हज़रत हिन्द उम्मे सलमा-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे-
उनका वंश
हिन्द उम्मे सलमा पुत्री थीं सुहैल की जो अबू-उमय्या बिन अल-मुगीरा के नाम से मशहूर थे, कहा गया है कि उनके दादा मुगीरा को ही हुज़ैफा भी कहा जाता था और वही “ज़ाद अर-रकब”के नाम से भी मशहूर थे, हज़रत हिन्द कुरैशी और मख्ज़ुमी थीं, और उनके दादा को “ज़ाद अर-रकब”(यानी मुसाफिर का तोशा) इसलिए कहा जाता था कि वह बहुत दानशील थे यदि उनके साथ कोई यात्रा करता था तो उसको साथ तोशा नहीं रखने देते थे और वही पूरे रास्ते भर खिलाते पिलाते जाते थे lहज़रत हिन्द की शादी पहले तो अबू-सलमा अब्दुल्ला इब्न अब्दुल असद अल-मख्ज़ुमी के साथ हुई थीl
उनके गुण
उम्मे-सलमा शिष्टाचार और समझबूझ में सबसे उत्तम महिलाओं में से थींlवह और उनके पति अबू-सलमा उन पुराने लोगों में शामिल थे जो सब से पहले इस्लाम धर्म को गले लगाए थेlहिन्द अपने पति के साथ हब्शा की ओर स्थलांतर करनेवालों में शामिल थीं, उनको सलमानामक लड़की पैदाहुईं उसके बाद शुभ मक्का को वापिस हुईं, फिर दोनों पति और पत्नी पवित्र मदीना को हिजरत किए, और वहाँ उनको दो लड़कियां और एक लड़का पैदा हुए, वह पवित्र मदीना की ओर स्थलांतर करनेवाली पहली महिला थीं, अबू-सलमा मदीना में रहते हुए उहूद की लड़ाई में घाव की ताब न लाकर इस दुनिया से चल बसेlजंगे उहूद में वह बहुत बहादुरी और साफ़ दिली से लड़े थेlवास्तव में वह तो शहादत पाने की इच्छा अपने दिल में रखतेlअबू-सलमा हमेशा अल्लाह से यह प्रार्थना किया करते थे:“हे अल्लाह मेरे परिवार की मेरे बाद तू अच्छी तरह रक्षा कर l” इसलिए उनके निधन के बाद अल्लाह की ओर से हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-उनकी पत्नी की रक्षा पर लगाए गएlऔर उनको सभी विश्वासियों की माँ होने का दर्जा मिला, और उनके बच्चे बच्चियां सलमा, उमर और ज़ैनब हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के अपने बच्चों की तरह हो गाए और उनके पालन पोषण में रहने लगे, और यह घटना चार हिजरी में घटी थी l
हज़रत हिन्द उन सहाबा में से थीं जिनको इस्लामी न्यायशास्त्र की बड़ी कुशलता थी, और वह "फतवा" दिया करती थीं, उनको इब्ने हज़म ने दूसरे दर्जे के न्यायशास्त्र के माहिर में शामिल किया( मतलब ऐसे सहाबा में से जिनके फतवे माध्यम संख्या में थे न बहुत ज़ियादा और न बहुत कम lउनका कहना है:“उन लोगों के विषय में जिनके फतवे माध्यम संख्या में थे:उन लोगों मेंउस्मान, अबू-हुरैरा, अब्दुल्लाह बिन अम्र, अनस और उम्मे-सलमा शामिल हैं lइन लोगों में से प्रत्येक के फतवों को यदि संकलित कर दिया जाए तो प्रत्येक के फतवों की एक छोटी सी पुस्तक बन सकती है l”
हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के साथ उनका विवाह
जब उनकी इद्दत(पति के मरने के बाद पत्नी को दूसरी शादी से पहले कुछ महीनों तक इस्लामी न्यायशास्त्र के अनुसार इंतिज़ार करनी पड़ती है उसी को इद्दत कहते हैं) पूरी हो गई तो हज़रत अबू-बक्र-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे-ने उनके पास शादी का पैगाम भेजा तो वह राज़ी नहीं हुईlइस विषय में हज़रत उम्मे सलमा कहती हैं:जब मेरी इद्दत गुज़र गई तो हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- मेरे पास शादी का पैगाम लेकर आए, तो मैं उनको बोली मेरी तरह की महिला की शादी नहीं होती है, और फिर मुझ से तो अब बच्चे भी नहीं हो सकते, फिर मैं एक ईर्ष्यालु महिला हूँ और मेरे पास बालबच्चे