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Under category हज़रत पैगंबर की पवित्र पत्नियां
Creation date 2007-11-02 14:16:52
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हज़रत मारिया किब्तिय्यह-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे-

 

 

हज़रत मारिया किब्तिय्यह-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे-हुदैबियह की संधि की घटना के बाद ६ हिजरी में शुभ मदीना को आईंlविद्वानों का कहना है कि उनका नाम मारिया बिनते शामऊन था lजब हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-और मक्का के मूर्तिपूजकों के बीच शांति संधि लिखी जा चुकी तो उन्होंने इस्लाम धर्म को प्रचार करना शुरू कर दिया, और हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- ने दुनिया भर के राजाओं को पत्र भेजा और उन्हें इस्लाम को गले लगाने के लिए आमंत्रित किया lउन्होंने इस संबंध में काफी ध्यान दिया, और अपने साथियों में से सबसे अनुभवी और कुशल व्यक्तियों को चुन लिया और उन्हें दुनिया भर के राजाओं के पास इस्लाम धर्म का संदेश पहुंचाने का कार्य सौंपा lउनमें रूम का राजा हिरक्ल और  फारस का राजा परवेज़औरमिस्र का राजा मुकौकिस और हब्शा का राजा नेगुस शामिल थाlउन राजाओं ने हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- के पत्र का सम्मान किया और अच्छी तरह उसका उत्तर दिया सिवाय किसरा फारस के राजा के जिसने उनके पत्र को फाड़ कर टुकड़े टुकड़े कर दिया l
हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- ने अपना पत्र बीजान्टिन साम्राज्य का मिस्र में गवर्नर इस्कंदरिया के राजा को भेजा और इसके लिए हज़रत हातिब बिन अबू-बलतअह को रवाना किया, जो अपने ज्ञान, बुद्धि और शुद्ध भाषा में बहुत मशहूर थेl इस तरह हज़रत हातिब बिन अबू-बलतअह ने उनके पत्र को लेकर मिस्र आए और मुकौकिस के पास गए जब वह वहाँ पहिंचे तो मुकौकिस ने उनका स्वागत किया और हज़रत उनके भाषण को ध्यान से सुना, और फिर कहा:"हमारे पास तो खुद एक धर्म है और उसको हम इसी शर्त पर छोड़ सकते हैं यदि कोई धर्म उस से बेहतर निकले l
मुकौकिस नेहज़रत हातिब बिन अबू-बलतअह के भाषण की प्रशंसा की और उनकी बात से प्रभावित हुआ और उनसे कहा:इस पैगंबर के विषय में मैंने देख लिया है कि न तो यह किसी नापसंद बात का आदेश देते हैं और न किसी पसंदीदा चीज़ से रोकते हैं, और मैंने तो उन्हें न कोई भटका हुआ जादूगर पाया, और न झूटा भविष्यवक्ता पाया, बल्कि मैं  तो उनमें नुबुव्वत (ईश्दूतत्व) की निशानी पाता हूँकि वह छिपी बातें को बता रहे हैं और गोपनीय बात की खबर दे रहे हैं, और मैं(इस विषय में) देखूँगाl
मुकौकिस ने हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-का पत्र ले लिया और उस पर मुहर लगा लियाlऔर हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के लिए एक जवाब लिखा जिसका मज़मून कुछ यूँ था:
"अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील, अत्यंत दयावान है lमुहम्मद बिन अब्दुल्लाको मुकौकिस किब्तियों के राजा की ओर से, सलाम हो आप परlइसके बाद:
 
मैंने आपका पत्र पढ़ाऔर उसमें जो आपने उल्लेख किया है और जिसकी ओर आप आमंत्रित कर रहे हैं उसका मतलब मैंने समझ लियाऔर मुझे विश्वास है कि आप आखिरी नबी हैं, लेकिन मेरा गुमान था कि वह शाम(सीरिया)क्षेत्र से निकलेंगे, मैंने आपके दूत का सम्मान किया, और मैंने आपके पास दो लड़कियां भेजी हैं जिनका कोप्तिक्स(मिस्रियों) के बीच बाड़ी शान है, और एक चादर भी है, और मैंने आपकी ओर एक खच्चर उपहार में दिया है ताकि आप उसपर सवारी करेंlऔर आप पर सलाम हो l 

