Under category | दिन और रात की हज़ार सुन्नतें – खालिद अल-हुसैन | |||
Creation date | 2007-11-30 15:18:15 | |||
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हर हर घड़ी अल्लाह को याद करना:
१) वास्तव में अल्लाह की याद, अल्लाह की इबादत और उसकी बंदगी की बुनयाद है, क्योंकि उसे सदा याद रखना एक दास के अपने सर्जनहार से हर समय और हर घड़ी लगाव की निशानी है: हज़रत आइशा-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे- के द्वारा उल्लेख है कि हज़रत पैगंबर-उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो- अपनी हर घड़ी में अल्लाह को याद किया करते थे lइसे इमाम मुस्लिम ने उल्लेख किया है l
* याद रहे कि अल्लाह से जुड़े रहना वास्तव में जीवन है, और उसकी शरण में आना ही मुक्त है, उसके नज़दीक होना सफलता और प्रसन्नता है , और उस से दूर होना गुमराही और क्षति है l
२– अल्लाह को याद करना सच्चे मोमिनों (विश्वासियों) और पाखण्डीयों के बीच विशिष्ट चिह्नहै, पाखण्डीयों की पहचान ही यही है कि वे अल्लाह को याद नहीं करते हैं मगर बिलकुल नामको l
३- शैतान मनुष्य पर उसी समय चढ़ बैठता है जब वह अल्लाह की याद को त्याग देता है lवास्तव में अल्लाह की याद वह मज़बूत गढ़ है जो मनुष्य को शैतान के जालों से बचाता है l
* शैतान तो चाहता ही यही है कि व्यक्ति को अल्लाह की याद से बहका दे l
४– अल्लाह की याद ही प्रसन्नता का रास्ता हैlअल्लाह सर्वशक्तिमान का फ़रमान है:
" الَّذِينَ آمَنُوا وَتَطْمَئِنُّ قُلُوبُهُمْ بِذِكْرِ اللَّهِ أَلا بِذِكْرِ اللَّهِ تَطْمَئِنُّ الْقُلُوبُ" (الرعد: 28)
"ऐसे ही लोग हैं जो ईमान लाए और जिनके दिलों को अल्लाह के स्मरण से आराम और चैन मिलता हैl" (अर-रअद: 28)
५– अल्लाह को सदा याद करना आवश्यक है, क्योंकि स्वर्ग के लोगों को किसी भी बात पर कोई अफसोस और पछतावा नहीं होगाlयदि पछतावा होगा तो केवल उस घड़ी पर जो दुनिया में बिना अल्लाह सर्वशक्तिमान को याद किए गुज़र गई l(अल्लाह को याद करने का मतलब ही यही है कि अल्लाह से लगातार लगाव बना रहे l
इमाम नववी का कहना है: विद्वानों का इस बात पर समर्थन है कि अल्लाह को हर तरह याद किया जा सकता है, दिल से , जीभ से , बिना वुज़ू किए, इसी तरह बिना नहाई और माहवारी वाली स्त्री और बच्चा जन्म देने के बाद खून से पवित्र होने से पहले भी स्त्री अल्लाह को याद कर सकती है, उन स्तिथियों में भी अल्लाह को याद करना वैध है, और वह "सुब्हानल्लाह" (पवित्रता है अल्लाह के लिए है) और "अल्लाहु अकबर"(अल्लाह बहुत बड़ा है) और "अलहम्दुलिल्लाह" (सभी प्रशंसा अल्लाह के लिए है) और "ला इलाहा इल्लाहू" (अल्लाह को छोड़ कर कोई पूजनीय नहीं है)पढ़ सकती है, इसी तरह हज़रत पैगंबर-उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो-पर दुरूद व सलाम पढ़ना भी वैध है, और दुआ करना भी मना नहीं है, हाँ पवित्र कुरान को नहीं पढ़ेगी l
६ जो भी अपने पालनहार को याद करता है तो उसका पालनहार भी उसे याद करता है lअल्लाह सर्वशक्तिमान का फरमान है :
" فَاذْكُرُونِي أَذْكُرْكُمْ وَاشْكُرُوا لِي وَلا تَكْفُرُونِ"(البقرة:152(
अत:और तुम मुझे याद रखो, मैं भी तुम्हें याद रखूंगा lऔर मेरा आभार स्वीकार करते रहना, मेरे प्रति अकृतज्ञतान दिखलाना l [अल-बक़रा: १५२]
७– इस याद का हरगिज़ यह मतलब नहीं है कि आदमी किसी विशेष शब्द की रट लगाते बैठे, और दिल अल्लाह के सम्मान और उसकी फरमाबरदारी से दूर भटकता फिरे, इसलिए ज़ुबान से याद करने के साथ साथ उन शब्दों के अर्थ और मतलब में सोच-वीचार करे बल्कि उनके अर्थों में डूबा रहना भी ज़रूरी है lअल्लाह सर्वशक्तिमान का फरमान है :
" وَاذْكُرْ رَبَّكَ فِي نَفْسِكَ تَضَرُّعاً وَخِيفَةً وَدُونَ الْجَهْرِ مِنَ الْقَوْلِ بِالْغُدُوِّ وَالْآصَالِ وَلا تَكُنْ مِنَ الْغَافِلِينَ " (الأعراف:205(
"अपने रब को अपने मन में प्रात: और संध्या के समयों में विनम्रतापूर्वक, डरते हुए और हल्की आवाज़ के साथ याद किया करो lऔर उन लोगों में से न हो जो ग़फ़लत में पड़े हुए हैं l( अल-अअराफ़: २०५ )
• इसलिए अल्लाह को याद करने वाले व्यक्ति केलिए यह ज़रूरी है कि उन शब्दों को अच्छी तरह समझे और मन में बिठाए और जिनको वह ज़ुबान से कह रहा है उन्हें अपने दिल में भी उपस्थित रखे lताकि ज़ुबान की याद के साथ साथ दिल की याद भी इकठ्ठी हो जाए, और मनुष्य बाहर और अंदर दोनों के द्वारा अल्लाह से जुड़ा रहे l