हैंlतोहज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने कहा: मैं तो तुमसे बड़ी उम्र का हूँ और जहां तक ईर्ष्या की बात है तो अल्लाह उसे खत्म कर देगा, और बालबच्चे अल्लाह और उसके रसूल के ज़िम्मे में रहेंगे, इस तरह हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने उनसे शादी कर ली, और उनके पास आते थे और उनको यह कह कर संबोधित करते थे: ज़ुनाब(प्यार से यह नाम देते थे) कहाँ हैं? इतने में अम्मार बिन यासिर आए और उम्मे सलमा से लड़ लिए इस बात पर कि हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-की बात को उठा रही थीं, और अम्मार बिन यासिर अपने बचपन में उनका दूध पिए थे, जब हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-उनके पास आए और उनको ज़ुनाब कह कर बुलाए तो क़रीबह बिन्त अबू-उमय्या जो वहीँ खड़ी थीं बोलीं कि अम्मार बिन यासिर उनको पकड़ रखे तो हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने कहा: आज रात मैं तुम लोगों के पास आ रहा हूँ, तो मैं उठी और चक्की के नीचे रखने का चमड़ा निकाली, और एक मटके में से कुछ जौ निकाली और घी निकाली और सब को मिला दी, फिर हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-रात में ठहरे और सुबह तक रहे और सुबह को बोले:तुम्हारा तो तुम्हारे घर में बहुत आदर है, यदि तुम चाहो तो तुम्हारी सात दिनों की बारी कर दूँऔर फिर मेरी दूसरी पत्नियों के पास भी सात दिनों की बारी होगी l
यह हदीस हज़रत उम्मे सलमा हिन्द बिन्त अबू-उमय्या-अल्लाह उनसे खुश रहे-से कथित है और सही है इसे इब्न हजर अस्क़लानी ने उल्लेख किया है, देखिए “अल-इसाबा”पेज नंबर ४/४५९l
जब हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने हज़रत उम्मे सलमा से शादी कर ली तो हज़रत आइशा-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे- को बहुत दुख हुआ, खासतौर पर जब उनको हज़रत उम्मे-सलमा की सुंदरता के बारे पता चला, और जब हज़रत आइशा उनको देखीं तो बोलीं:अल्लाह की क़सम वह तो सुंदरता और खूबसूरती में उस से कई गुना बढ़ कर जो मैं सुनी थींlऔर हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-जब असर की नमाज़ पढ़ लेते थे तो अपनी पवित्र पत्नियों के पास जाया करते थे और उम्मे सलमा से शुरू करते थे और हज़रत आइशा-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे- पर खत्म करते थेl
अल्लाह के पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-एक बार यात्रा किए तो अपने साथ सफिय्या बिनते हुयेय् और उम्मे-सलमा को साथ लिए तो हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-हज़रत सफिय्या के हौदज के पास आए और वह इस ख्याल में थे कि उसमें उम्मे-सलमा हैं, और वह उम्मे-सलमा की बारी का दिन था, इस तरह हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-उम्मे-सलमा समझ कर उनसे बात करने लगे इस पर हज़रत उम्मे-सलमा में ईर्ष्या की भावना उमड़ पड़ी, तब हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-को इसका पता चल गया इस पर हज़रत उम्मे सलमा उनको बोलीं: आप मेरी बारी में इस यहूदी की बेटी से बात करते हैं और आप तो अल्लाह के पैगंबर हैं, मेरे लिए अल्लाह से माफ़ी मांगिए, दरअसल ईर्ष्या ने मुझ से यह सब कुछ बुलवाया l
उनके अभिलक्षण और नैतिकता
