Under category | दिन और रात की हज़ार सुन्नतें – खालिद अल-हुसैन | |||
Creation date | 2007-11-30 13:19:40 | |||
Article translated to
|
العربية English Français Deutsch Español Italiano Indonesia Русский 中文 Português Nederlands 日本の | |||
Hits | 41765 | |||
इस पेज को......भाषा में किसी दोस्त के लिए भेजें
|
العربية English Français Deutsch Español Italiano Indonesia Русский 中文 Português Nederlands 日本の | |||
Share Compaign |
इक़ामत की सुन्नतें:
आज़ान में उल्लेखित पहली चार सुन्नतें इक़ामत में भी उसी तरह की जाएंगीं, जैसा कि "अल-लज्नतुद-दाइमा लील-बुहूस अल-इलमिय्या वल-इफ़्ता के फतवा में आया है, इसतरह इक़ामत की सुन्नतें बीस हो जाएंगी जो हर नमाज़ के समय अमल में आती हैं.
आज़ान और इक़ामत के समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना अच्छा है, ताकि अल्लाह की अनुमति से उसकी आज्ञाकारी हो और उसकी ओर से पूरा पूरा इनाम मिल सके.
क - आज़ान और इक़ामत के समय काअबा की ओर मुंह रखना चाहिए.
ख – खड़ा रहना चाहिए .
ग - आज़ान और इक़ामत दोनों में पवित्र रहना चाहिए, यदि मजबूरी न हो, इक़ामत की शुद्धता के लिए तो पवित्रता ज़रुरी है.
घ - आज़ान और इक़ामत के समय बात न करना विशेष रूप से, उन दोनों के बीच वाले समय में.
ड़ – इक़ामत के दौरान स्थिरता बनाए रखना.
च- सम्मानित शब्द "अल्लाह" को साफ़ साफ़ बोलना चाहिए, विशेष रूप से "अल्लाह" के "अ" और "ह" को, और आज़ान में जब जब भी यह शब्द दुहराया जाता है वहाँ इस पर ध्यान देना आवश्यक है, लेकिन इक़ामत में तो ज़रा तेज़ तेज़ और जल्दी जल्दी ही बोलना चाहिए.
छ - आज़ान के दौरान दो उंगलियों को कानों में रखना भी सुन्नत है.
ज- आज़ान में आवाज़ को ऊँची रखनी चाहिए और खिंचना चाहिए लेकिन इक़ामत में एक हद तक कम करना चाहिए.
झ – आज़ान और इक़ामत के बीच थोड़ा समय छोड़ना चाहिए, हदीसों में यह उल्लेखित है कि दोनों के बीच इतना समय होना चाहिए जितने में दो रकअत नमाज़ पढ़ी जा सके या सजदे किये जा सकें, या तस्बीह पढ़ी जा सके, या बैठ सके या बात कर सके, लेकिन मग़रिब की नमाज़ की आज़ान और इक़ामत के बीच केवल सांस लेने भर समय ही काफी है.
लेकिन याद रहे कि उन दोनों के बीच में बात करना मकरूह या न-पसंद है, जैसा कि सुबह की नमाज़ वाली हदीस में उल्लेखित है. और कुछ विद्वानों ने कहा है कि एक क़दम चलने भर समय भी काफी है, याद रहे कि इस में कोई बुराई नहीं है बल्कि इस में तो जैसा भी हो बात बन जाए गी.
ञ - आज़ान और इक़ामत सुनने वाले के लिए पसंदीदा बात यह है कि आज़ान में जिन शब्दों को सुनता है उन्हें दुहराता जाए, भले ही यह आज़ान कुछ खबर देने के लिए हो, या नमाज़ की आज़ान हो, लेकिन जब इक़ामत में "क़द क़ामतिस-सला" (नमाज़ खड़ी हो चुकी है) को सुनते समय यह कहना चाहिए:"ला हौला वला क़ुव्वता इल्ला बिल्लाह" (न कोई शक्ति है और न कोई बल है मगर अल्लाह ही से.)