Under category | अपने जीवन का आनंद उठाइए | |||
Auther | डॉक्टर मुहम्मद अब्दुर्रहमान अल अरीफी | |||
Creation date | 2013-01-31 15:56:31 | |||
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आप को लोगों से संबंध बनाने और उन के साथ व्यव्हार करने के समय अपने कौशल को अधिक से अधिक उपयोग करना चाहए, आप प्रत्येक आदमी के साथ ऐसा सुभावित नियम से व्यवहार कीजिए की उस को ऐसा लगे कि वह आपके पास सब से अधिक प्यारा है l
आप अपनी माँ के साथ प्रसनता, अपनायत, रखरखाव और इतना अच्छा बर्ताव कीजिए कि इतना अच्छा और ऊँचा व्यवहार उनको कसी और से कभी निहीं मिल सकता हो l
इसी प्रकार का आचरण अपने पिता, अपनी पत्नी, अपने बच्चों और अपने सहयोगियों के साथ भी रखिए l
वास्तव में आप इसी प्रकार का व्यवहार प्रत्येक आदमी के साथ रखने का प्रयास कीजिए, मानो आप केवल पहली बार ही उस से मिल रहे हैं जैसे कोई दुकानदार, या पेट्रोल पंप पर काम करने वाला मज़दूर l
इन सभी लोगों को आप इस बात पर सहमत कर सकते हैं कि आप उन के पास सब से अधिक प्यारे हैं, परन्तु यह तभी संभव है जब आप उन्हें यह मनवा सकें कि वे आप के पास सबसे प्यारे हैं l
इस में हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-बहुत बढ़या और सुन्दर नमूना हैं l
इसलिए जो कोई भी उनकी जीवनी के बारे में पढ़ता है और खोज करता है उस को पता चल जाता है कि वह बहुत ऊँची शिष्टता और आचरण से व्यव्हार करते थे, दरअसल वह प्रत्येक मिलने वाले से प्रसन्ता, ख़ुशी , मुस्कुराहट और बेहद सम्मान, स्वागत और शानदार तरीक़े से मिलते थे ऐसा कि उस के मन को लग जाता था कि वह उनके पास सबसे अधिक प्यारा व्यक्ति है l और अंत मैं वह उन के पास सब से अधिक प्यारे रह जाते थे, इसका कारण कारण यही था कि उन्होंने उनको अपने प्यार का इहसास दिलाया l
अरबों मैं चार चतुर थे, और अम्र बिन आस-अल्लाह उन से प्रसन्न रहे-
उन मैं से एक थे, वे अपने भीतर सीमा से भी अधिक ज्ञान, बुद्धि, और चतुरता रखते थे l
अम्र बिन आस ने इस्लाम धर्म को गले लगा लिया था , उल्लेखनीय है कि वह अपने लोगों के बीच नेता थे और जब भी वह हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-से रस्ते मैं मिलते थे, तो वह सदा मुस्कुराहट, प्रसन्नता, और अपनापन की भावनाओं से भरपुर दिखाई देते थे l और जब भी वह कसी बैठक मैं पहुँचते थे जहां हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- भी उपस्थित होते थे तो प्रसन्नता, स्वागत और आदर उनके आगे आगे रहते थे और जब भी जगतगुरु हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- उनको आवाज़ देते थे तो ऐसे नामों से बुलाते थे जो उनको बहुत पसंद थे l
इस तरह के उत्कृष्ट आचरण के अनुभव से और बराबर कि मुस्कराहट और स्वागत से , उन्हें महसूस हो गया था कि अल्लाह के पवित्र पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के पास वह सबसे अधिक प्रिय हैं l एक दिन, उन्होंने अपनी भावनाओं की पुष्टि करने का फैसला किया, तो वह हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- के पास आए और उन के साथ बैठ गए और उन से पूछे : हे अल्लाह के पैगंबर! आप के पास लोगों मैं सब से अधिक प्रीय कौन हैं?