हज़रत उम्मे-सलमा का विचार बहुत सही निकलता था, जब वह अल्लाह के पैगंबर-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे-को हुदैबिया के दिन एक सलाह दी थी तो उनकी सलाह बहुत सही निकलीlइस विषय में कथित है कि हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने जब हुदैबिया में मक्कावालों के साथ सुलह लिखी और जब सुलह लिख ली गई तो उन्होंने अपने साथियों से कहा: चलो, उठो कुरबानी कर लो और बाल मुंड लो लेकिन कोई भी नहीं उठा जबकि उन्होंने तीन बार कहा, उसके बाद हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-उठे और उम्मे-सलमा के पास गए और उनको सारी बात बताए जो लोगों की ओर से पेश आए थे, तो उम्मे-सलमा ने उनको सलाह दी और कहा: ऐ अल्लाह के पैगंबर! क्या आप यह चाहते हैं? तो आप खुद निकालिए और किसी से भी कोई बात मत कीजिए और अपनी कुरबानी को ज़बह कर लीजिए तो वह निकले और अपनी कुरबानी को ज़बह कर लिए और बाल काटनेवाले को बुलाए और बाल उतार दिए, जब लोगों ने यह देखा तो लोग भी उठे और अपनी अपनी कुरबानी के जानवरों को ज़बह करने लगे, और जल्दी जल्दी खुद एक दूसरे के सिर के बाल उतारने लगेl वास्तव में हज़रत उम्मे-सलमा आज की पत्नियों और माताओं के लिए बेहतरीन मिसाल हैं जिसका अनुकरण उन पर ज़रूरी है, खासतौर पर अपने बच्चों की परवरिश उन्हें शिष्टाचार सिखाने में, हज़रत उम्मे-सलमा एक बेहतरीन पत्नी और एक बेहतरीन माँ थींlवह उचित सोंच और ठोस चरित्र की मालिक थींl अपने फैसले खुद ले सकती थी, और बहुत अच्छे व्यवहार की कौशलता रखती थीlऔर यही बातें आज माओं और पत्नियों में बहुत कम पाई जाती हैंlआज की महिलाएं अपने पति का ख़याल नहीं रखती हैं , अपने बच्चों पर ध्यान नहीं देती हैं, और मुश्किल घड़ियों में अपने पतियों को भूल जाती हैं और अपने पतियों की स्तिथियों को ख्याल में नहीं लाती हैं, यही रोना है आज की महिलाओं पर lअपने बच्चों के देखरेख की परवाह नहीं रखती हैं पति को जैसे तैसे रखती हैं, और दुनिया को बहुत महत्व देती हैं बल्कि ऐसी ऐसी चीजों को बहुत महत्व देती हैं जिनका वास्तव में कोई महत्व नहीं होता हैl
हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-की हदीसों के कथन में उनकी भूमिका
मोमिनों की मां हज़रत उम्मे-सलमा ने बहुत सारी हदीसें कथित कीं, हज़रत आइशा-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे-के बाद हदीस के कथन में उनका दर्जा है, बकी बिन मख्लाद की पुस्तक के अनुसार उनकी हदीस की संख्या ३७८ है, उनकी १३ हदीस पर बुखारी और मुस्लिम दोनों सहमत हुएlउनमें से तीन में बुखारी अकेले रहे और मुस्लिम ने १३ को उल्लेख किया, जबकि “तुह्फतुल अशराफ”नामक पुस्तक के अनुसार उनके द्वारा कथित हदीसों की संख्या १५८ है l
उनके द्वारा कथित हदीसों की विषय वस्तु
दरअसल मोमिनों की मां हज़रत उम्मे-सलमा और मोमिनों की मां हज़रत आइशा-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे-की सहाबा के बीच उपस्थिति औरहज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के बाद उनका देर तक जिंदा रहना ज़ियादा हदीस फैलाने के महत्वपूर्ण कारण थे, और इसी कारण उनसे धर्म से संबंधित प्रश्न और फतवा पूछने का ज़ियादा अवसर प्राप्त हुआ, बल्कि हज़रत आइशा-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे- की ५८ हाजरी में मौत के बाद, उम्मे-सलमा-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे- ही धर्म से संबंधित प्रश्नों और फतवा देने के लिए बच रही थीं, क्योंकि हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-की पवित्र पत्नियों में उम्मे-सलमा का ही निधन सब के आखिर में हुआ, जिसके कारण उनके द्वारा कथित हदीसों की संख्या ज़ियादा रहीं, और उम्मे-सलमा के द्वारा कथित हदीसों में कई महत्वपूर्ण विषय शामिल रहे जिन में, अहकाम(धर्म से संबंधित नियम) तफसीर(क़ुरआन के अर्थ का ज्ञान) शिष्टाचार के सिद्धांत, दुआ, आनेवाले समय में होनेवाली घटनाएं, इतियादी रहेl