उपहार की दोनों गुलाम लड़कियों में: मारियह बिनते शमऊन अल-किब्तियह और उनकी बहन सीरीन शामिल थीं l

याद रहे कि जब हज़रत हातिब मदीना को वापिस लौट रहे थे तो उन्होंने हज़रत मारिया और उनकी बहन सीरीन पर इस्लाम धर्म को पेश किया और उसे स्वीकार करने पर उनको उभारा तो अल्लाह सर्वशक्तिमान ने उन दोनों को इस्लाम से सम्मानित कर दिया lशुभ मदीना आने के बाद हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- ने हज़रत मारिया को अपने लिए रख लिया और उनकी बहन सीरीन को अपने महान कवि हस्सान बिन साबित अनसारी-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे- को दे दियाlहज़रत मारिया-अल्लाह उनसे खुश रहे- एक गोरी और सुंदर चेहरे की महिला थीं, उनके आने से हज़रत आइशा-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे- के दिल में ईर्ष्या उमड़ पड़ीlऔर हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- पर सदा नज़र रखती थीं कि हज़रत मारिया का वह कैसे ख़याल रखते हैंlइस विषय में हज़रत आइशा-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे-कहती हैं: "मुझे मारिया पर जितनी जलन हुई उतनी किसी पर नहीं हुई और यह इसलिए कि वह बहुत सुंदर और घुंघराले बालोंवाली और बड़ी बड़ी आँखोंवाली महिला थीं और हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- को बहुत पसंद आई थीं, जैसे ही वह पवित्र मदीना पहुंची उन्होंने उसे हरिसा बिन नुअमान के घर में उतारा था इस तरह वह हमारी पड़ोसन हो गई थी और हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- रात दिन में ज़ियादा समय उनके साथ बिताते थेl

फिर हम हाथ धो कर उनके पीछे पड़े तो वह घबरा गई और हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने उनको ज़रा दूर के घर में रख दिया लेकिन उनके पास जाते आते रहते थे और यह बात हम लोगों पर बहुत भारी गुज़रती थी l 

मारिया से हज़रत इबराहीम का जन्म

 

 
हज़रत मारिया के शुभ मदीना आने के एक साल बाद गर्भवती हुईं और हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-इस खबर को सुन कर बहुत खुश हुए क्योंकि हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- उस समय अपनी उम्र के छठे दशक में थे और उनको हज़रत फातिमा ज़हरा के इलावा और कोई औलाद नहीं बची थीlज़ुल-हज्ज के महीने में, हिजरत के आठवें साल में हज़रत मारियह ने एक सुंदर बच्चे को जन्म दिया जो हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- से मिलते जुलते रूप के थे, उन्होंने उनका नाम पैगंबरहज़रत इबराहीम खलील के नाम पर और बरकत के लिए इबराहीम रखा, उनके पैदा होते ही हज़रत मारियह आज़ाद होगईं lहज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- का पुत्र हज़रत इबराहीम एक साल तक हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- की देखरेख में रहा लेकिन दूसरा वर्ष पूरा होने से पहले वह बीमार होगए फिर एक दिन वह गंभीर रूप से बीमार हुए और उसी में उनका निधन हो गया, जब वह केवल १८ महीने के ही थेlउनका निधन हिजरत के दसवें साल में १० रबीउल अवाल को मंगलवार के दिन हुआ था, हज़रत मारियह को हज़रत इबराहीम की मौत पर बहुत दुख हुआ l
पवित्र क़ुरआन में हज़रत मारियह का मुक़ाम 
हज़रत मारियह-अल्लाह उनसे खुश रहे- का पवित्र क़ुरआन और हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-की जीवनी की पुस्तकों में बड़ा दर्जा है lअल्लाह सर्वशक्तिमान ने सूरा तहरीम के शुरू की आयतें हज़रत मारिया के बारे में उतारीlमुस्लिम विद्वानों ने इस विषय को अपनी अपनी पुस्तकों में उल्लेख किया है, हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- का जब निधन हुआ तो हज़रत मारियह -अल्लाह उनसे खुश रहे- से बिल्कुल राज़ी थे lहज़रत मारियह को हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- के सम्मानजनक घर में होने का सम्मान मिला और उनके घर के एक सदस्य बनने के सम्मान से वह सम्मानित की गईंlहज़रत मारियह-अल्लाह उनसे खुश रहे- भी सदाहज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-की खुशी को हासिल करने के लिए उत्सुक रहती थीं lइसी तरह उनकी इमानदारी, इबादत और परहेज़गारी बहुत मशहूर थीं l
उनका निधन 
हज़रत मारियह-अल्लाह उनसे खुश रहे- हज़रत उमर के राज्य के लगभग पाँच वर्ष को देखीं, और मुहर्रम के महीने में हिजरत के सोलहवें साल में उनका निधन हो गया तो हज़रत उमर ने लोगों को बुलाया और उनकी नमाज़े जनाज़ा के लिए लोगों को इकठ्ठा किया इस तरह हज़रत मारियह पर नमाज़े जनाज़ा पढ़ने के लिए मुहाजिर और अनसार में से सहाबा की एक बड़ी संख्या जमा हो गईlऔर हज़रत उमर-अल्लाह उनसे खुश रहे- ने बकीअ में उनकी नमाज़ पढ़ाई और हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-की पवित्र पत्नियों के पास अपने बेटे हज़रत इबराहीम के बग़ल में दफनाइ गईंl