तो उन्होंने कहा: "आइशा" (हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-की पवित्र पत्नी)
अम्र ने कहा: नहीं हे अल्लाह के पैगंबर! मैं पुरुष के बारे मैं पूछ रहा हूँ,
मैं आपके परिवार के बारे मैं नहीं पूछ रहा हूँ l
उन्होंने कहा: उनके पिता l
अम्र ने कहा: फिर कौन ?
तो उन्होंने उत्तर दिया: उमर बिन ख़त्ताबl
अम्र ने कहा: फिर कौन ? तो हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- लोगों के नाम गिनाने लगे और उल्लेख करना शुरू किए
कहा:फुलाना आदमी फिर फुलाना आदमी, इस्लाम धर्म को स्वीकार करने मैं पहल और उसके लिए अपने धन-दौलत जानजिव लुटाने के अनुसार लोगों का नाम लेते गए l
फिर अम्र ने कहा: मैं तो इस डर से चुप हो गया कि हो सकता है
मुझे सबसे पीछे न करदें l
तो आपने देख लिया कि हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- कैसे अपने ऊँचे बर्ताव के द्वारा अम्र के दिल पर कब्ज़ा करने में सफल हो गए l
हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- लोंगों को उनके उचित स्थान पर रखते थे l
कभी कभी, वह दूसरों की जरूरतों के लिए अपने कार्य को छोड़ देते थे ताकि इस द्वारा उन्हें अपने प्यार, आदर और मान्यता का इहसास दिलादें l
जब हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- की विजय हुई और उनका प्रभाव बढ़ा और इस्लाम धर्म का प्रकाश दूर दूर तक फैलने लगा तो अन्य जनजातियों को इस्लाम धर्म की ओर बुलाने केलिए वह अपने उपदेशकों को रवाना करने लगे और कभी कभी उन उपदेशकों की रक्षा केलिए सेनाओं को भी भेजना पड़ा l अदी बिन हातिम ताई ख़ुद भी राजा था और एक राजा का बेटा था l उसकी "तय" नामक जनजाति और मुसल्मानों के बीच एक युद्ध छिङ गाया, पर अदी लड़ाई मैं नहीं गया और भागकर सीरिया में रूमियों के पास पनाह लिया l जब मुस्लिम सेना "तय" नामक जनजाति की भूमि मैं पहुँचे तो "तय" आसानी से युद्ध हार गया, न कोई राजा अगुआ था और न ही सेना संगठित थी l मुसलमानों का सदा यही नियम रहा कि युद्ध में भी लोगों पर कृपया और दया करते थे, लड़ाई तो इसलिए की गई थी कि "अदी" जनजाति की ओर से मसलमानों पर होने वाले अन्यायों का रोकथाम हो सके l और मुसलमानों का बल खुल कर लोगों के सामने आजाए l मुसलमानों ने "अदी" के कुछ लोंगों को क़ैदी बना लिया l
जिनके बीच अदी बिन हातिम की बहन भी थी l
वे उन सब क़ैदियों को पवित्र मदीना ले आए जहाँ हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-रहते थे और उनको "अदी" के सीरिया की ओर भाग निकलने के बारे मैं बताया, हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-अचंभित हो गए! वह सत्य धर्म से क्यों भागता है! अपनी जनता को उसने क्यों बेसहारा छोङ दिया?