हज़रत उम्मे-सलमा से कथित हदीसों में अक्सर अहकाम(धर्म से संबंधित नियम) की हदीसें शामिल हैं, खासतौर पर इबादत से संबंधित विषय, जैसे : पवित्रता, नमाज़, प्रार्थना, ज़कात(अपने धन में से कुछ दान करना), रोज़ा (उपवास), 'हज'यात्रा, और जनाज़े के नियम (शादी, लड़ाई, आदि के नियम), और गुप्तांगों के छिपाने, और क्या घर से निकलते समय आकाश की और देखना है, क्या महिला अपने तहबंद को एक बालिश्त नीचे रख सकती है? इतियादीlइसी तरह उनके कथन में यह भी शामिल हैं कि पीने की कौन कौन सी चीजें वैध हैं और कौनसे अवैध, और यह कि खजूर को पानी में रख कर इतना ज़ियादा नहीं पकाना चाहिए के उनकी गुठलियाँ भी पक जाएँ और अंगूर के भिगोए पानी में खजूर को नहीं भिगोना चाहिए,(दरअसल ऐसा करने से उसमें नशा आजाने की संभावना है) इसी तरह उन्होंने विवाह, शोक मनाना, बच्चे को दूध पिलाने के नियम के बारे में हदीसें कथित की हैं, इसी तरह उनकी हदीसें जंगों, अन्याय और सामाजिक गड़बड़ियों के विषय में जानकारी से संबंधित हैं, उनकी हदीस में एक फौज के बारे में खबर दी गई जो धरती में समा जाएगी, और उनकी हदीस में हज़रत महदी(क़ियामत के नज़दीक समय में एक आदमी हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के खानदान के लोगों में पैदा होंगे, जो इस्लाम की सरबुल्न्दी के लिए काम करेंगे), इसी तरह उनसे हज़रत अली और हज़रत अम्मार की बड़ाई के विषय में भी हदीसें उपस्थिति हैंlइन सब बातों से यही स्पष्ट होता है कि हज़रत उम्मे-सलमा-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे-का दिमाग बहुत अच्छा था, और वह हदीस से अच्छा खासा लगाव रखती थींlइस विषय में अधिक जानकारी के लिए देखिए“आमाल क़रदाश बिनते अल-हुसैन” और “पहली तीनों सदियों में महिलाओं का शुभ हदीस की सेवा में योगदान”और “किताबुल-उम्मा”प्रकाशन नंबर ७०l
उनके छात्र
याद रहे कि विभिन्न देशों के छात्र जिन में मर्द और महिला सभी शामिल हैं उनसे हदीस कथित किए, वास्तव में उनसे बहुत सारे लोगों ने हदीसें रिवायत कीं जिनमें से कुछ के नाम यहाँ दिए जाते हैं: सहाबा में से: हज़रत आइशा, अबू-सईद अल-खुदरी, उमर बिन अबू-सलमा,बुरैदह बिन हुसैन अल-असलमी, सुलैमान बिन बुरैदह,अबू-रफेअ और इब्ने अब्बास- अल्लाह उन सब से प्रसन्न रहे-l
ताबिईन में से:(ताबिईन उस मुसलमान को कहते हैं जिन्होंने सहाबा को देखा या उनसे मिले) उनमें सब से मशहूर यह लोग थे: सईद बिन मुसय्यब, सुलैमान बिन यसार, शकीक़ बिन सलमा, अब्दुल्लाह बिन अबू-मुलैका, आमिर अश-शअबी, अस्वद बिन यज़ीद, मुजाहिद, अता बिन रबाह, शहर बिन हौशब, नाफेअ बिन जुबैर बिन मुतइम, आदिl
महिलाओं में से:
खुद उनकी बेटी ज़ैनब, हिन्द बिनते हारिस, सफिय्या बिनते शैबा, सफिय्या बिनते अबू-उबैद, इबराहीम बिन अब्दुर्रहमान बिन ओफ की मां, अमरा बिनते अब्दुर्रहमान, हकीमा, रमीसा और मुहम्मद बिन क़ैस की मां l
कुफा की महिलाओं में से: अमरा बिनते अफआ, जसरा बिनते दजाजा, उम्मे-मुसाविर अल-हिम्यरी, उम्मे-मूसा, इब्ने-जदआन की दादी, उम्मे-मुबश्शिर lइस विषय में अधिक जानकारी के लिए देखिए“आमाल क़रदाश बिनते अल-हुसैन” और “पहली तीनों सदियों में महिलाओं का शुभ हदीस की सेवा में योगदान”और “किताबुल-उम्म
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