 

 

निष्कर्ष
 
अंत में, मैं यह आशा रखता हूँ कि मुझे इस विषय के लिखने में अल्लाह के कृपा से सफलता मिली हो, जिस में मैंने मुकौकिस की ओर से हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- को भेजे हुए शानदार उपहार के बारे में बात की और उस महान औरत के महत्व को प्रकाशित करने का प्रयास किया जिनका उल्लेख क़ुरआन में हुआ,और हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-का दिल किस तरह हज़रत इबराहीम के जन्म के बाद हज़रत मारियह की ओर अधिक आकर्षित हो गया था, मुझे भरपूर उम्मीद है कि इस लेख से लोगों को लाभ होगाl

 

 

 
 
एक बार हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-मेरे पास आए, तो मैं बोली: हे अल्लाह के दूत! मैं आपकी शादी अपनी बहन अबू-सुफ़यान की बेटी से कराना चाहती हूँ, तो उन्होंने कहा: क्या तुम्हारी यह इच्छा है? तो मैं बोली: जी हाँ, लेकिन मैं आपको छोड़नेवाली भी नहीं हूँ, मैं तो अपनी बहन को भी इस खुशी में भाग दिलाना चाहती हूँ, तो उन्होंने कहा: निस्संदेह यह तो मेरे लिए शुद्ध नहीं है lतो मैं बोली: हे अल्लाह के रसूल! अल्लाह की क़सम हम तो इस बारे में बातचीत कर रहे थे कि दुर्रह बिनते अबू-सुफ़यान से आपकी शादी करा दी जाए, तो उन्होंने कहा: उम्मे-सलमा की बेटी? तो मैं बोली: जी हाँ, तो उन्होंने फरमाया: अल्लाह की क़सम! यदि वह मेरी बेटी के रिश्ते में न होती तो, वह तो मेरे लिए उचित नहीं है वह तो मेरे दूध शरीक भाई की बेटी है, सुवैबा ने मुझे और अबू-सलमा को दूध पिलाई इसलिए अब से तुम्हारी बेटियों और बहनों को शादी में मेरे सामने मत पेश करोl

 

 

यह हदीस  उम्मे-हबीबा बिनते-अबू-सुफ़यान के द्वारा कथित हुई और यह हदीस सही है, देखिए बुखारी शरीफ हदीस नंबर ५३७२ l 
इसके अलावा, उनसे फ़र्ज़ नमाजों से पहले की सुन्नतों और उनके बाद की सुन्नतों के बारे में हदीसें कथित हैं, और उनसे हज के बारे में भी हदीसें कथित हैं, खासतौर पर रात के आखिरी में और लोगों की भीड़भाड़ होने से पहले कमज़ोर महिलाओं और मर्दों के मुज्दलिफा से मिना को रवाना होने के बारे में उनसे हदीस कथित है lइसी तरह उनसे उस पत्नी के लिए इंतिज़ार और शोक के समय के विषय में भी हदीस कथित है जिसका पति मर गया हो और उनसे रोज़े के विषय में और आज़ान के बाद की दुआ के बारे में भी हदीस कथित है lउनसे इस बारे में भी हदीस कथित है कि जिस काफिला में घंटी हो उसके साथ फ़रिश्ते नहीं होते हैं lइसके इलावा उनसे और भी कई विषयों में हदीसें कथित हैं जिनमें हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-की बातों और कामों का बयान हैl     