हालांकि मुसलमानों के सामने "अदी" तक पहुँचने का कोई रास्ता नहीं था l स्वयं आदि सीरिया में अपने रहने से आनंद नहीं था इसलिए अपनी अरब भूमि केलिए वापस आने पर मजबूर हो गया, फिर उसके सामने इस के सिवाय भी कोई चारा नहीं था कि पवित्र मदीना आकर हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- से मिले और उनके साथ सुलह और शांति के लिए बातचीत करे, या किसी बात पर समझौता कर ले जिस पर दोनों पक्ष एक मत होजाएं [1]l
ख़ुद "अदी" पवित्र मदीना जाने की अपनी कहानी बयान करते हुए कहते हैं: अरब का कोई व्यक्ति मेरे पास अल्लाह के पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-से अधिक आक्रमण नहीं था और मैं तो ईसाई धर्म पर था और मैं अपनी जनता के बीच राजा था l जब मैं अल्लाह के पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- के बारे में सुना और मेरी जनता के साथ क्या बीता तो मैं उनको बहुत नापसंद किया, मैं निकला और रूम के राजा के पास आया,लेकिन मैंने वहाँ रहने को नापसंद किया l इसलिए मैंने सोचा कि यदि मैं उस आदमी के पास ख़ुद चला जाऊं और देख लूँ यदि वह झूठा निकला तो हमारी कुछ क्षति नहीं होगी l और यदि वह सच्चा निकला,तो मुझे पता तो चल जाएगा, इसलिए मैं निकला और उनके पास आया, जब मैं मदीना में प्रेवश किया तो लोग कहने लगे "यह अदी-बिन हातिम हैं"l "यह अदी बिन हातिम हैं" l
मैं चलता रहा यहाँ तक कि मैं हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- के पास पहुँच गया और मस्जिद में उनके पास दाख़िल हुआ, उनहोंने पूछा: अदी बिन हातिम हैं?
मैंने कहा: जी अदी बिन हातिम हूँ l
तो हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- अदी के आगमन पर प्रसन्न हुए, और उनका आदर और स्वागत किए, भले ही अदी पहले मुसलमानों के ख़िलाफ युद्ध लङा था और युद्ध से भगा हुआ था और ईसाइयों के बीच पनाह लिया था, फिर भी वह उन से मुस्कुरा कर और ख़ुशी से मिले, और उनका हाथ पकङ कर अपने घर की ओर लेकर चलने लगे, अदी जब हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- के साथ साथ चल रहे थे तो अन्होंने यह सोंचा कि दोनों सिर बराबर हैं l मुहम्मद -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- मदीना और उसके आसपास के राजा हैं और "अदी" "तय" के पहाङ और उस के आस्पास का राजा है l मुहम्मद -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- आसमानी धर्म इस्लाम पर हैं और अदी भी आसमानी धर्म ईसाइयत पर है, मुहम्मद -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- के पास ईश्वरीय पुस्तक क़ुरआन है और अदी के पास भी ईश्वरीय पुस्तक बाइबल है, अदी का अनुमान यह था कि दोनों के बीच केवल ताक़त और सेना का अंतर है, इस बीच रस्ते मैं ३ घटनाएं घटीं, जब वह दोनों चल रहे थे तो बीच रस्ते मैं एक स्त्री खङी हो गई और चिल्लाई "हे अल्लाह के पैगंबर! मुझे आप से एक काम है तो हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- ने अपने हाथ को अदी के हाथ से तुरन्त खींच लिया और उस महिला के पास जाकर उसके काम के बारे मैं सुनने लगे, अदी बिन हातिम जो राजाओं और मन्त्रियों को अच्छी तरह और बहुत नज़दीक से जनता था, इस घटना के बारे में सोचने लगा, और हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- का लोंगों के साथ व्यवहार और उस ने जिन नेताओं और प्रधानों के चालचलन को देख चूका था दोंनों को मिलाने लगा और मन ही मन में दोनों के बीच तुलना करने लगा, थोड़ी देर सोंचा फिर कहा अल्लाह की क़सम यह राजाओं के व्यवहार नहीं हैं यह तो केवल पैगंबरों के ही व्यवहार हो सकते हैं l
