाहता हो और फिर उसकी कई पत्नियां भी हों तो वे ऐसा करतीं हैं और लोग भी इस प्रकार की बहुत सारी बातें बकते हैं l
मैंने कहा: पवित्रता हो अल्लाह के लिए! क्या लोगों ने ऐसी बातें की हैं?
उस रात मैं सुबह तक रोती रही, मेरे आँसू थमते नहीं थे, और आँखों से नींद बिल्कुल उड़ गई थी, यूँही सुबह तक रोती रहीl
जब बात अधिक लंबी हो गई तो हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-लोगों के बीच में ठेहरे और उनको संबोधित किए , सब से पहले अल्लाह की प्रशंसा किए और उसका शुक्रिया अदा किए और फिर कहा:लोगो! क्या बात है? कुछ लोग मुझे मेरी पत्नी के विषय में चोट पहुँचा रहे हैं! और उनके बारे में झूठ बोल रहे हैं lअल्लाह की क़सम में अपने परिवार में भलाई ही भलाई पाता आरहा हूँ lऔर फिर एक ऐसे आदमी के साथ आरोप लगा रहे हैं जो शरीफ हैं, अल्लाह की क़सम में उसमें भलाई को छोड़कर कुछ नहीं देखता हूँl
और वह कभी मेरे किसी घर में प्रवेश नहीं किए किन्तु वह मेरे साथ
था lवास्तव में इसका सबसे बड़ा सरगना अब्दुल्लाह बिन उबै था जो 'खज़रज' जनजाति से था और उसी के साथ मिस्तह और हमना बिनते जहश भी थे , हमना इस में इसलिए आगे आगे थी कि उनकी बहन ज़ैनब बिनते जहश हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-की पत्नियों में शामिल थीं , और हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-की पत्नियों में से कोई भी मुझ से बराबरी नहीं करती थी लेकन वह करती थी , ज़ैनब को तो अल्लाह सर्वशक्तिमान ने उनकी ईमानदारी के कारण इस बात में पड़ने से बचा लिया था लेकिन हमना जो उनकी बहन थी इस बात में ख़ूब बढ़ चढ़ कर भाग ली क्योंकि वह अपनी बहन के कारण मुझ से जलती थी जब हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने यह कहा तो "औस" जनजाति के नेता उसैद बिन हुदैर उठे और बोले:हे अल्लाह के पैगंबर! यदि वे "औस" के लोग हों तो हम उन्हें देख लेंगे आप को कुछ करने की ज़रूरत नहीं हैlऔर यदि वे हमारे भाई"खज़रज" के लोग हों तो अल्लाह की क़सम हमें आदेश दें निस्संदेह उनकी गर्दनें उड़ाई जानी चाहिए l
जब "खज़रज"जनजाति के नेता सअद बिन उबादा ने उनकी बात को सुना तो वह उठ खड़े हुए, हालांकि वह एक धर्मी आदमी थे किन्तु उनको
अपनी जाति की ओर उत्साह हुआ, वह खड़े हुए और बोले :मैं क़सम खाता हूँ कि तुम झूठे हो! उनकी गर्दन नहीं मारी जाए गी, अल्लाह की क़सम तुम यह बात इसीलिए कह रहे हो कि तुम्हें पहले से जानकारी है कि वे"खज़रज" के लोग हैं यदि वे तुम्हारी जाति के लोग होते तो तुम कभी यह बात नहीं कहतेlतो उसैद बिन हुज़ैर ने कहा:अल्लाह की क़सम तुम झूठे हो, अल्लाह की क़सम हम ज़रूर उसे मार डालेंगे! किन्तु तुम भी एक पाखंडी हो इसीलिए पाखंडियों की तरफदारी कर रहे होl
इस पर लोग एक दूसरे के प्रति क्रोध प्रकट करने लगे, और लड़ने-भिड़ने केलिए तैयार होगए lहज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-मंच पर से उतरे और अपने घर को चले गए फिर उन्होंने हज़रत अली और ओसामा बिन ज़ैद को बुलाया और उनके साथ सलाह कियाl