 

उनका निधन
उम्मे-हबीबा-अल्लाह उनसे खुश रहे-का निधन ४४ हिजरी में हुआ और बकीअ में दफन हुईं lनिधन से पहले उन्होंने हज़रत  आइशा को बुलाया और कहा: शायद, मेरे और आपके बीच ऐसी कुछ बातें हुई हों जो आमतौर पर सौतनों के बीच होती हैं, तो आप मुझे माफ कर दीजिए और मैं भी आपको माफ करती हूँ, इस पर हज़रत आइशा ने कहा: अल्लाह आपको माफ करे और क्षमता दे और सब भूल चूक को मिटा दे lइस पर उम्मे-हबीबा ने कहा: आपने मुझे खुश कर दिया, अल्लाह आपको खुश रखेlउसके बाद उम्मे-सलमा के पास भी इसी तरह कहला भेजी l

इस में मुसलमानों को यह सबक मिलता है कि उनको मौत से पहले क्या करना चाहिएlजी हाँ उनको माफ़ी तलाफ़ी में लगना चाहिए जैसा कि हज़रत उम्मे-हबीबा ने हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-की पवित्र पत्नियों के साथ किय था lअल्लाह उनसब से प्रसन्न रहे-

mso-bi�p2agp�� ने ज़ैनब बिनते जहश को आदेश दिया कि तुम अपनी बहन सफिय्या को सवारी के लिए एक ऊंट दे दो याद रहे उनके पास सब से अधिक सवारियां थीं तो उन्होंने उत्तर दिया: मैं आपकी यहूदन को सवारी दूंगी? यह सुन कर हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-उनसे क्रोधित हो गए और उनके साथ बातचीत बंद कर दिए और पवित्र मक्का को आने तक भी उनसे बात नहीं किए और मिना के दिनों में भी बात नहीं किए और पूरी यात्रा के दौरान भी बात नहीं किए यहाँ तक कि पवित्र मदीना को वापिस हो गए और इस तरह मुहर्रम और सफर का महीना गुज़र गया, न उनके पास आए और न उनके लिए बारी रखी यहाँ तक कि वह निराश हो गईं, लेकिन जब रबीउल अव्वल का महीना आया तो हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-उनके पास आए तो वह उनकी परछाई देखी और देखते ही सोंची यह तो किसी मर्द की परछाई लग रही है, और हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-तो मेरे पास नहीं आते हैं, इस तरह हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-उनके पास आए, तो वह बोलीं: हे अल्लाह के रसूल जब आप मेरे पास आए तो मुझे तो पता ही नहीं चल रहा था कि क्या करूँ, हज़रत ज़ैनब की एक गुलाम महिला थी जिसको वह हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-से छिपा कर रखती थी कि उनको न देख सकें तो वह बोलीं कि यह आपको तुह्फा में देती हूँ lउसके बाद हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-हज़रत ज़ैनब की बिस्तर की ओर चले जबकि उस चारपाई को उठा कर रख दिया गया था फिर वह अपने परिवार के साथ रहे और उनसे मेलजोल हो गयाl

 

 

इस हदीस को सफिय्या बिनते हुयेय् ने कथित किया और यह सहीह है, इस हदीस में हज़रत सफिय्या से कथावाचक का नाम शुमैय्या और सुमैय्या आया है, यदि यह दोनों एक ही आदमी के नाम हैं तो यह हादीस सही है, इसे अल्बानी ने उल्लेख किया है, देखिए “अल-सिलसिला अल-सहीहा”पेज नंबर ७/६२१l   
 हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- का निधन

 

 
ज़ैद इब्ने असलम ने कहा: हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-की पवित्र पत्नियां उनके पास उस बीमाë



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