उस स्त्री का जो काम था वह उन्होंने कर दिया, फिर हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- अदी के पास वापस लौट आए, और फिर दोनों चलने लगे , इसी बिच एक पुरुष हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- की ओर आया ,तो उस आदमी ने क्या कहा? क्या उस आदमी ने यह कहा कि मेरे पास बहुत सारे धनदौलत हैं और ज़रूरत से अधिक हैं किसी निर्धन को देख रहा हूँ? या तो यह कहा कि मैंने अपने खेत की कटाई की है और मेरे पास ज़रूरत से अधिक अनाज है तो मैं उस में क्या करूं? यदि ऐसा कुछ कहा होता तो बात दूसरी होती थी, जिस को सुन कर अदी को यह लगता कि मुस्लमान धनी हैं और उनके पास धनदौलत अधिक से अधिक है l
उस आदमी ने कहा: हे अल्लाह के पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- मैं आपके पास निर्धन होने के कारण और ग़रीबी का दुखङा सुनाता हूँ, उस आदमी के पास इतना भी खाना नहीं था कि अपने बालबच्चों के भूक की आग को बुझाता, और उसके आस्पास के मुसलमान भी सूखी-रूखी पर कम चलाते थे, किसी में इतनी भी शक्ति नहीं थी कि किसी की कुछ सहायता कर सकैं, वह आदमी यह कह रहा था और अदी सुन रहे थे तो हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-उनको कुछ बातें बताई और चलते बने l
जब कुछ दूर चले तो एक और आदमी मिला और कहा: हे अल्लाह के पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- मेरे पास सब कुछ लुट जाने का दुखङा है, उनके कहने का मतलब यह था कि–हे अल्लाह के पैगंबर-हम लोगों को आसपास के दुश्मनों की भारी संख्या के कारण शांति नहीं है, और हम चोरों, लुटेरों और बेईमानों के अन्यायों के कारण मदीना की चारदीवारी से बहार नहीं जा सकते हैं, हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- ने उनको भी कुछ कहा और वहाँ से चलते बने, अदी ने इस विषय को अपने मन में उलटफेर करके बार बार सोंचा, हालाँकि वह अपनी जनता में बहुत मान्यता और सम्मान रखते थे, और उनके कोई दुश्मन भी नहीं थे जो उनके घात में रहते, उनको कोई डर भी नहीं था, इसके बावजूद वह इस धर्म में क्यों दाख़िल हो रहा है? जबकि इस धर्म के माननेवाले निर्बल, शक्तिहीन कमज़ोर और बेबस हैं, वह दोनों हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- के घर को पहुँच गए, और दोनों घर में दाख़िल हो गए, वहाँ एक तकिया पङा था हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- ने वह तकिया अदी को आदर के रूप में दे दिया, और उन्होंने कहा यह लीजिए इस पर पधारिये, तो अदी ने वह वापस करके कहा कि आप ही उस पर बैठिये l अंत में वह तकिया अदी के पास टिक गया और वह उस पर बैठ गए l उस समय हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- अदी और इस्लाम धर्म के बीच पङी रुकावटों को धीरे धीरे हटाने लगे: हे अदी! इस्लाम धर्म में आजाओ, आनन्दित रहो गे, इस्लाम धर्म में आजाओ, आनन्दित रहो गे, इस्लाम धर्म में आजाओ, आनन्दित रहो गे l
अदी ने कहा मैं तो पहले से एक धर्म पर हूँ, हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- ने कहा मैं तुम्हारे धर्म के बारे में तुम से अधिक जानकारी रख्ता हूँ, उसने कहा आप हमारे धर्म के बारे में अधिक जानकारी रखते हैं! उन्होंने कहा:हाँ, क्या तुम "रुकूसीयह" संप्रदाय से नहीं हो?