ओसामा ने हज़रत आइशा की प्रशंसा और बड़ाई की और कहा: हे अल्लाह के पैगंबर! हम तो आपके परिवार के बारे में अच्छा को छोड़कर कुछ जानते ही नहीं हैं lयह सब कुछ सरासर झूठ और इल्ज़ाम है lऔर हज़रत अली ने कहा: हे अल्लाह के पैगंबर!महिला तो बहुत हैं, और आप उनके बदले में किसी और से भी शादी कर सकते हैं lआप उनकी नौकरानी से पूछ लीजिए वह सब कुछ सच सच बता देगी l
हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने "बरीरा" को बुलाया हज़रत अली उठे और उसको ख़ूब मारे और बोले हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-को सच सच बोलो तो "बरीरा" ने कहा: कभी नहीं! अल्लाह की क़सम मैं उन में भलाई को छोड़कर और कोई बात नहीं देखी , आइशा में मुझे इस बात को छोड़कर और कोई कमी नहीं दिखाई दी, कि वह एक कमउम्र युवती थी, और मैं आटा गूंध कर रखती थी और उनको देखने केलिए बोलती थी तो वह सो जाती थी और फिर बकरी आ कर उसे खा जाती थीl
हज़रत आइशा-अल्लाह उनसे ख़ुश रहे-ने कहा: उस दिन मैं लगातार रोती रही, मेरे आंसू थमने को नहीं थे, और न मैं एक पल केलिए भी सो सकी l
फिर मैं अगली रात को भी रोती रही, मेरे आंसू थमते नहीं थे, और न एक पल केलिए भी मुझे नींद आती थी lमेरे माता पिता को लगा कि रो रो कर मेरा कलेजा फट जाए गा l
इसके बाद हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-तेज़ तेज़ चलकर हज़रत अबूबक्र के घर को आए उस समय उनके माता पिता उनके पास ही थेlऔर वहाँ अनसार की एक औरत भी थीं जो हज़रत आइशा के साथ रोती थी lइसके बाद हज़रत पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-हज़रत आइशा के पास गए, देखे कि वह बिस्तर पर पड़ी हैं lजब वह रोती थी तो वह अनसारी महिला भी उनके साथ साथ रोती थी lअल्लाह के पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-बैठे और अल्लाह की प्रशंसा किए और उसका शुक्रिया अदा किया और उसके बाद कहा:हे आइशा मुझे ऐसी ऐसी बात की सूचना मिली है, और उन्होंने आरोप वाली पूरी कहानी कह कर उनको सुनाई और उनके विषय में जो बहुत ही गंभीर पाप में डूबने की अफवाह फैलाई गई थी वह उनके सामने रखे l
उन्होंने उनको कहा: यदि तुम निर्दोष हो तो अल्लाह सर्वशक्तिमान तुम को निर्दोष घोषित कर देगा, और यदि तुम से कुछ हो गया है तो अल्लाह से क्षमा मांग लो और पश्चाताप करलो lक्योंकि जब अल्लाह का कोई भक्तअपने पापों को मान लेता है, और पश्चाताप कर लेता है तो अल्लाह उसकी पश्चाताप को स्वीकार कर लेता हैl
हज़रत आइशा ने कहा:जब अल्लाह के पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने अपनी बात समाप्त कर ली तो मेरा आँसू भी सूख गया था और मेरी आँखों में आंसू का एक बूंद भी नहीं बचा था lमैं अपने माता पिता का इंतजार किया कि वे अल्लाह के पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-का कुछ उत्तर देंग किन्तु उन दोनों ने भी कुछ नहीं कहा ,तो मैंने अपने पिता से कहा:कृपया अल्लाह के पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-की बातों का उत्तर दीजिए, तो उन्होंने कहा: मुझे तो कुछ समझ में ही नहीं आ रहा है कि अल्लाह के पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-को क्या कहूँ, इस के बाद मैंने अपनी माँ से कहा:कि कृपया अल्लाह के पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-की बातों का उत्तर दीजिए, तो उन्होंने भी यही कहा: मुझे तो कुछ समझ में ही नहीं आ रहा है &