"रुकूसीयह" ईसाई धर्म की एक शाखा है जिस में पारसी धर्म की कुछ मिलावट है l तो आपने देखा कि हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- के भीतर दूसरों को मनवाने का कितना अच्छा और पक्का गुण था! इसी कारण उन्होंने केवल यह नहीं कहा कि तुम ईसाई नहीं हो बल्कि इस से भी अधिक महत्वपूर्ण बात के बारे में जानकारी दी और ईसाई धर्म की जिस शाखा से उसका संबंध था वह भी ठीक ठीक बता दिया, आप इस को यूँ समझिए कि यूरोप के किसी देश में आप को किसी ने यह कहा कि तुम ईसाई धर्म क्यों स्वीकार नहीं करते? और आप ने कहा कि मैं तो पहले से एक धर्म का मानने वाला हूँ, उसने आपको यह नहीं कहा कि आप मुस्लमान नहीं हैं, यह भी नहीं कहा कि आप "सुन्नी" नहीं है बल्कि सीधा यह कहा कि आप "शफी" या "हंबली" नहीं हो, उस समय आप को पता चल जाए गा कि उसको तो आप के धर्म के बारे में सब कुछ पता है l
हमारे प्रमुख गुरु ने भी "अदी" के साथ यही किया और इसीलिए उन्होंने यह पूछा कि क्या तुम "रुकूसीयह" जाती से नहीं हो? इस पर "अदी" ने कहा था क्यों नहीं, और अन्होंने कहा जब तुम अपनी जनता के साथ युद्ध में जाते हो तो चौथा भाग नहीं लेते हो?[2] उसने कहा जी हाँ तो फिर उन्होंने कहा यह तो तुम्हारे धर्म में शुद्ध नहीं है इस बात पर "अदी" थोड़ा झिझका और कहा जी हाँ बात तो ठीक है, तो उनहोंने कहा मैं तो यह जानता हूँ कि तुम्हारे और इस्लाम धर्म के बीच क्या रुकावट है? तुम यह सोंच रहे हो कि इस्लाम धर्म के मानने वाले लोग बेसहारे और ग़रीब हैं, अरबों ने उन्हें फेंक दिया है l हे "अदी" क्या तुम "हीरह"[3] नामक स्थान को जानते हो ? "अदी" कहते हैं मैंने कहा, देखा तो नहीं हूँ पर उसके बारे में सुना हूँ l तो उनहोंने कहा उस अल्लाह की क़सम जिसके हाथ में मेरी जान है, यह जान लो! अल्लाह इस बात को ज़रूर पूरी करके रहेगा यहाँ तक कि स्त्री यात्री "हीरह से"{अकेले} निकल कर आएगी और "काबा" का चक्कर लगाए गी और उसके साथ कोई नहीं रहे गा l
मतलब यह है कि इस्लाम धर्म इतना मज़बूत हो जाए गा कि हज यात्रा करने वाली मुस्लमान स्त्री "हीरह" से निकलेगी और पवित्र "मक्का" को पहुंचेगी जबकि उसके साथ कोई रिश्तेदार नहीं रहेगा और न उसको किसी की रक्षा की ज़रूरत पड़ेगी वह सेंकङौं जातियों के बीच से गुज़र कर यात्रा करेगी पर कोई भी उसे छेङने की हिम्मत नहीं कर सके गा l और न उसका सामान या धन छीन सकेगा क्योंकि मुसलमानों की ऐसी ताक़त, ज़ोर और ऐसा दबदबा हो जाएगा कि मुसलमानों के उसकी सहायता केलिए उठ खड़े होने के डर से कोई भी किसी मुस्लमान को सताने या हाथ लगाने की हिम्मत तक नहीं करेगा l जब "अदी" ने यह बात सुनी तो अपने मन में पूरा फोटो घुमाने लगा: एक अकेली स्त्री इराक़ से निकल कर "मक्का" पहूँच जाएगी इसका मतलब यह है कि उत्तरी प्रायद्वीप से भी पार होगी, जिसका साफ मतलब यह है कि "तय" की पहाड़ियों के पास से भी गुज़रे गी और उसकी जनता के पास से होकर गुज़रेगी l "अदी" को अचंबा लगा और अपने मन में कहा कि "तय" के लुटेरों का क्या होगा जिन से सारे देश भय खाते हैं! फिर उन्होंने कहा: ज़रूर "किसरा" बिन हुर्मुज़ राजा के ख़ज़ाने खोल दिए जाएँगे, उसने कहा "किसरा" बिन हुर्मुज़ राजा के ख़ज़ाने? उन्होंने कहा: हाँ "किसरा" बिन हुर्मुज़ के ख़ज़ाने, और उसके धनदौलत अल्लाह के रस्ते में ख़र्च किए जाएँगे l उन्होंने कहा यदि तुम्हारी जीवन तुम्हारा साथ दे तो तुम देख लोगे कि "आदमी"हथेली भर सोना या चांदी लेकर निकले गा कि कोई ले तो वह किसी लेने वाले को न पाए गा l उनके कहने का मतलब यह था कि इतना अधिक धन होजाए गा कि धनी मनुष्य अपना दान लेकर घूमे गा पर उसे कोई मांगता नहीं मिलेगा कि उसको ले l इसके बाद वह "अदी" को समझाने लगे और उसको स्वर्ग और नर्क याद दिलाने लगे l उन्होंने कहा: ज़रूर तुम में से प्रत्येक आदमी अल्लाह से मिलेगा जिस दिन उस से मिलन होगी उस के और उनके बीच कोई अनुवादक नहीं रहे गा, वह अपने दाएँ झांके गा तो नर्क के सिवाय कुछ नहीं देखेगा और अपने बाएँ देखे गा तो नर्क के सिवाय कुछ नहीं देखेगा l "अदी" थोड़ी देर केलिए सोंचा, इतने में उनहोंने अचानक कहा: हे "अदी"! ला इलाहा इल्लाललाहू[अल्लाह के सिवाय कोई पूजा का अधिकारी नहीं है ] कहने से क्यों भाग रहे हो? क्या तुम्हारी जानकारी में अल्लाह से भी बढकर कोई ईश्वर है? "अदी" ने कहा:तो अब में सच्चा पक्का मुस्लमान हूँ l मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह को छोड़ कर कोई पूजा का अधिकार नहीं है,और मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद उसका दास और पैगंबर है l
इस पर हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- का शुभ चेहरा ख़ुशी और प्रसन्नता से चाँद की तरह खिल उठा l "अदी" बिन हातिम ने कहा:तो वह स्त्री यात्री अब बिना किसी रक्षा करनेवाले के "हीरह" से निकल रही है और पवित्र कअबा का चक्कर लगा रही है, और निस्संदेह मैं उन लोंगों में शामिल था जिन्होंने किसरा के ख़ज़ाने खोले थे ,और उसकी क़सम जिसके कब्ज़े में मेरा प्राण है, वह तीसरा भी ज़रूर होकर रहे गा क्योंकि अल्लाह के पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- ने कहा है l[4]
तो ज़रा सोचिए कि उनहोंने "अदी" के साथ कैसा अपनापन के आचरण से व्यवहार किया, और इस मान्यता से उस से मिले कि "अदी" को उसका अच्छे रूप से पता भी चल गया l
सोचिए कि यह सब उसको किस प्रकार से इस्लाम धर्म की ओर खींच लाया, यदि हम भी लोगों के साथ इसी प्रकार की चाहत से व्यवहार करें तो लोग कोई भी हों हम उनके दिल पर कब्ज़ा कर सकते हैं l
निचोड़:
नम्रता, संतुष्ट करने और व्यवहार के गुणों के प्रयोग के द्वारा , हम अपनी कामनाओं को प्राप्त कर सकते हैं l
[1] यह भी कहा गया है कि उसकी बहन ही सीरिया जाकर उसे वापस अपने देश मैं लाई थी l
[2] : यह चौथा भाग अरबी भाषा में "मिरबाअ" कहा जाता है, जब अरब का कोई जथा युद्ध लड़ता था तो उसका मुख्य आदमी युद्ध की ग़नीमत को चार भागों में बांटता था और चौथा भाग अपने लिए रख लेता था , यह ईसाई धर्म में शुद्ध नहीं है, परन्तु अरबों के पास शुद्ध था l
[3] "हीरह" इराक़ के एक शहर का नाम था l
[4] बुखारी और मुस्लिम ने इस को उल्लेख क्या है l